अवस्थी मास्साब
अवस्थी मास्साब को यूं तो शायद ही कोई जानता हो क्योंकि उन्हें कभी किसी बड़े पुरस्कार से नहीं नवाजा गया और न ही अवस्थी मास्साब ने इसकी कभी कोई हसरत ही रखी। इसीलिये वो अपना काम चुपचाप करते रहे और लोगों को सही रास्ता दिखाते रहे।
2 अगस्त 1925 को नेपाल के एक छोटे से गावं सिलगढ़ी के गरीब परिवार में जन्मे शरत चन्द्र अवस्थी ने एम.ए. अंग्रेजी से किया था और नैनीताल के सी.आर.एस.टी. स्कूल में अंग्रेजी के शिक्षक थे। नैनीताल में हर कोई उन्हें अवस्थी मास्साब के नाम से ही जानता था। अवस्थी मास्साब वैसे तो अंग्रेजी के शिक्षक थे पर अंग्रेजी के अलावा भी हर विषय में उनका बहुत अच्छा एकाधिकार था। उनके छात्र रह चुके बलवीर सिंह जी का कहना है कि - हमारे क्लास में जब भी किसी और विषय के शिक्षक नहीं आते थे तो अवस्थी मास्साब उनकी जगह हमें पढ़ाने आते थे और इस अंदाज में वो पढ़ाते थे कि लगता ही नहीं था कि वो अंग्रेजी के ही शिक्षक हैं। अवस्थी मास्साब का हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू के अलावा अन्य भाषाओं की भी बहुत अच्छी जानकारी थी।
अवस्थी मास्साब को जो बात सबसे अलग करती है वो थी उनका स्वयं को अभिव्यक्त करने का माध्यम। जिसमें न तो उन्हें पैसों की जरूरत पड़ती थी, न ही बड़े-बड़े अखबार के संपादकों की खुशामद करने की और न ही ज्यादा समय की। उनका यह माध्यम था पोस्टर। वो उस समय की परिस्थितियों के अनुसार स्वयं ही पोस्टर बनाते थे और उसे अपने उपर लटका के सड़क में निकल जाते। जिसे भी पोस्टर पड़ना होता वो उनके सामने चले जाता। अवस्थी मास्साब वहां पर तब तक खड़े रहते थे जब तक की सामने वाला पूरा पोस्टर न पढ़ ले। कभी-कभी वो आगे-पीछे दोनों तरफ पोस्टर लटका के चलते थे। जब कोई सामने की तरफ वाला पोस्टर पढ़ लेता तो उसे घूम कर पीछे का पोस्टर भी पढ़ने देते। अवस्थी मास्साब के पोस्टरों की एक और खासियत यह थी कि उन्होंने कोई भी पोस्टर नये कागज में नहीं बनाया। इसके लिये उन्होंने हमेशा इस्तेमाल किये जा चुके कागज को ही फिर से इस्तेमाल किया। वो अपने दिल की हर बात, अपनी नाराजगी, गुस्सा और प्यार सब कुछ अपने पोस्टर के द्वारा आम जनता तक पहुंचा देते थे। जिसका जनता के उपर गहरा प्रभाव भी पड़ता था।
अवस्थी मास्साब नैनीताल की सबसे बड़ी नाट्य संस्था `युगमंच´ के संस्थापक सदस्य भी थे। ज़हूर आलम जी, अध्यक्ष, युगमंच की मल्लीताल स्थित छोटी सी कपड़े की दुकान `इंतखाब´ उनके बैठने का निश्चित स्थान था जहां से वो अपनी सभी रचनात्मक कार्यों को दिशा दिया करते थे। ज़हूर आलम जी का कहना है कि - अवस्थी मास्साब तो ज्ञान का भंडार थे। हर विषय में उनका ज्ञान इतना गहरा था कि कभी-कभी लोग उसे समझ भी नहीं पाते थे। असल में अवस्थी मास्साब अपने समय से बहुत आगे के थे इसलिये शायद लोग उन्हें उस तरीके से समझ नहीं पाये जिस तरह से उन्हें समझा जाना चाहिये था।
अवस्थी मास्साब आंदोलनकारी भी थे और उन्होंने `नशा नही रोजगार दो´, प्राधीकरण हटाओ नैनीताल बनाओ, मण्डल कमण्डल के विरुद्ध छात्र आंदोलन, 1994 का मुजफ्फरनगर कांड तथा उत्तराखंड आंदोलन में सक्रिय भूमिका अदा की।
इन सबके अलावा अवस्थी मास्साब खेलों के भी बेहद शौकिन थे और हर तरह के खेलों जैसे - क्रिकेट हॉकी, फुटबाल, बॉिक्संग आदि की प्रत्येक बारिकियों से भी भली भंति परिचित थे। अरूण रौतेला जी का कहना है कि - अवस्थी मास्साब विद्वान, ईमानदार तो थे ही लेकिन उन्होंने अपने को अभिव्यक्त करने का जो माध्यम चुना वो उन्हें सबसे अलग बनाता है। उनके बगैर नैनीताल आज भी अधूरा ही लगता है। उनसे हमें काफी कुछ सीखने को मिला। ऐसे विद्वान दुनिया में कम ही होते हैं जिनमें से एक हमारे अवस्थी मास्साब भी थे। 12 फरवरी 2002 को नैनीताल में उनका देहान्त ब्रेन हैमरेज से हुआ। कुछ समय से वह अस्पातल में भर्ती थे और जब उन्हें उनके बिस्तर से हटाया गया तो उनके द्वारा बनाया गया आखरी पोस्टर मिला, जिसमें लिखा था - हैप्पी बर्फ डे। क्योंकि एक दिन पहले ही नैनीताल में बर्फ पड़ी थी जिसकी खुशी भी उन्होंने अपने ही माध्यम से सबके सामने रखी और सबको अलविदा कह गये।
अवस्थी मास्साब के कुछ और पोस्टर अगली पोस्ट में...
अवस्थी मास्साब की तस्वीर और पोस्टर श्री ज़हूर आलम, अध्यक्ष `युगमंच´ से साभार