यह ट्रेकिंग करीब दो साल पहले की है जब मैं और मेरे कुछ दोस्तों ने अचानक ही बज्यून जाने का प्लान बना दिया। बज्यून नैनीताल से करीब 11 किमी. दूर है और सड़क खत्म हो जाने के बाद जब अन्दर गांवों की ओर पैदल ट्रेकिंग की जाये तो ऐसा लगता है कि पुराने वक्त में पहुंच गये हैं जहां सब कुछ थम सा गया है। बज्यून माने चिड़ियां देखने वालों की जन्नत भी है। मेरे जैसे लोगों के लिये यहां पर बहुत कुछ मिल जाता है देखने को। बज्यून को बर्ड वाॅचिंग के लिये इंटरलेशनल मैप में भी जगह मिली है। किसी भी बर्ड वाॅचर की तमन्ना होती है कि वो यहाँ आकर बर्ड वाॅचिंग करे। मेरी भी थी पर कभी वहां जाने का मौका नहीं मिला। इस बार मेरी खुशकिस्मती थी कि मुझे वहां जाने का मौका मिल गया पर मौसम कुछ ऐसा था कि चिड़ियाऐं देखने का ज्यादा अवसर नहीं मिल पाया।
हमें निकलने में देरी हो गयी थी इसलिये यह फैसला किया कि सड़क तक का रास्ता हम लोग अपनी गाड़ी से तय करेंगे और वहां से आगे पैदल निकलेंगे। जिस समय हम निकले उस समय बारिश हो रही थी और पूरी घाटी धुंध की हल्की चादर में लिपटी हुई थी। जिसे देख कर मुझे थोड़ा मायूसी भी हो रही थी क्योंकि कुछ भी दिख नहीं रहा था। बज्यून जाते हुए रास्ते में खुर्पाताल भी पड़ता है। यह झील ऊपर से देखने में बहुत अच्छी लगती है पर धुंध होने के कारण हम इसे देख नहीं पाये। हम लोग एक-डेढ़ घंटे में बज्यून पहंुच गये। वहां सड़क के किनारे बनी एक दुकान में कुछ समय के लिये रुके क्योंकि बारिश काफी तेज हो गयी थी। हमने दुकान में बैठकर चाय समोसे खाये और बारिश के रुकने का इंतजार किया। दुकान में छोटे-छोटे बच्चे भी बन टिक्की, चाउमिन जैसी अपनी पसंद की चीजें खा रहे थे। जब दुकान में कई सारे बच्चे आने लगे तो हमने उनसे पूछ ही लिया कि वो आज छुट्टी वाले दिन कहां से आ रहे हैं ? एक बच्चे ने बताया - आज इतवार होने के कारण वो लोग सुबह 4-5 बजे के लगभग ही सामान बेचने के लिये बाजार चले गये थे। अभी वहीं से वापस आ रहे हैं और अब नाश्ता कर रहे हैं। बच्चों की मेहनत देख कर अच्छा लगा पर क्या यह उनकी उम्र है इतना काम करने की ? लेकिन गांव के बच्चे ऐसे ही होते हैं बहुत मेहनती...
हमें निकलने में देरी हो गयी थी इसलिये यह फैसला किया कि सड़क तक का रास्ता हम लोग अपनी गाड़ी से तय करेंगे और वहां से आगे पैदल निकलेंगे। जिस समय हम निकले उस समय बारिश हो रही थी और पूरी घाटी धुंध की हल्की चादर में लिपटी हुई थी। जिसे देख कर मुझे थोड़ा मायूसी भी हो रही थी क्योंकि कुछ भी दिख नहीं रहा था। बज्यून जाते हुए रास्ते में खुर्पाताल भी पड़ता है। यह झील ऊपर से देखने में बहुत अच्छी लगती है पर धुंध होने के कारण हम इसे देख नहीं पाये। हम लोग एक-डेढ़ घंटे में बज्यून पहंुच गये। वहां सड़क के किनारे बनी एक दुकान में कुछ समय के लिये रुके क्योंकि बारिश काफी तेज हो गयी थी। हमने दुकान में बैठकर चाय समोसे खाये और बारिश के रुकने का इंतजार किया। दुकान में छोटे-छोटे बच्चे भी बन टिक्की, चाउमिन जैसी अपनी पसंद की चीजें खा रहे थे। जब दुकान में कई सारे बच्चे आने लगे तो हमने उनसे पूछ ही लिया कि वो आज छुट्टी वाले दिन कहां से आ रहे हैं ? एक बच्चे ने बताया - आज इतवार होने के कारण वो लोग सुबह 4-5 बजे के लगभग ही सामान बेचने के लिये बाजार चले गये थे। अभी वहीं से वापस आ रहे हैं और अब नाश्ता कर रहे हैं। बच्चों की मेहनत देख कर अच्छा लगा पर क्या यह उनकी उम्र है इतना काम करने की ? लेकिन गांव के बच्चे ऐसे ही होते हैं बहुत मेहनती...
काफी देर तक भी जब बारिश नहीं रुकी तो हम बारिश में ही पैदल निकल गये। इस रास्ते के शुरू होते ही एक गोलू देवता का मंदिर है। करीब 2 किमी. चल लेने के बाद बारिश रूकी और मौसम बिल्कुल खिला-खिला सा हो गया। रास्ते से नीचे देखने में एक खूबसूरत सा गांव नज़र आया बरसात का मौसम होने के कारण बिल्कुल हरा-भरा दिख रहा था और अभी मौसम खिला ही था जो उस गांव की खूबसूरती को और बढ़ा रहा था।
बज्यून का यह रास्ता जिम कार्बेट के भी पसंदीदा रास्तों में से एक रहा है। वो अकसर इसी रास्ते से कोटाबाग पैदल आया-जाया करते थे। रास्ते में हमें कई सारे गांव के लोग मिले जिनसे हमने खूब बातें की।
बज्यून का रास्ता बहुत ही अच्छा है और ट्रेकिंग के लिये परपफेक्ट है। इस रास्ते में जोंक भी नहीं थी पर काफी जगहों में पहाड़ धसके हुए थे। बज्यून जाकर ऐसा लगा जैसे किसी पुराने जमाने में आ गये हैं। लोग अभी भी घोड़ों से सवारी करते हैं और घोड़ों से ही सामान लाते-ले जाते है। यहां पर भी हमें कुछ स्कूली भी दिखे। जो मंडी से घर वापस लौट रहे थे। हमें इस बात के लिये बेहद अफसोस भी हुआ की एक ओर जहां जमाने ने इतनी तरक्की कर ली वहीं दूसरी ओर आज भी यह लोग अभी तक भी इतनी कठिन परेशानियों का सामना कर रहे हैं। अभी तक भी वहां कोई अस्पताल नहीं है। बच्चों के लिये अच्छे स्कूल भी नहीं है। और औरतों को उसी तरह काम करना पड़ता है। पता नहीं हमारा विकास किसी गली में जाता है।
इस रास्ते में आजकल कई पहाड़ी पानी के सोते फूट रखे थे। यह रास्ता आगे पफगूनियाखेत और रौखड़ गांवों को जाता है पर देर हो जाने के कारण हम थोड़ा आगे तक ही गये। वहां एक गांव की दुकान में हमने चाय पी। उस दुकान के सामने एक काला घोड़ा बंधा हुआ था जो ब्लेक ब्यूटी उपन्यास के घोड़े की याद दिला रहा था। हमने उसे एक बन खिलाया जिसे उसने बड़े प्यार से खा भी लिया। वहीं पर मुझे बहुत सारी चिड़िया देखने को मिली। वहां से हम लोग वापस लौट गये...