Tuesday, December 6, 2011

मिलम ग्लेशियर और नन्दा देवी ट्रेक


अभी कुछ दिन पहले ही मैं मिलम ग्लेशियर और नन्दा देवी के ट्रेक से बहुत सारी यादों और बहुत सारी तस्वीरों के साथ लौटी हूं। कई लोगों ने मुझे ब्लाॅग में वहां के बारे में लिखने को कहा था इसलिये एक बेहद ही छोटा सा यात्रा वृतांत ब्लाॅग में लगा रही हूं। विस्तार से लिखना मैं शुरू कर चुकी हूं इसलिये जल्दी ही विस्तार यात्रा वृतांत ब्लाॅग में लगाना शुरू कर दूंगी। 

कुछ तस्वीरें में वहां की पहले एक पोस्ट में लगा चुकी हूं कुछ और तस्वीरें अगली पोस्ट में लगाउंगी तब तक आप इसे पढि़ये और बताइये कि कैसा लगा ?

मुझे जब से ट्रेकिंग का चस्का चढ़ा था तब से ही मिलम ग्लेशियर और नन्दा देवी बेस कैम्प जाना सपना था और इस बार यह शानदार मौका मिल ही गया। हमारी ट्रेकिंग मुनस्यारी से शुरू होनी थी सो एक दिन पहले मैं पिथौरागढ़ पहुंची वहां एक रात रुक कर अगले दिन मुनस्यारी के लिये निकल गयी। पिथौरागढ़ से मुनस्यारी वाला रास्ता आजकल बहुत अच्छा लग रहा था। कई झरने इस रास्ते में दिखायी दिये और कुछ तो रोड के उपर भी गिर रहे थे। मैं शाम को 4 बजे मुनस्यारी पहुंची और जाकर अपने गाइड सेंडी और बांकी की टीम से मिली। 

अगली सुबह 10 बजे हमने धापा से ट्रेकिंग शुरू की। आज हमें 8 किमी. ट्रेक करना था। पहले हम पथरीले रास्ते से होते हुए जिमीगाड़ पहुंचे। यहां से एक पुल पार करते हुए लीलाम के लिये खड़ी चढ़ाई शुरू हो गयी। तेज धूप और वजन के साथ इस चढ़ाई को पार करना काफी थका देने वाला रहा पर घाटी की खूबसूरती और रास्ते में आने वाली गुफाओं में बैठने के कारण चढ़ाई थोड़ी आसान लगने लगी। रास्ता खतरनाक था और नीचे गोरी गंगा बह रही थी जो मिलम ग्लेशियर से निकलती है। छोटी सी गलती हमें गोरी में डालने के लिये काफी होती। खैर कुछ समय बाद हम अपने पहले पड़ाव लीलाम (1850 मी.) पहुंचे और टेंट लगा कर खाना बनाया। अब हल्की बारिश भी होने लगी थी। शाम को मैंने कुछ गांव वालों से बातें की पर थोड़ी निराशा हुई क्योंकि सब टल्ली पड़े थे। वहां से लौट कर खाना खाया और अपने टेंट में सोने चली गयी। अगले दिन हमने 16-17 किमी. का ट्रैक करना था।

सुबह हल्की ठंडी थी। ब्रेकफास्ट निपटा कर बोगडियार (2450 मी.) के लिये निकल गये। रास्ते में खूब बड़ी छिपकलियां फुदकती दिखायी दी। इस घाटी को जोहार घाटी कहते हैं। यहां के लोग खानाबदोश होते हैं और इनका काम व्यापार करना है। सर्दियों में ये गर्म इलाकों में आ जाते हैं। कई लोग अपने भेड़ों के साथ मुनस्यारी जाते हुए दिखायी दिये जिनसे मैंने बातें भी की। रास्ते में विशालकाय झरने दिख रहे थे और गोरी अपनी दहाड़ती हुई आवाज और तेज बहाव के साथ हमारे साथ चल रही थी। कई जगह काफी खड़ी चढ़ाई थी पर घाटी का नजारा बेहद खूबसूरत था। यहां बांस का घना जंगल भी दिखा और कई गुफायें मिली। करीब 1 बजे हम रंङगाड़ी होते हुए गरमपानी के चश्मे के पास पहुंचे। यहां कुछ देर पानी में पैर डाल कर थकान मिटाई लंच किया और आगे बढ़ गये। रास्ते में छोटी-छोटी झोपडि़या मिली जिनमें चाय-खाना तो मिलता ही है जरूरत पड़ने पर रहने का इंतजाम भी हो जाता है। रास्ता कई जगह पर टूटा हुआ था इसलिये हम कभी लम्बे रास्ते से या कहीं टूटे हुए रास्तों को ही जैसे-तैसे पार करके आगे बढ़े। शाम करीब 5.30 बजे हम बोगडियार पहुंचे। यहां गोरी के किनारे टेंट लगाये और खाने की तैयारी की। बोगडियार में थोड़ी ठंडी थी पर आसमान बेहद खूबसूरत लग रहा था। जल्दी खाना निपटा कर टेंट में सोने चले गये। अगली सुबह फिर हमें जल्दी ही ट्रेकिंग शुरू करनी थी।

सुबह ठंडी में ही ब्रेकफास्ट कर हम मर्तोली गांव (3430 मी.) के लिये निकल गये। मौसम अच्छा था और ताजगी के साथ हमने ट्रेकिंग शुरू की। शुरू में रास्ता अच्छा था पर फिर खतरनाक और खड़ी चढ़ाई वाला हो गया। रास्ते की खूबसूरती बरकरार थी। ऊँचे-ऊँचे पहाड़, साफ नीला आकाश उसमें बादलों के तैरते हुए टुकड़े और गोरी के बहने का संगीत। इससे अच्छा नजारा कुछ और नहीं हो सकता था। कुछ देर बाद हम मापांग पहुंच गये। रास्ते में अभी भी विशाल झरने मिल रहे थे कुछ तो रास्ते के बीच में भी गिर रहे थे जिनमें से भीगते हुए निकलने में बड़ा मजा आ रहा था। एक तीखी चढ़ाई चढ़ने के बाद हम लास्पा गांव पहुंचे यहां एक झोपड़ी में बैठ कर खाना खाया, चाय पी और कुछ देर आराम कर आगे निकल गये। पेड़ अब गायब होने लगे थे। उनकी जगह बुग्यालों ने ले ली थी। यहां से हमें भूरे पहाड़ दिखने लगे थे। रास्ता अच्छा था और कभी गोरी के करीब जाता तो कभी उससे दूर हो जाता। यह रास्ता एक जगह पर पूरी तरह टूटा हुआ था जिसे मैंने सेंडी की मदद से जैसे-तैसे पार किया। 2-3 घंटे बाद हम रिल्कोट पहुंचे और यहां से मर्तोली गांव को बढ़ गये। अब शाम होने लगी थी और थकावट भी महसूस हो रही थी। मर्तोली के लिये हमें फिर से एक तीखी चढ़ाई चढ़नी थी जो उस समय बहुत अखर रही थी। जैसे-तैसे इसे पार किया पर अभी भी हमें करीब 6-7 किमी. और चलना था। मर्तोली गावं पहुंचने से पहले हमें बुग्याल दिखा जिसे पार कर अंधेरे में हम मर्तोली पहुंचे। गांव पहुंचने पर एक डरावना एहसास हुआ। लगा जैसे किसी भूतहा जगह पर आ गये हों जहां सारे मकान खंडहर पड़े हैं। इधर-उधर भटकने के बाद 2 लोग मिले जिनसे हमने टेंट लगाने की जगह पूछी। मर्तोली में बेहद ठंडी थी और आज हम करीब 22-23 किमी. चल कर बुरी तरह थके थे इसलिये खिचड़ी खाकर ही सोने चले गये। 

सुबह जब मैं अपने टेंट से बाहर आयी तो देखा पाले (फ्राॅस्ट) से सब सफेद हो रखा था और बेहद ठंडी थी। मैं कुछ ही दूरी पर बने नन्दा देवी के मंदिर और गांव को देखने चली गयी। नन्दा देवी जोहारियों की ईष्ट देवी हैं इसलिये हर गांव में उनका मंदिर जरूर होता है। मर्तोली गांव मर्तोली पीक के नीचे बसा है। गांव के मकान पत्थरों के थे जिनका आर्किटेक्ट पारम्परिक था पर लोगों के चले जाने के कारण अब ज्यादातर मकान खंडहर हो चुके हैं। कुछ परिवार जो बचे हैं वो आजकल मुनस्यारी जा रहे थे इसलिये गांव में सन्नाटा पसरा था। गांव में घूमने के बाद मैं वापस आयी और ब्रेकफास्ट करके गनघर की ओर निकलने की तैयारी शुरू की।

आज हमें 10 किमी. का ट्रेक कर गनघर (3328 मी.) पहुंचना था। मर्तोली से एक तीखा ढलान उतर कर पुल पार करते हुए बुर्फू पहुंचे। एक तीखी चढ़ाई के अलावा आज का रास्ता काफी अच्छा था। बीच में हमें बुग्याल मिलतेे रहे जिनमें पीली घास के झुरमुट लगे थे। यहां बहुत तेज हवायें चल रही थी जिसके कारण  चलने में परेशानी हो रही थी। गोरी अभी भी हमारे साथ में थी। हम 2 बजे गनघर पहुंचे। जब हम यहां पहुंचे औरतों ने मेरे हाथ में कैमरा देख कर मोबाइल में गाना लगा कर नाचना शुरू कर दिया। यहां भी बिजली नहीं है पर सोलर लाइट की वजह से थोड़ा बहुत काम चल जाता है। जगह ढूंढ कर हमने टेंट लगाये। आज आराम से खाना बनाया और अगले दिन मिलम ग्लेशियर (3500 मी.) जाने का प्लान बनाया। 

सुबह करीब 6 बजे हम मिलम ग्लेशियर के लिये निकल गये। मिलम ग्लेशियर एशिया का सबसे बड़ा ग्लेशियर है। रास्ते में पाछू नदी और पाछू गांव से निकलते हुए लकड़ी के बने खरतनाक पुल को पार कर मिलम की ओर बढ़े। यहां तिब्बत से आने वाली ग्वांख नदी और गोरी का संगम भी है। मिलम का रास्ता ठीक था पर एक बेहद तीखी खड़ी चढ़ाई ने हालत खराब कर दी। पर हीदेवल पीक के नजारे ने थकान को गायब कर दिया। खैर यहां से उबड़-खाबड़ पथरीला रास्ता पार करते हुए हम आगे बढ़े तो ग्लेशियर  दिखना शुरू हो गया। मेरा सपना पूरा हो रहा था। उस समय मैं क्या महसूस कर रही थी शब्दों मे बता पाना मुश्किल है पर मुझे ग्लेशियर के पास जाना था और गोरी का सोर्स देखना था सो हम आगे निकल गये। हम हजारों वर्ष से इकट्ठा होकर सख्त हो चुकी बर्फ के ऊपर थे। यह जगह किसी स्टोन क्रेशर से कम नही थी। जहां तहां सिर्फ पत्थरों के ढेर थे और इन्हीं के ऊपर से रास्ता बना के हम आगे बढ़े और ग्लेशियर के पास पहुंचे। ग्लेशियर से पानी टपक रहा था और ऊपर से पत्थर गिर रहे थे इसलिये यह जगह बेहद खतरनाक थी। कुछ देर यहां रुकने के बाद हम गोरी का मुहाना देखने निकल गये। जिसके लिये हमें काफी लम्बा रास्ता पत्थरों के ढेरों से तय करना पड़ा। यहां आकर प्रकृति की ताकत का अहसास हो रहा था। गोरी के मुहाने के पास पहुंचे तो देखा वहां इतने ज्यादा पत्थर गिर रहे थे कि ज्यादा रुकना कठिन था इसलिये स्नाउट देखकर फौरन वापस लौट लिये। इस उबड़-खाबड़ रास्ते को पार कर हम ढंग के रास्ते पर पहुंचे। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद मिलम गांव की ओर निकल गये। यह गांव 500 परिवारों का है पर अब यहां भी कुछ ही परिवार रह गये हैं। यहां से हम वापस गनघर आ गये। 

अगले दिन हम नन्दा देवी ईस्ट बेस कैम्प (4297 मी.) के लिये निकल गये। यहां जाने के लिये हमें बेहद तीखी चढ़ाई चढ़नी पड़ी पर बीच-बीच में बुग्याल और पानी के सोते थोड़ा थकावट कम कर रहे थे। हमें नीचे से ही नन्दा देवी का नजारा दिखने लगा था। जैसे-जैसे इसके नजदीक पहुंचे हमें बुरांश की झाडि़या और भोज पत्र के पेड़ दिखने लगे। बेस कैम्प में पहुंचने पर हम सुस्ता कर बैठ गये। यहां से पाछू नदी निकलती है जो नीचे जाकर गोरी में ही मिल जाती है। जिस समय हम यहां पहुंचे नन्दा देवी के ऊपर बादल छाने लगे थे पर फिर भी हमें अच्छा नजारा मिल गया। हमारा मिशन यहां पूरा हो चुका था। 
10 दिन के टेªक में हम 155-160 किमी. पैदल चले। मैं इस सफर में एक अलग ही जीवन शैली और प्राकृतिक सुन्दरता से रुबरू हुई जिसे छोड़ कर वापस लौटना बुरा लग रहा था पर वापस तो आना ही था... कुछ समय यहां बिताने के बाद वापसी का सफर तय करते हुए बुर्फू लौट आये। बुर्फू से नाहरदेवी-गरमपानी-लीलाम होते हुए वापस मुनस्यारी। 

विस्तार से जल्दी ही पोस्ट लगाना शुरू करूंगी।