अल्मोड़ा से 34 किमी. दूर स्थित जागेश्वर धाम है जो अपने मंदिरों के लिये विश्व प्रसिद्ध है। जागेश्वर में जो मंदिर हैं ये 8वीं से 12 वीं शताब्दी के बीच बने हुए हैं। जागेश्वर के मंदिर अपने वास्तुकला के लिये बेहद प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों का निर्माण चन्द और कत्यूर वंश के राजाओं के द्वारा किया गया है। जागेश्वर धाम 124 मंदिरों का समूह है जिसमें हर आकार के मंदिर हैं। कुछ बहुत बड़े तो कुछ बहुत छोटे।
जागेश्वर में बेहद कई देवी-देवताओं की बेहद आकर्षक मूर्तियां हैं। शिव-पार्वती और विष्णु भगवान की मूर्तियां विशेष रूप से आकर्षक हैं। महामृत्युंजय और जागेश्वर भगवान के मंदिर सबसे प्राचीन मंदिर माने जाते हैं। जागेश्वर धाम से से पहले दंडेश्वर मंदिर पड़ता है। यहां पर काफी विशाल मंदिर हैं। इन मंदिरों की उंचाई लगभग 100 फुट तक है। इन मंदिरों के उपरी भाग में छत जैसी बनी हुई हैं जिनमें कलश रखे गये हैं।
महामृत्युंजय मंदिर में धातु का तांत्रिक यंत्र भी है। जागेश्वर धाम को भारत के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक माना जाता है। इन मंदिरों में पुष्टिदेवी, नवग्रह, सूर्य भगवान आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां भी हैं। मंदिरों की बाहरी दिवारों में कुछ शिलालेख भी लिखे हैं पर इन्हें अभी तक भी पढ़ा नहीं जा सका है।
सावन के माह में यहां पर शिवजी की विशेष पूजा पार्थी पूजा कराने के लिये दूर-दूर से लोग आते हैं। पूरा माह शिव की पूजा की जाती है। इस दौरान एक छोटा सा बाजार भी मंदिर के बाहर लगाया जाता है।
जागेश्वर मंदिरों से लगा हुआ एक शमशान घाट भी है। यहां के लोगों का मानना है कि इसमें दाह संस्कार करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इन्हीं मंदिरों से थोड़ी दूरी पर एक पुरात्व विभाग द्वारा संग्रहालय बनाया गया है जिसमें कई प्राचीन मूर्तियों का संरक्षण किया गया है।