अल्मोड़ा कुमाऊँ का ऐसा शहर है जहाँ कुमाउंनी संस्कृति का अच्छा मुजाहरा होता है। अल्मोड़ा में दशहरा मनाने का एक अलग ही अंदाज है। वहाँ पर दशहरा मनाने के लिये अलग-अलग मुहल्लों में रावण से संबंधित सभी राक्षसों के पुतले बनाये जाते हैं। जिन्हें करीब एक-डेढ़ महीने पहले से बनाना शुरू कर दिया जाता है और दशमी के दिन सुबह सभी मुहल्ले वाले अपने-अपने पुतलों को अपने मुहल्ले के आगे खड़ा कर देते हैं। दिन के समय सभी पुतलों को एक स्थान पर एकत्रित किया जाता है और शाम के समय में सभी पुतलों की परेड़ अल्मोड़ा बाजार से निकाली जाती है। इस परेड में लगभग डेढ़ दर्जन पुतले शामिल होते हैं जिन्हें भव्य परेड के दौरान अल्मोड़ा स्टेडियम में रात के समय जलाया जाता है।
इस आयोजन में हिन्दु-मुस्लिम सभी आपस में मिलजुल के काम करते हैं। कुछ मुहल्ले तो ऐसे भी हैं जहाँ इन कमेटियों को अध्यक्ष भी मुसलमान हैं और वो पूरे हिन्दू अनुष्ठान के तहत इस आयोजन को सफल बनाने के लिये जुटे रहते हैं। पहले इन पुतलों की लम्बाई बहुत ही ज्यादा होती थी पर अब थोड़ी कम हो गई है। इन पुतलों में बच्चे भी अपने पुतले बनाते हैं और उन्हें परेड में शामिल करते हैं। अल्मोड़ा में इस दशहरे को देखने के लिये दूर-दूर से लोग आते हैं और अल्मोड़ा के लोगों को तो इसका इंतजार रहता ही है। देर रात तक भी सब इस परेड को देखने के लिये इंतजार करते रहते हैं।
इस दौरान मां दुर्गा की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं। इन मूर्तियों को मुहल्लेवार ही बनाया जाता है। जो भी मुहल्ले वाले अपने मुहल्ले की दुर्गा बनाना चाहते हैं अपने मुहल्ले में इसका आयोजन करते हैं और दशमी के दिन पूरे शहर में मूर्तियों को घुमा के अल्मोड़ा के निकट क्वारब में इनका विसर्जन करते हैं। नैनीताल में बनाये जाने वाली दुर्गा पूरी तरह से बंगाली तरीके की होती है पर अल्मोड़ा में बनायी जाने वाली दुर्गा बंगाली तरह की नहीं होती हैं।
प्रस्तुत हैं अल्मोड़ा के इस अलग ही दशहरे की कुछ झलकियां
अल्मोड़ा की दुर्गा
नैनीताल की दुर्गा
अल्मोड़ा में मुहल्लों के आगे खड़े पुतले
बच्चों द्वारा बनाया गया पुतला
पुतलों के इंतजार करते लोग
परेड के समय पुतले