बाहर अभी भी अंधेरा ही है और सर्दी भी बहुत ज्यादा। मैं अनमने मन से उठ के भवाली जाने के लिये तैयार हुई जहाँ से मुझे लोहाजंग, चमोली के लिये टैक्सी पकड़नी है जो सुबह 7 बजे हल्द्वानी से भवाली पहुँचने वाली है। यदि वो टैक्सी छूटी तो फिर लोहाजंग पहुुंचना मुश्किल हो जायेगा। लोहाजंग से मुझे ब्रहामताल का टेªक करना है जो 3,840 मीटर की ऊँचाई पर स्थित एक बेहद खूबसूरत हिमालयी झील है...
स्टेशन जाते हुए घुप्प अंधेरी सड़क पर सन्नाटा पसरा रहा जिसे कुत्तों के भोंकने की आवाजें तोड़ती रही। बस कुछ नेपाली मजदूर दूध की पेटियाँ अपने पीठ पर लादे उन्हें घरों में बाँटने के लिये जाते जरुर दिखे। स्टेशन पर भी सन्नाटा है और भवाली के लिये कोई साधन नहीं मिला। कुछ टैक्सी वाले चक्कर काटने लगे और मनमानी बुकिंग में भवाली जाने को तैयार हैं पर कुछ देर खड़े रहने के बाद पिथौरागढ़ जाने वाली गाड़ी मिल गयी जिसने 7 बजे भवाली पहुँचा दिया...
जिस टैक्सी से मुझे जाना है उसका टायर पंक्चर हो गया इसलिये भवाली में कुछ देर इंतजार करना पड़ा जो बेहद उबाऊ और कठिन काम है तब तो और भी ज्यादा जब ठंडी भी गजब की हो। खैर भवाली में बने पार्क में आधा घंटा बिताया तब तक टैक्सी आ गयी और मैं अल्मोड़ा को निकल गयी...
रास्ते में कोसी नदी को देख कर दुःख हुआ क्योंकि अच्छी बारिश न होने के कारण कोसी सूखी पड़ी है। कुछ देर में टैक्सी अल्मोड़ा होते हुए सोमेश्वर पहुँची। सोमेश्वर घाटी हमेशा की तरह ही खूबसूरत लगी जिसे फसलों से लहलहाते खेत और भी आकर्षक बना रहे हैं...
सोमेश्वर से कौसानी होते हुए टैक्सी आगे बढ़ी और छोटे-छोटे गांवों, खेतों और जंगलों को पार करते हुए ग्वालदम पहुँची जहाँ खाने की लिये कुछ देर रुकी। मौसम में अभी भी हल्की ठंड है और बादल भी छाये हैं। यहाँ कुछ सैलानी सेल्फी लेते जरूर नजर आये। यहाँ से आगे का रास्ता ज्यादा संकीर्ण और घुमावदार होने लगा। अभी काफी लम्बा रास्ता तय करना है इसलिये ड्राइवर ने गाड़ी बहुत कंजूसी से रोकी पर रास्ते में एक शादी का नाच-गाना बेफिक्री से चल रहा है जिसने टेªफिक रोक दिया। गाँव की ये शादियाँ देखने में मजा आता है। इनमें एक ओर पारंपरिक रीति-रिवाज होते हैं तो वहीं ये नये जमाने की आबोहवा का मजा लेने से भी नहीं हिचकते फिर वो नाच-गाना हो या आधुनिक लिबास। यहाँ सब कुछ मिलता है। यहाँ तक की स्मार्ट फोन भी इंटरनेट कनेक्शन के साथ। वट्सैप और फेसबुक से ये अंजान नहीं हैं। हाँ ये अलग बात है कि इंटरनेट सिग्नल या तो आते नहीं या स्पीड बहुत कम होती है। कुछ युवक-युवतियाँ शादी की सेल्फी इंटरनेट पर अपडेट करना चाहते हैं पर शायद कन्क्टीविटी न होने के कारण अपडेट नहीं कर पा रहे जिसकी खीझ उनके चेहरों में दिखायी देती है। शादी की खुशी से बड़ा गम है यह इनके लिये। काफी खुशामद करके जैसे-तैसे बारात ने थोड़ा रास्ता दिया तो सड़क खुली और टैक्सी आगे बढ़ी...
आगे रास्ता कई जगहों पर टूटा है और लोग इन खस्ताहाल सड़कों पर जिन्दगी की बाजी लगाने को मजबूर हैं। पर नजारे बहुत खूबसूरत हैं। छोटे गाँवों के बीच से बहती हुई पिण्डर नदी बहुत अच्छी लग रही है। संकरी सड़कों से होते हुए कुछ देर में देवाल पहुँचे। यहाँ ड्राइवर ने चाय पीने के लिये टैक्सी रोकी तो मैं देवाल की छोटी सी बाजार देखने आ गयी। इस छोटी कस्बाई बाजार में स्थानीय लोगों के जरूरत का सारा सामान मिलता है। मैं एक फल की दुकान में गयी। दुकानदार ने संतरे मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा - यहाँ के संतरे एक बार खा लोगी तो हमेशा याद करोगी। उसकी बात पर मुझे कोई भरोसा नहीं है पर भूख लगने के कारण मैंने संतरे ले लिये और एक संतरा छील के खाया। वाक्य में क्या स्वादिष्ट संतरा है। इतना मीठा, रसीला और मुलायम संतरा मैंने इससे पहले कभी नहीं खाया। एक टुकड़ा मुँह में रखते ही ऐसे पिघल गया जैसे केंडी फ्लाॅस पिघलती है...
अब शाम होने लगी और आगे का रास्ता और भी खौफनाक हो गया। सड़कें कई जगहों में टूटी दिखी। लगभग डेढ़ घंटे में टैक्सी लोहाजंग पहुँच गयी और मैं लोहाजंग के अपने गैस्ट हाउस चली गयी...
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