Thursday, February 5, 2009

निकले थे कहां जाने के लिये.....

आज का दिन तो बड़ा ही मस्त रहा। असल में हुआ कुछ यूं कि हम कुछ लोगों ने 4-5 महीने से एक ट्रेकिंग में जाने का फैसला किया था। जहां जाना था वो जगह बिल्कुल 90 डिग्री की खड़ी चढ़ाई में थी सो वहां जाने के लिये हम कुछ ज्यादा ही उत्सुक थे।। हमें रास्ते का पता नहीं था इसलिये उसके नजदीक के गांव वालों से रास्ता पता किया। गांव वालों के साथ सबसे मुश्किल होती कहीं का पता उगलवाना। पूरी दुनिया के बारे में बता देंगे पर जिस जगह के बारे में पूछो उसी के बारे में नहीं बताते। या जितने लोग होंगे उतने ही रास्ते बता देंगे। इस कारण हम लोग काफी समय तक सही रास्ते का अनुमान नहीं लगा पाये। एक दिन हमें पहचान के कोई सज्जन मिले उन्होंने हमें एक सीधा रास्ता बताया और कहा कि ये रास्ता थोड़ा लम्बा है पर तुम लोग पहुंच जाओगे। हम लोगों ने निर्णय किया कि सड़क तक का रास्ता हम गाड़ी से तय करेंगे और आगे 14 किमी. का रास्ता पैदल तय करेंगे। उसके बाद वहां जाने की तारीख तय कर ली गई और नियत तारीख को हम लोग चल दिये। सड़क का रास्ता हमने गाड़ी से तय किया और वहां से आगे हम लोग पैदल निकल गये।

जब हम आगे बड़े तो लगा कि सड़क कच्ची जरूर है पर इसमें गाड़ी आराम से आ सकती थी। मैं तो पैदल चलना पसंद करती हूं इसलिये ज्यादा मुझे तो खुशी ही हो रही थी कि अच्छा हुआ जो ये बात पहले पता नहीं चली। पर मेरे साथ के दो लोगों का कहना था कि - यहां तक गाड़ी में आ जाते तो समय बच जाता। अब मुझे उनकी टांग खींचने का अच्छा बहाना मिल गया सो उनसे कह दिया - ये बोलो की रास्ता देख कर डर गये।

खैर हम लोग अपने हंसी-मजाक और टांग खिंचाई के साथ आगे बढ़े जा रहे थे। एक जगह एक मंदिर दिखा और उसके पास ही हमें कुछ छोटी लड़कियां खड़ी दिखायी दी। हमने उनसे उस मंदिर के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया - ये `बुड भूमिया जी´ का मंदिर है जो जंगल और जानवरों की रक्षा करते हैं। इस मंदिर के पास दो रास्ते थे जिस करण हम समझ नहीं पाये कि हमें कौन से रास्ते में जाना चाहिये ? इसलिये हमने अपने दिमाग का इस्तेमाल किया और सोचा कि इनसे पूछ लेना चाहिये। जो हमारी सबसे बड़ी बेवकूफी रही। जिसने हमारी पूरी ट्रेकिंग का रास्ता ही बदल दिया। उन्होंने हमसे कहा कि यहां से थोड़ी सी दूरी पर एक ऐसा ही मंदिर और है, उसके आगे कुछ भी नहीं है। और हमें दूसरे रास्ते पे मोड़ दिया जहां से हमारी पूरी यात्रा का नक्शा ही बदल गया।

हम लोग आने वाली मुसीबत से बेखबर रास्ते में आगे बढ़े जा रहे थे अपने आपसी हंसी थोड़ी मजाक के साथ। काफी आगे चले गये पर जिस जगह जाना था वहां का कोई नामोनिशान ही न था। बस कुछ था तो जंगल ही जंगल। अब तो पेट में भी चूहे दौड़ने लगे थे इसलिये हमने साथ में लाये हुए फल खाने शुरू कर दिये। जब काफी आगे बढ़े गये तो बड़ी मुश्किल से एक घर नजर आया। हमने उसमें आवाज लगायी तो एक बुजुर्ग महिला बाहर निकल के आयी। हमने उनसे जगह के बारे में पूछा, उन्होंने बताया - तुम लोग तो बिल्कुल उल्टे रास्ते में आ गये हो। अब कैसे जाओगे ? अब तो बहुत देर हो जायेगी और ये तो पूरा घना जंगल है और तो और जानवरों और सांपों का डर भी है। तुम लोग अकेले यहां आ कैसे गये मुझे तो ये समझ नहीं आ रहा।

हमने उन्हें बताया कि हमें दो लड़कियों ने ये रास्ता बता दिया और हम इस रास्ते में आ गये। उन्होंने हमसे चाय पीने का अनुरोध किया और हम वहीं चाय पीने रुक गये क्योंकि चाय का अमल तो हमें भी लग रहा था। उन्होंने हमें एक दूसरा रास्ता बताया और कहा कि अब हमें वापस लौट जाना चाहिये क्योंकि इस रास्ते से तो हमें रात हो जायेगी। फिर वापसी कैसे करोगे ? जंगल में रहने की कोई जगह नहीं है। पर हम अभी भी जाने का इरादा बनाये बैठे थे सो उनके बताये रास्ते में आगे बढ़ गये। इस रास्ते से जाते हुए हमें एक गांव मिला। वहां हमने लोगों से आगे का रास्ता पूछा तो सबने यही कहा कि - ये तो उल्टा रास्ता है और हम तो तुम्हें आगे जाने के लिये नहीं कहेंगे क्योंकि इतने खतरनाक जंगल में तो हम भी जाने से पहले सौ बार सोचते हैं। तुम लोग तो शहरी हो। हमने उन्हें बोला कि - आप फिक्र मत कीजिये। हमें जंगलों का पूरा अंदाजा है इसलिये उसकी कोई परेशानी नहीं है। उन्होंने अपनी एक बच्ची को हमारे साथ थोड़ा आगे तक भेज दिया और कहा कि उससे आगे का रास्ता वहां किसी से पूछ लेना और हो सके तो वापस लौट जाइये। यहां से मोटर सड़क थोड़ी दूरी पर ही है। मैं खुद तुम्हें वहां तक छोड़ दूंगा। पर हमें तो अपनी जिद थी कि बस जाना ही है। इसलिये आगे बढ़ गये। उस बच्ची ने हमें थोड़ा आगे तक छोड़ दिया और वापस लौट गयी।


यहां से थोड़ा आगे जाने पर हमें एक घर मिला जिसमें दो बड़ी लड़कियां दिखी, हमने उनसे पूछा - उनकी बातों से लगा की इनको जगह का अच्छा ज्ञान है। उन्होंने हमें रास्ता भी अच्छे से बता दिया और हमारे नोट पैड में हमारे लिये छोटा सा नक्सा भी बना दिया। पर उन दोनों ने भी कहा कि अगर आप लोग सुबह 6-7 बजे से निकलते तो अच्छा था अभी तो 3 बज गये हैं। बहुत रात हो जायेगी और आजकल अंधेरा भी जल्दी होता है। जंगल में बहुत खतरा है आप लोग दूसरे बार कभी आना।

उन्होंने भी हमें सड़क में जाने वाला रास्ता दिखा दिया और कहा कि यदि हम इस समय सड़क पर पहुंच जायेंगे तो कोई गाड़ी मिल सकती है उसके बाद तो गाड़ी भी नहीं मिलेगी। साथ मैं उन्होंने यह भी कह दिया कि यदि ऐसा कुछ होगा तो आप लोग हमारे घर आकर रह लेना। उनके सरल व्यवहार से हम लोगों को अच्छा लगा उनकी बात भी सही लगी पर वापस लौटना हमें बहुत अखर रहा था क्योंकि आज तक हम में से किसी के साथ ऐसा नहीं हुआ कि हम आधे से पलटे हों इसलिये वापस लौटना बेवकूफी लग रही थी। पर जैसे-जैसे हम उस रास्ते में आगे बढ़े हमें लगा कि शायद गांव वाले सही कह रहे हैं। हमारा आगे बढ़ना खतरनाक हो सकता है। उस पर हम लोग रात को रुकने के इंतजाम से भी नहीं आये थे इसलिये एक जगह बैठ के हमने अपने साथ लाया हुआ खाना खाया और लम्बी बहस करने के बाद ये नतीजा निकाला कि हमारे लिये वापस लौटना ही ठीक होगा।

दूसरे बार उस जगह हर हाल में जाना ही है यह फैसला करते हुए हम लोग सड़क की तरफ लौट गये और वहां से एक गाड़ी में लिफ्ट लेकर वापस अपने शहर पहुंच गये। दूसरे दिन जब हमसे हमारे साथ वालों ने हमारी ट्रेकिंग के बारे में पूछा तो हमने सबको बोला कि - हां हम लोग उस जगह पहुंच गये थे और हमारा रास्ता बहुत अच्छा रहा और भी लम्बी-लम्बी छोड़ी। आज तक ये राज किसी और को मालूम नहीं है। कुल मिला कर इस ट्रंकिंग में भी बहुत मजा आया पर अफसोस इस बात का ही रहा कि जिस जगह जाना था वहां नहीं जा सके........

इस जगह का नाम मैं बाद में फिर कभी बताउंगी जब इस जगह पहुंच जायेंगे......