Tuesday, November 24, 2009

कस्तूरी मृग : उत्तराखंड का राजकीय पशु



कस्तूरी मृग जिसे अंग्रेजी में मस्क डियर भी कहते हैं उत्तराखंड का राजकीय पशु है। कस्तूरी मृग में पाये जाने वाली कस्तूरी के कारण इसकी विशेष पहचान है पर इसकी यही विशेषता इसके लिये अभिशाप भी है। कस्तूरी मृग हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। उत्तराखंड के अलावा यह नेपाल, चीन, तिब्बत, मंगोलिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भूटान, वर्मा, कोरिया एवं रुस आदि देशों में भी पाया जाता है।

कस्तूरी मृग से मिलने वाले कस्तूरी की अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में कीमत लगभग 30 लाख रुपया प्रतिकिलो है जिसके कारण इसका अवैध शिकार किया जा रहा है। चीन 200 किलो के लगभग कस्तूरी का निर्यात करता  है। आयुर्वेद में कस्तूरी से टी.बी., मिर्गी, हृदय संबंधी बिमारियां, आर्थराइटिस जैसी कई बिमारियों का इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेद के अलावा यूनानी और तिब्बती औषधी विज्ञान में भी कस्तूरी का इस्तेमाल बहुत ज्यादा किया जाता है। इसके अलावा इससे बनने वाली परफ्यूम के लिये भी इसकी बहुत मांग है।

कस्तूरी चॉकलेट रंग की होती है जो एक थैली के अंदर द्रव रूप में पायी जाती है। इसे निकाल कर सुखाकर इस्तेमाल किया जाता है। एक मृग से लगभग 30-40 ग्राम तक कस्तूरी मिलती है और कस्तूरी सिर्फ नर में ही पायी जाती है जबकि इसके लिये मादा मृगों का भी शिकार किया जाता है। जिस कारण इनकी संख्या में बहुत ज्यादा कमी आ गयी है।

कस्तूरी निकालने के लिये इन जानवरों का शिकार करना बिल्कुल भी जरूरी नहीं है क्योंकि कुछ आसान तकनीकों का इस्तेमाल करके इनसे कस्तूरी को आसानी से बिना मारे निकाला जा सकता है।

इसके जीवन पर पैदा हो रहे संकट के चलते इसे `इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेस´ ने `रैड डाटा बुक´ में शामिल किया गया है। भारत सरकार ने भी वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत इसके शिकार को गैरकानूनी घाषित कर दिया है। इंडियन वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने जिन 13 वन्य प्राणियों के जीवन को खतरे की सूची में डाला है उसमें से कस्तूरी मृग भी एक है।

यदि अभी भी इस जानवर को बचाने के प्रयास गंभीरता से नहीं किये गये तो जल्द ही उत्तराखंड का यह राजकीय पशु शायद सिर्फ तस्वीरों में ही नज़र आयेगा।



Tuesday, November 17, 2009

प्रेम के बारे में एक भी शब्द नहीं

विरेन डंगवाल जी के नये कविता संग्रह `स्याही ताल´ का लोकापर्ण नैनीताल फिल्म फैस्टविल में हुआ था। प्रस्तुत है उसी संग्रह से एक कविता



प्रेम के बारे में एक भी शब्द नहीं

शहद के बारे में
मैं एक शब्द भी नहीं बोलूँगा

वह
जो बहुश्रुत संकलन था
सहस्त्र पुष्प कोषों में संचित रहस्य रस का

जो न पारदर्शी न ठोस न गाढ़ा न द्रव
न जाने कब
एक तर्जनी की पोर से
चखी थी उसकी श्यानता
गई नहीं अब भी वह
काकु से तालु से
जीभ के बीचों-बीच से
आँखों की शीतलता में भी वह

प्रेम के बारे में
मैं एक शब्द भी नहीं बोलूँगा।


- विरेन डंगवाल






Saturday, November 14, 2009

क्या यह बच्चे भी जानते होंगे बाल दिवस का मतलब ???

यह तस्वीरें मुझे मेरे दोस्त की फॉरवर्ड मेल से मिले थे...

And we say that we are working hard



 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Thursday, November 12, 2009

नैनीताल का पहला फिल्म उत्सव

7-8 नवम्बर 2009 को नैनीताल में पहले फिल्म उत्सव का आयोजन किया गया। नैनीताल में यह अपनी तरह का पहला आयोजन था जिसे एन.एस. थापा और नेत्र सिंह रावत को समर्पित किया गया था। इस फिल्म उत्सव का नाम रखा गया था `प्रतिरोध का सिनेमा´। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को उन संघषों से रु-ब-रु करवाना था जो कि कमर्शियल फिल्मों के चलते आम जन तक नहीं पहुंच पाती हैं। युगमंच नैनीताल एवं जन संस्कृति मंच के सहयोग से इस फिल्म उत्सव का आयोजन किया गया।

आयोजन का उद्घाटन युगमंच व जसम के कलाकारों द्वारा कार्यक्रम प्रस्तुत करके की गयी। इसी सत्र में फिल्म समारोह स्मारिका का विमोचन भी किया गया और प्रणय कृष्ण, गिरीश तिवाड़ी `गिर्दा´ एवं इस आयोजन के समन्वयक संजय जोशी ने सभा को संबोधित किया। इसके बाद आयोजन की पहली फिल्म एम.एस. सथ्यू निर्देशित `गरम हवा´ दिखायी गयी। बंटवारे पर आधारित यह फिल्म दर्शकों द्वारा काफी सराही गयी

सायंकालीन सत्र में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कवि वीरेन डंगवाल के काव्य संग्रह `स्याही ताल´ का विमोचन किया गया तथा गिरीश तिवाड़ी `गिर्दा´ और विश्वम्भर नाथ सखा को सम्मानित किया गया। इस दौरान `आधारशिला´ पत्रिका का भी विमोचन किया गया। इसके बाद राजीव कुमार निर्देशित 15 मिनट की डॉक्यूमेंट्री `आखिरी आसमान´ का प्रदर्शन किया गया जो कि बंटवारे के दर्द को बयां करती है। उसके बाद अजय भारद्वाज की जे.एन.यू. छात्रसंघ के अध्यक्ष चन्द्रशेखर पर केन्द्रत फिल्म `1 मिनट का मौन´ तथा चार्ली चैिप्लन की फिल्म `मॉर्डन टाइम्स´ दिखायी गयी। इस फिल्म के साथ पहले दिन के कार्यक्रम समाप्त हो गये।

दूसरे दिन के कार्यक्रमों की शुरूआत सुबह 9.30 बजे बच्चों के सत्र से हुई। इस दौरान `हिप-हिप हुर्रे´, `ओपन अ डोर´ और `चिल्ड्रन ऑफ हैवन´ जैसी बेहतरीन फिल्में दिखायी गयी। बाल सत्र के दौरान बच्चों की काफी संख्या मौजूद रही और बच्चों ने इन फिल्मों का खूब मजा लिया।

दोपहर के सत्र की शुरूआत में नेत्र सिंह रावत निर्देशित फिल्म `माघ मेला´ से हुई और इसके बाद एन.एस. थापा द्वारा निर्देशित डॉक्यूमेंट्री फिल्म `एवरेस्ट´ का प्रदर्शन किया गया। यह फिल्म 1964 में भारतीय दल द्वारा पहली बार एवरेस्ट को फतह करने पर बनायी गयी है। यह पहली बार ही हुआ था कि एक ही दल के सात सदस्यों ने एवरेस्ट को फतह करने में कामयाबी हासिल की थी। निर्देशक एन.एस. थापा स्वयं भी इस दल के सदस्य थे। इस फिल्म को दर्शकों से काफी प्रशंसा मिली। इस के बाद विनोद राजा निर्देशित डॉक्यूमेंट्री `महुवा मेमोआर्ज´ का प्रदर्शन किया गया। यह फिल्म 2002-06 तक उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड और आंध्र प्रदेश के आदिवासी इलाकों में किये जा रहे खनन पर आधारित है जिसके कारण वहां के आदिवासियों को अपनी पुरखों की जमीनों को छोड़ने के लिये मजबूर किया जा रहा है। यह फिल्म आदिवासियों के दर्द को दर्शकों तक पहुंचाने में पूरी तरह कामयाब रही।

सायंकालीन सत्र में अशोक भौमिक द्वारा समकालीन भारतीय चित्रकला पर व्याख्यान दिया गया और एक स्लाइड शो भी दिखाया गया तथा कवि विरेन डंगवाल जी का सम्मान किया गया। इस उत्सव की अंतिम फिल्म थी विट्टोरियो डी सिल्वा निर्देशित इतालवी फिल्म `बाइसकिल थीफ´। उत्सव का समापन भी युगमंच और जसम के कलाकारों की प्रस्तुति के साथ ही हुआ।

समारोह के दौरान अवस्थी मास्साब के पोस्टरों और चित्तप्रसाद के रेखाचित्रों की प्रदर्शनी भी लगायी गयी जिसे काफी सराहना मिली।


आयोजन की कुछ झलकियां



अवस्थी मास्साब के पोस्टर






चित्तप्रसाद के रेखाचित्र


विरेन डंगवाल जी के काव्य संग्रह का लोकार्पण


गिर्दा का सम्मान


विश्वम्भर नाथ साह `सखा´ का सम्मान








Tuesday, November 3, 2009

कभी कभी ऐसा भी होता है