Friday, October 22, 2010

कुछ पुराना सा मसूरी

मसूरी के साथ बचपन से ही मेरा रिश्ता रहा है क्योंकि मसूरी मेरा ननिहाल है और आज अपने दूसरे सबसे प्यारे शहर की कुछ बहुत पुरानी तस्वीरें अपने ब्लाग में लगा रही हूं।









Friday, October 15, 2010

मशहूर चित्रकार निकोलाई रोरिख

मशहूर चित्रकार निकोलाई रोरिख का जन्म 9 अक्टूबर 1874 को रूस के एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। रोरिख बचपन से ही चित्रकार बनना चाहते थे पर उनके पिता जो कि वकील एवं नोटरी थे, उनको ये पसंद नहीं था इसलिये रोरिख ने वकालत और चित्रकारी की शिक्षा साथ-साथ ली।

अपने जीवन काल में रोरिख ने लगभग 7000 पेंटिंग्स बनाई। जिनमें विभिन्न तरह की पेंटिंग्स शामिल हैं। पर रोरिख की पहचान ज्यादा उनकी लैंडस्केप पेंटिंग्स के कारण ही है। पेंटिंग के अलावा रोरिख ने कई विषयों में किताबें भी लिखी जिनमें प्रमुख है फिलोसफी, धर्म, इतिहास, आर्कियोलॉजी साथ ही रोरिख ने कुछ कवितायें और कहानियां आदि भी लिखे। पूरे विश्व में शांति के प्रचार प्रसार के लिये रोरिख ने कई म्यूजियम एवं शैक्षणिक संस्थान आदि की भी स्थापना की।


रूस में 1917 की क्रांति के बाद से रोरिख ने ज्यादा समय रुस के बाहर ही बिताया। इस दौरान उन्होंने विभिन्न देशों अमेरिका, ब्रिटेन, स्वीडन आदि की यात्रा की। न्यूयॉर्क में इन्होंने रोरिख म्यूजियम की स्थापना भी की। इनके अलावा रोरिख ने ऐशियन देशों की यात्रायें भी की और हिन्दुस्तान से तो उन्हें विशेष लगाव रहा। यहां के हिमालयी स्थानों में उन्होंने अच्छा समय बिताया और यहां की संस्कृति आदि से वे बेहद प्रभावित रहे। 13 दिसम्बर 1947 को कुल्लू में रोरिख का देहांत हुआ।

अपने जीवनकाल में रोरिख को कई पुरस्कारों द्वारा नवाजा गया जिनमें प्रमुख हैं रसियन ऑर्डर ऑफ सेंट स्टेिन्सलॉ, सेंट ऐने एंड सेंट व्लादिमीर, यूगोस्लावियन ऑर्डर ऑफ सेंट साबास, नेशनल ऑर्डर ऑफ लिजीयन ऑफ ऑनर तथा किंस स्वीडन ऑर्डर ऑफ नॉर्दन स्टार। इसके अलावा उन्हें 1929 में नोबोल पुरस्कार के लिये भी नामांकित किया गया।

यहां हम उनके द्वारा बनाये गई कुछ पेंटिंग्स लगा रहे हैं










Friday, October 8, 2010

बारिश से हुई तबाही

बारिश ने उत्तराखंड के गाँवों में जो भीषण तबाही मचाई है उससे उबरने में यहाँ के लोगों को पता नहीं कितना समय लगेगा क्योंकि जिस तरह से जान माल का नुकसान हुआ उसका अनुमान तक लगा पाना नामुमकिन है।

मुझे नैनीताल से लगभग 16-17 किमी. दूर छड़ा गांव की कुछ तस्वीरें मिली हैं जो कि अकेले इसी गांव की तबाही का नजारा पेश कर रही हैं। दूर गांवों की दशा तो इससे भी कहीं ज्यादा दिन दुःखाने वाली हैं।

फोटो - के. एस. सजवान