प्रेम के बारे में एक भी शब्द नहीं
शहद के बारे में
मैं एक शब्द भी नहीं बोलूँगा
वह
जो बहुश्रुत संकलन था
सहस्त्र पुष्प कोषों में संचित रहस्य रस का
जो न पारदर्शी न ठोस न गाढ़ा न द्रव
न जाने कब
एक तर्जनी की पोर से
चखी थी उसकी श्यानता
गई नहीं अब भी वह
काकु से तालु से
जीभ के बीचों-बीच से
आँखों की शीतलता में भी वह
प्रेम के बारे में
मैं एक शब्द भी नहीं बोलूँगा।
- विरेन डंगवाल