जबसे मैं चेन्नई गयी थी तब से ही समंदर देखने के लिये बेचैन थी। एक दिन जब हम सभी बैठे हुए थे मैंने अपने साथ वालों से कहा - मुझे समन्दर देखना है क्योंकि उसको देखे बगैर तो यहाँ आने का कोई फायदा नहीं होगा और दूसरे ही दिन हम लोग महाबलीपुरम बीच के लिये निकल गये। महाबलीपुरम बीच में पत्थरों से बने विशालयकाय मंदिर और मूर्तियां हैं। जिन्हें देख के मैं बिल्कुल विस्मृत सी हो गयी थी और सहज ही मेरे मुंह से निकल पड़ा कि - दक्षिण भारत की कला श्रेष्ठता का कोई सानी नहीं है। बैहरहाल समंदर को देखने का यह मेरा पहला अनुभव था जो मेरे लिये बहुत खास था। मैं इतना विस्तृत समन्दर देखकर बेहद रोमांचित सा महसूस कर रही थी और मेरी तमन्ना थी कि मैं और भी बीच देख पाऊ इसी के चलते हमने मरीना बीच जाने की भी प्लानिंग वहां लहरों के साथ खेलते-खेलते ही बना डाली। शाम को जब हम घर वापस लौटे तो रेत से लदे हुए थे। करीब दो दिन के बाद हम लोग मरीना बीच पे थे जो कि दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बीच है।
मद्रास में रहते हुए एक चीज जो मुझे शिद्दत से महसूस हुई वो थी मद्रास का अपने संस्कृति और संस्कारों के प्रति समर्पण भाव। उन्होंने आज तक भी अपनी संस्कृति और संस्कारों को सहेज के रखा है। वहाँ लोग अपने ट्रेडिशनल कपड़े पहनना ही ज्यादा पसंद करते हैं। महिलाओं को खासतौर से सोने के गहने और बालों में वेणियां लगाने का बहुत ज्यादा शौक है। कहीं भी निकल जाइये वेणी की दुकान और सोने के गहनों से लदी औरतें देखना एक आम बात है।
कई सारे स्वादिष्ट व्यंजनों के अलावा जिसने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो थी वहाँ की कॉफी और नारियल की चटनी। कॉफी मेरी कमजोरी होने के कारण कॉफी पाउडर और उसे बनाने के लिये कॉफी मेकर को तो मैं अपने साथ ले के भी आयी और उसे बनाने का स्पेशल तरीका भी सीख लिया। कॉफी को परोसने का तरीका भी कॉफी जितना ही अच्छा था। एक छोटे से गिलास में कॉफी डालकर उसे कटोरीनुमा प्लेट में रखकर परोसा जाता है जिसे पीने में वो और भी ज्यादा स्वादिष्ट लगती है। अपनी वापसी से कुछ दिन पहले मैं सवर्णा (जो वहां की प्रसिद्ध दुकान मानी जाती है) में गई और अपने लिये मद्रास के कुछ यादें लेकर आयी।
दो दिन बाद मेरी वापसी नैनीताल के लिये थी पर अचानक ही बीमार हो जाने के कारण कुछ दिन और रुकना पड़ा। इसी बहाने मुझे वहाँ के अस्पतालों को भी देखने का मौका मिला। जिस डॉक्टर के पास मैं टैस्ट करवाने के लिये गई उन्होंने मुझे कहा कि - मुझे कम से 2-3 दिन और वहीं रुकना चाहिये उसके बाद ही वापसी के बारे में सोचूं तो अच्छा रहेगा। साथ ही साथ उन्होंने भी मुझसे पूछ लिया कि - क्या नैनीताल में बर्फ गिर गई है ? उनके सवाल से मुझे हंसी आ गई और मैंने हंसते-हंसते ही उन्हें जवाब दिया कि - नहीं ! अभी नहीं।
पहले तो मुझे बहुत बुरा लग रहा था कि वापसी के समय में बीमार पड़ना पर बाद में महसूस हुआ कि शायद जो होता है अच्छे के लिये ही होता है क्योंकि मुझे इस दौरान बसंत नगर बीच जाने का मौका मिल गया। मैंने वहाँ पर जी भर के 4-5 घंटे तक लहरों के साथ खूब खेला। अपने नाम रेत में लिखे और रेत के कई सारे महल भी खड़े किये जिन्हें बार-बार लहरें आ कर मिटा जाती थी और भी न जाने क्या-क्या किया क्योंकि इसके बाद तो पता नहीं मुझे फिर समन्दर देखने का मौका जाने कब मिलने वाला था। उसके बाद जिस रेस्टोरेंट में पहुचे, वो एक पंजाबी ढाबा था। जिसे कोई पंजाबी सज्जन ही चलाते थे। मीनू कार्ड देखा तो मैंने बिना देर किये अपने लिये एक प्लेट टिक्की और आलू का पराठा ऑर्डर किया। जिसे खाकर सच में मजा आ गया। इस बार भी अपने ऊपर ढेरों रेत लाद कर हम घर वापस आ गये।
दूसरे दिन नैनीताल के लिये मेरी वापसी थी। मैं मद्रास में कुछ समय और रहना एवं वहाँ के बारे में कुछ और भी जानना चाहती थी पर वापस आने की भी अपनी एक मजबूरी होती है जिसे टाला नहीं जा सकता था। अपने मद्रास प्रवास के दौरान मैं तमिल भाषा को ज्यादा तो नहीं समझ सकी पर हाँ मैंने 1-100 तक की गिनती पूरी सीख ली थी और अपने नोट पैड में लिख भी ली। अगले दिन हम लोग एयरपोर्ट के लिये निकल गये। मैं जब एयरपोर्ट में बैठी थी और अब घर वापस आने की थोड़ी उतावली भी महसूस करने लगी थी उसी समय एक सज्जन मेरे पास आये जो कि मद्रास के ही थे, मुझसे बोले - मुझे पानी की बोतल लेनी है क्या आप मेरा सामान थोड़ी देर के लिये देखेंगी ? मैंने हाँ वाले अंदाज में सिर हिला दिया। कुछ देर बाद वो वापस आये और हम दोनों में बातें होने लगी। जब मैंने उन्हें बताया कि मैं नैनीताल की रहने वाली हू तो उन्होंने झट से मेरे पांव छू लिये। उनके इस तरह के व्यवहार से मुझे थोड़ा अजीब महसूस हुआ और मैंने उनसे बोला कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं ? आप मुझसे उम्र में बड़े हैं। तब उन्होंने मुझसे कहा कि तुम हिमालय के नजदीक रहती हो और वहाँ के लोगों में तो भगवान रहते हैं। उनका पहाड़ों के प्रति इस आदर और सम्मान ने मुझे बेहद भावुक कर दिया और मुझे अपने पहाड़ों पर गर्व महसूस होने लगा। दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने मुझे नोट पैड, कलम और गणेश जी कि मूर्ति उपहार में दी जो मेरे लिये इस यात्रा की सबसे ज्यादा यादगार और अनमोल निशानी हैं। उसके बाद वो सज्जन अपने रास्ते चले गये और मैं नैनीताल वापस आ गई।
(समाप्त)