17 अक्टूबर 2010 को मुझे अचानक ही नैनीताल के नज़दीकी गांव गेठिया जाने का मौका मिला। मेरे आफिस में काम करने वाले एक साथी के घर का गृह प्रवेश था और उसने अपने घर बुलाया था। नैनीताल से कैंट एरिया तक हम लोग गाड़ी से गये और फिर वहां से नये बने रास्ते से गेठिया की ओर कट गये। यह रास्ता बेहद खतरनाक है। बिल्कुल 90 डिग्री में बना हुआ पर गाड़िया इस रास्ते में ध्ड़ल्ले से चलती हैं। इस रास्ते पर आगे बढ़ने पर बारिश से हुई तबाही के निशान भी दिखते जा रहे थे। जब हम हल्द्वानी जाने वाली रोड में पहुंचे तो वहां पर पहचान के एक सज्जन खड़े थे जिनके साथ हमें अपने साथी के घर तक जाना था। जहां हमने गाड़ी रोकी वहां भी सड़क नीचे को धंसी हुई थी। इस बार की बरसात में जमीन अंदर से ही कुछ इस तरह हिली कि जैसे किसी ने जमीन को अंदर से ही चीर दिया हो।
खैर यहां से हम लोग पैदल ही एक खड़ंजे जैसे रास्ते पर नीचे की ओर चल दिये। पहले से खड़ंजे मिट्टी पत्थर के होते थे जिनमें पानी के कटने के लिये रास्ते बनाये जाते थे पर अब खड़ंजे सीमेंट बना दिये जाते हैं जिनमें पानी के कटने के लिये कोई जगह नहीं है। यही कारण है कि थोड़ी सी बारिश में भी भीषण तबाही हो जाती है। खैर इस रास्ते में अच्छी खासी हरियाली छायी हुई थी और रास्ते के इधर-उधर छोटे-छोटे मकान थे। मकान छोटे जरूर थे पर सब लेंटर वाली छत के मकान थे जिनका पहाड़ों में बनाये जाने का कोई तुक नहीं होता है। खैर हम लोग आगे बढ़ ही रहे थे कि मेरे एक साथी की नज़र बेल में लगी एक ककड़ी पर पड़ी और मुझसे बोले - यार ! बेल में बड़ी अच्छी ककड़ी लगी है। अगर मैं बच्चा होता तो पक्का इसे चोर के ले आता। मैंने भी कह दिया कि - चलो ! बचपन को याद कर ही लेते हैं और अगर दूसरी जगह कहीं ककड़ी मिले तो हाथ साफ कर ही लेंगे पर बदकिस्मती से दूसरी जगह ककड़ी मिली नहीं।
इसी रास्ते में एक पुराना सा मकान था जो पूरी तरह खंडहर हो चुका था। सर ने बताया कि - ये नीम करौली बाबा का मकान है। वो पहले यहीं आये थे और फिर यहां से कैंची धाम चले गये थे।
हम लोग आगे को बढ़ ही रहे थे कि दो रास्ते कट गये। एक रास्ता पुनी गांव को गया और दूसरा कुरियागांव को। हमें कुरियागांव को जाना था इसलिये हमने अपना रास्ता बदला और दूसरे रास्ते पर आ गये। इस रास्ते पर थोड़ा आगे पहुंचते ही काफी बड़े और फैले हुए खेत नज़र आये जिन्हें देखकर तबीयत खुश हो गयी। ये बड़े-बड़े खेत इस छोटे से पहाड़ी इलाके में अचानक ही अपनी ओर ध्यान खींच रहे थे। मैंने कहा - कितने अच्छे खेत हैं। यहां इन खेतों के पास कितना अच्छा लग रहा है। मेरी बात से सभी सहमत थे। यहां से कुछ ही देर बाद ही हम लोग अपने दोस्त के घर पहुंच गये।
उसके घर में काफी चहल-पहल थी। हम लोगों के जाते ही वो पीने के लिये स्रोत का पानी लेकर आया। थोड़ी देर उससे उसके गांव के बारे में बात की तो उसने बताया - यहां पानी की बहुत परेशानी है। मुश्किल से पीने के लिये ही पानी मिल पाता है। सिंचाई करने के लिये पानी नहीं होने के कारण खेती सिर्फ बरसात के महीने में ही होती है। हालांकि मैंने वाॅटर हारवेस्टिंग के लिये कहा पर सबका नजरिया उदासीन ही रहा। खैर चाय पीने के बाद हम लोग खाने के लिये पंगत में बैठ गये। खाना वाकय अच्छा था। घर के कुटे चावल और सेम की दाल। मेरा पसंदीदा खाना। हमने देखा कि लगभग हर मकान का बरामदा थोड़ा-थोड़ा नीचे की तरफ धंसा हुआ था इसलिये खाने के बाद हमने गांव वालों से जानना चाहा कि जमीन नीचे की ओर खिसकी हुई क्यों दिख रही है ? उन्होंने बताया - नीचे जो नाला बहता है वो लगातार मिट्टी को काट रहा है जिस कारण जमीन बैठती जा रही है।
हमारा साथी हमें अपना पुराना मकान दिखाने ले गया जो लगभग 100 से ज्यादा साल ही पुराना था। जिसे शहरी भाषा में हैरिटेज बिल्डिंग भी कहा जा सकता था। यह असली पहाड़ी मकान का नमूना था और शायद यही कारण भी था कि इतने सालों से टिका हुआ था। वहां से वापस लौटते हुए हम अपने एक और साथी के घर भी गये। उसके घर का बरामदा भी ध्ंासा हुआ था। हम जैसे ही उसकी मां से मिले उन्होंने कहा - सिंचाई नहीं हो पाती इसलिये खेती भी नहीं हो पाती है। बरसात में तो पानी हो जाता है पर गर्मियों में तो सिंचाई के लिये सबकी बारी लगती है। हम लोगों ने नालों में पाइप डाले हुए हैं पर वहां से पानी ऊपर खिंचने में बहुत परेशानी होती है। उन्होंने हमसे थोड़ी सब्जी ले जाने का अनुरोध भी किया जिसे हम उस समय मान नहीं पाये। उसके घर से वापस लौटते हुए हमने देखा कि रास्ते में कई जगह दरारें पड़ी थी और जमीन भी टेढ़ हुई थी जो इसी बरसात कि निशानी थीं। रास्ते में एक पहचान के सज्जन का घर भी था सो हम उनके घर भी चले गये। उनके मकान का बरामदा भी धंसा हुआ था। कुछ देर उनके साथ बैठने के बाद हम सड़क कि ओर वापस लौट लिये जहां हमारी गाड़ी खड़ी थी। नैनीताल को ऊपर से ही देखने में यह बात महसूस नहीं की जा सकती है कि नैनीताल से थोड़ी दूरी में ही इतने सुन्दर गांव बसे हुए हैं।
हम जिस रास्ते से आये थे और जिस रास्ते से अब वापस जाने वाले थे उस रास्ते में लिखा था - यह पैदल मार्ग है। पर उसमें गाड़िया खुलेआम चलती ही हैं। कुछ देर बाद एक अच्छा दिन बिता के हम भी उसी सड़क से वापस नैनीताल आ गये...
इसी रास्ते में एक पुराना सा मकान था जो पूरी तरह खंडहर हो चुका था। सर ने बताया कि - ये नीम करौली बाबा का मकान है। वो पहले यहीं आये थे और फिर यहां से कैंची धाम चले गये थे।
हम लोग आगे को बढ़ ही रहे थे कि दो रास्ते कट गये। एक रास्ता पुनी गांव को गया और दूसरा कुरियागांव को। हमें कुरियागांव को जाना था इसलिये हमने अपना रास्ता बदला और दूसरे रास्ते पर आ गये। इस रास्ते पर थोड़ा आगे पहुंचते ही काफी बड़े और फैले हुए खेत नज़र आये जिन्हें देखकर तबीयत खुश हो गयी। ये बड़े-बड़े खेत इस छोटे से पहाड़ी इलाके में अचानक ही अपनी ओर ध्यान खींच रहे थे। मैंने कहा - कितने अच्छे खेत हैं। यहां इन खेतों के पास कितना अच्छा लग रहा है। मेरी बात से सभी सहमत थे। यहां से कुछ ही देर बाद ही हम लोग अपने दोस्त के घर पहुंच गये।
उसके घर में काफी चहल-पहल थी। हम लोगों के जाते ही वो पीने के लिये स्रोत का पानी लेकर आया। थोड़ी देर उससे उसके गांव के बारे में बात की तो उसने बताया - यहां पानी की बहुत परेशानी है। मुश्किल से पीने के लिये ही पानी मिल पाता है। सिंचाई करने के लिये पानी नहीं होने के कारण खेती सिर्फ बरसात के महीने में ही होती है। हालांकि मैंने वाॅटर हारवेस्टिंग के लिये कहा पर सबका नजरिया उदासीन ही रहा। खैर चाय पीने के बाद हम लोग खाने के लिये पंगत में बैठ गये। खाना वाकय अच्छा था। घर के कुटे चावल और सेम की दाल। मेरा पसंदीदा खाना। हमने देखा कि लगभग हर मकान का बरामदा थोड़ा-थोड़ा नीचे की तरफ धंसा हुआ था इसलिये खाने के बाद हमने गांव वालों से जानना चाहा कि जमीन नीचे की ओर खिसकी हुई क्यों दिख रही है ? उन्होंने बताया - नीचे जो नाला बहता है वो लगातार मिट्टी को काट रहा है जिस कारण जमीन बैठती जा रही है।
हमारा साथी हमें अपना पुराना मकान दिखाने ले गया जो लगभग 100 से ज्यादा साल ही पुराना था। जिसे शहरी भाषा में हैरिटेज बिल्डिंग भी कहा जा सकता था। यह असली पहाड़ी मकान का नमूना था और शायद यही कारण भी था कि इतने सालों से टिका हुआ था। वहां से वापस लौटते हुए हम अपने एक और साथी के घर भी गये। उसके घर का बरामदा भी ध्ंासा हुआ था। हम जैसे ही उसकी मां से मिले उन्होंने कहा - सिंचाई नहीं हो पाती इसलिये खेती भी नहीं हो पाती है। बरसात में तो पानी हो जाता है पर गर्मियों में तो सिंचाई के लिये सबकी बारी लगती है। हम लोगों ने नालों में पाइप डाले हुए हैं पर वहां से पानी ऊपर खिंचने में बहुत परेशानी होती है। उन्होंने हमसे थोड़ी सब्जी ले जाने का अनुरोध भी किया जिसे हम उस समय मान नहीं पाये। उसके घर से वापस लौटते हुए हमने देखा कि रास्ते में कई जगह दरारें पड़ी थी और जमीन भी टेढ़ हुई थी जो इसी बरसात कि निशानी थीं। रास्ते में एक पहचान के सज्जन का घर भी था सो हम उनके घर भी चले गये। उनके मकान का बरामदा भी धंसा हुआ था। कुछ देर उनके साथ बैठने के बाद हम सड़क कि ओर वापस लौट लिये जहां हमारी गाड़ी खड़ी थी। नैनीताल को ऊपर से ही देखने में यह बात महसूस नहीं की जा सकती है कि नैनीताल से थोड़ी दूरी में ही इतने सुन्दर गांव बसे हुए हैं।
हम जिस रास्ते से आये थे और जिस रास्ते से अब वापस जाने वाले थे उस रास्ते में लिखा था - यह पैदल मार्ग है। पर उसमें गाड़िया खुलेआम चलती ही हैं। कुछ देर बाद एक अच्छा दिन बिता के हम भी उसी सड़क से वापस नैनीताल आ गये...