भाटकोट से वापस आकर कुछ देर आराम कर अपने दोस्त की दुकान में चली गयी। इस समय बाजार में काफी हलचन दिखने लगी थी। लोग अपनी रोजाना की जिन्दगी में व्यस्त होने लगे थे। जब दुकान पहुंची उस समय मेरे दोस्त के डैडी भी दुकान में ही थे। मेरी कुछ देर उनके साथ बातें हुई और फिर मैं बाजार की चहल-पहल देखने के लिये निकल आयी। इस समय इस चैराहे में सब्जी और फलों की दुकानें लगी हुई थी। ये सब देखना एक अलग ही एहसास देता है। इस समय तो दुकानें भी खुल चुकी थी। हालांकि ये दुकानें बहुत बड़ी-बड़ी नहीं हैं पर फिर भी इनमें जरूरत का सारा सामान मिल जाता है। मैं पूरा एक चक्कर इस रास्ते में फिर से गयी। सुबह यहां बिल्कुल सन्नाटा पसरा हुआ था पर इस समय उतनी ही चहल-पहल थी। मैं जब दुकान वापस लौटी तब तक मेरा दोस्त भी अपने काम निपटा चुका था। उसके बाद मैंने उसके डैडी से विदा ली और हम लोग निकल गये। आज हमें गुफा देखने के लिये जाना था।
पर उससे पहले कुछ काम निपटाने थे सो इसी बहाने मुझे पिथौरागढ़ की अलियों-गलियों में झांकने का भी मौका मिल गया और इन्हीं अलियों-गलियों से होते हुए हम नवल दा की दुकान पहुंचे। पहले नवल दा भी हमारे साथ आने वाले थे पर फिर उन्होंने कहा कि वो शाम को टेªकिंग में साथ चलेंगे। आज हमें फिर कल वाले ही रास्ते पर जाना था। सुबह के समय हल्की सी धुंध पूरी घाटी में बिखरी हुई लग रही थी हालांकि मौसम काफी गरम था। इस समय इस रास्ते से पिथौरागढ़ एक अलग ही मूड में नजर आ रहा था। कुछ देर बाद हम लोग भगवान दा की दुकान में पहुंच गये। वहां पहुंचने पर हम वहीं से थोड़ी दूरी में छड़ा गांव की ओर निकल गये जहां से हिमालय का नजारा भी अच्छा लगता है और गांव भी काफी अच्छा है। यहां से वाकय में नजारा बहुत अच्छा था। गांव कुछ ऐसा लग रहा था जैसे हिमालय की आगोश में सिमटा हुआ हो। कुछ देर यहां फोटोग्राफी करने के बाद हम वापस आ गये। लौटते हुए हमें रास्ते में भीमशिला दिखी जो पहले काफी बड़ी थी पर अब टूट गयी है। इस गांव को जाने वाला रास्ता भी बेहद खूबसूरत है।
जब हम लोग वापस दुकान पहुंचे भगवान दा ने पीने के लिये छांछ दी। उस समय छांछ की जरूरत भी थी क्योंकि आज सुबह से ही मुझे पानी की कुछ ज्यादा ही प्यास लग रही थी। फ्रिज में रखी होने के कारण मैंने अपनी छांछ बाद में पीने के लिये रख दी। भगवान दा की दुकान में एक युवक बैठा था जो पेशे से पंडित था और उसे कहीं शादी करवाने भी जाना था। वो एक फालतू विषय पर मेरे दोस्त से उलझ गया और शास्त्रों का ज्ञान बिखेरने लगा। जब हमने उसे अपने लाॅजिक बता दिये तो बेचारा खिसियाते हुए बोला - अगर में इस पूरे विधि-विधान से शादी करवाउं तो एक दिन में एक शादी भी नहीं हो पायेगी और मुझे तो एक दिन में दो-तीन शादियां करवानी होती हैं। एक बार फिर अपने धर्म के नियम-कायदों पर हमें हंसी आ गयी जिन्हें अपनी जरूरत के अनुसार जब जैसे चाहे बदल सकते हैं।
खैर हम लोग वहां से गुफा देखने निकल गये। गुफा जाने के लिये हमने थोड़ा रास्ता गाड़ी से तय किया और फिर उसके बाद गाड़ी रास्ते में खड़ी कर हम एक जंगल की ओर निकल गये। यहां पर थोड़ी ठंडी लगी क्योंकि जंगल बेहद घना था और पाला गिरा होने के कारण बेहद ठंडा हो रहा था। हमने करीब आधा किमी. का रास्ता इस जंगल के बीच से तय किया। जब हम गुफा के पास पहुंचे तो उसके अंदर जाने का रास्ता देख कर ही मैं तो बेहद उत्साहित हो गयी। पहले हमने तय किया था कि सब अंदर जायेंगे पर भगवान दा ने कहा कि उन्हें बहुत ठंड लग रही है इसलिये वो बाहर खड़े रहेंगे।
यह गुफा अभी कुछ समय पहले ही मिली है। आर्कियोलाॅजिकल वालों ने इसे अपने अधिकार में ले रखा है और इसकों ठीक करवाने का काम उनके द्वारा ही किया जाना है। पर फिलहाल अभी यह गुफा बिल्कुल उसी हालत में है जिस हालत में मिली थी। जब हम इसके अंदर गये जमीन बिल्कुल कीचड़ से भरी हुई थी और पानी थोड़ा ठंडा लग रहा था। जब हम गुफा के पहले स्ट्रैच में पहुंचे ही थे कि एक चमगादड़ महाशह लटके हुऐ दिखायी दिये जो हमसे बेफिक्र सोया हुआ था। उसे उसकी बेफिकरी के साथ छोड़ कर हम आगे बढ़ गये। गुफा का पहला स्ट्रेच हमने लगभग घुटनों के बल चलते हुए तय किया। गुफा के अंदर बेहद अंधेरा था इसलिये हम अपने टाॅर्च साथ में लेकर गये थे और उन्हीं से रोशनी कर रहे थे। इसके आगे का काफी लम्बा स्ट्रैच हमने आधा झुक कर पार किया। हर जगह पर यह डर बना हुआ था कि कहीं सर किसी नुकीले पत्थर से न टकरा जाये या हमारे कैमरे दिवारों से न टकरा जायें। इसके आगे का तीसरा स्ट्रैच हमने खड़े-खड़े तय किया पर यह रास्ता इतना पतला था कि चलने में परेशानी हो रही थी पर क्योंकि हम पतले दुबले प्राणी हैं तो आसानी से रास्ता पार कर गये।। मैंने अपने दोस्त से कहा भी कि - पतले होने के फायदे तो बहुत होते हैं। खैर गुफा के अंदर मौसम एकदम बदल गया था। यहां बिल्कुल ठंड नहीं थी और पानी भी थोड़ा गर्म लग रहा था। जब हम गुफा के अंतिम छोर पर पहुंचे वहां पानी का कुड दिखा। हम इस कुड से दूर ही रहे क्योंकि इसमें फूल चढ़े हुए दिखायी दिये। गुफा की दिवारों पर कैल्सियम की पपड़िया जमी हुई थी। इस गुफा के अंदर हालांकि अभी कुछ साफ नहीं है पर गहराई से देखने पर लगा की प्राचीन देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। मेरी अपनी समझ के अनुसार मुझे शिव और देवी की मूर्तियों के से नमूने भी इसमें दिखायी दिये।
कुछ देर तक हम लोग गुफा को देखते रहे और हर एंगिल से फोटो लेते रहे। इस समय बिल्कुल ऐसा लग रहा था जैसे हम डिस्कवरी का कोई प्रोग्राम कर रहे हैं जिसकी रिसर्च के लिये यहां आये हुए हों। खैर झूठा ही सही पर वो अहसास भी अपने आप में रोमांचित कर देने वाला था। कुछ समय बाद हम उसी तरह वापस लौट आये जिस तरह अंदर गये थे। बाहर लौटते हुए मैंने चमकादढ़ के कुछ तस्वीरें उसे परेशान किये बगैर ले ली। गुफा के बाहर एक पानी की टंकी बनायी है जिसमें अंदर के कुंड का पानी आकर जमा होता है। हमने यहां यह पानी पिया अपने हाथ-पैर धोये जो कि बुरी तरह कीचढ़ में सने हुए थे। उसके बाद जंगल का रास्ता तय करते हुए गाड़ी तक आये और फिर दुकान वापस आ गये। (फिलहाल मैं इस गुफा की तस्वीरें नैट पर नहीं लगा सकती हूं।)
वापस आकर छांछ पी और खाना बनने तक तय किया कि हम पास में ही मोस्टमानूं के मंदिर जायेंगे। कहा जाता है कि मोस्टमानूं भगवान कुमाउं के राजा थे। यहां एक मेले का आयोजन भी होता है। इस मंदिर के अंदर जाते हुए बाहर प्रांगण में विशाल झूला टंगा हुआ है। इस झूले से गंगोलीहाट का नजारा दिखायी देता है। हालांकि यह एक प्राचीन मंदिर है पर अब इसे पूरी तरह आधुनिक कर दिया गया है जो इसकी प्राचीनता को कहीं से भी नहीं दिखाता है। जब मैंने पहले दिन भी इस मंदिर के गेट को देखा था तो मुझे लगा था कि शायद कोई रिजाॅर्ट होगा पर बाद में पता चला कि मोस्टमानू का मंदिर यही है। मैं इस मंदिर के अंदर अकेले ही गयी और अच्छे से इस मंदिर को देखा और बात का दुःख होता रहा कि हमारी अपनी चीजों को हम खुद ही कितनी आसानी से छोड़ के आधुनिकता के रंग में रंग जाते हैं। इस मंदिर के अंदर शिव की मूर्ति स्थापित है। मुझे तो वह मूर्ति भी प्राचीन नहीं लगी खैर थोड़ा उदासी के साथ हम वापस दुकान आये। जहां हमारे लिये आलू-गोभी की सब्जी और पूरी इंतजार कर रहे थे। खाना खाने के बाद हम वापस लौट लिये क्योंकि अभी हमें एक ट्रेकिंग के लिये भी निकलना था...
जारी...
पर उससे पहले कुछ काम निपटाने थे सो इसी बहाने मुझे पिथौरागढ़ की अलियों-गलियों में झांकने का भी मौका मिल गया और इन्हीं अलियों-गलियों से होते हुए हम नवल दा की दुकान पहुंचे। पहले नवल दा भी हमारे साथ आने वाले थे पर फिर उन्होंने कहा कि वो शाम को टेªकिंग में साथ चलेंगे। आज हमें फिर कल वाले ही रास्ते पर जाना था। सुबह के समय हल्की सी धुंध पूरी घाटी में बिखरी हुई लग रही थी हालांकि मौसम काफी गरम था। इस समय इस रास्ते से पिथौरागढ़ एक अलग ही मूड में नजर आ रहा था। कुछ देर बाद हम लोग भगवान दा की दुकान में पहुंच गये। वहां पहुंचने पर हम वहीं से थोड़ी दूरी में छड़ा गांव की ओर निकल गये जहां से हिमालय का नजारा भी अच्छा लगता है और गांव भी काफी अच्छा है। यहां से वाकय में नजारा बहुत अच्छा था। गांव कुछ ऐसा लग रहा था जैसे हिमालय की आगोश में सिमटा हुआ हो। कुछ देर यहां फोटोग्राफी करने के बाद हम वापस आ गये। लौटते हुए हमें रास्ते में भीमशिला दिखी जो पहले काफी बड़ी थी पर अब टूट गयी है। इस गांव को जाने वाला रास्ता भी बेहद खूबसूरत है।
जब हम लोग वापस दुकान पहुंचे भगवान दा ने पीने के लिये छांछ दी। उस समय छांछ की जरूरत भी थी क्योंकि आज सुबह से ही मुझे पानी की कुछ ज्यादा ही प्यास लग रही थी। फ्रिज में रखी होने के कारण मैंने अपनी छांछ बाद में पीने के लिये रख दी। भगवान दा की दुकान में एक युवक बैठा था जो पेशे से पंडित था और उसे कहीं शादी करवाने भी जाना था। वो एक फालतू विषय पर मेरे दोस्त से उलझ गया और शास्त्रों का ज्ञान बिखेरने लगा। जब हमने उसे अपने लाॅजिक बता दिये तो बेचारा खिसियाते हुए बोला - अगर में इस पूरे विधि-विधान से शादी करवाउं तो एक दिन में एक शादी भी नहीं हो पायेगी और मुझे तो एक दिन में दो-तीन शादियां करवानी होती हैं। एक बार फिर अपने धर्म के नियम-कायदों पर हमें हंसी आ गयी जिन्हें अपनी जरूरत के अनुसार जब जैसे चाहे बदल सकते हैं।
खैर हम लोग वहां से गुफा देखने निकल गये। गुफा जाने के लिये हमने थोड़ा रास्ता गाड़ी से तय किया और फिर उसके बाद गाड़ी रास्ते में खड़ी कर हम एक जंगल की ओर निकल गये। यहां पर थोड़ी ठंडी लगी क्योंकि जंगल बेहद घना था और पाला गिरा होने के कारण बेहद ठंडा हो रहा था। हमने करीब आधा किमी. का रास्ता इस जंगल के बीच से तय किया। जब हम गुफा के पास पहुंचे तो उसके अंदर जाने का रास्ता देख कर ही मैं तो बेहद उत्साहित हो गयी। पहले हमने तय किया था कि सब अंदर जायेंगे पर भगवान दा ने कहा कि उन्हें बहुत ठंड लग रही है इसलिये वो बाहर खड़े रहेंगे।
यह गुफा अभी कुछ समय पहले ही मिली है। आर्कियोलाॅजिकल वालों ने इसे अपने अधिकार में ले रखा है और इसकों ठीक करवाने का काम उनके द्वारा ही किया जाना है। पर फिलहाल अभी यह गुफा बिल्कुल उसी हालत में है जिस हालत में मिली थी। जब हम इसके अंदर गये जमीन बिल्कुल कीचड़ से भरी हुई थी और पानी थोड़ा ठंडा लग रहा था। जब हम गुफा के पहले स्ट्रैच में पहुंचे ही थे कि एक चमगादड़ महाशह लटके हुऐ दिखायी दिये जो हमसे बेफिक्र सोया हुआ था। उसे उसकी बेफिकरी के साथ छोड़ कर हम आगे बढ़ गये। गुफा का पहला स्ट्रेच हमने लगभग घुटनों के बल चलते हुए तय किया। गुफा के अंदर बेहद अंधेरा था इसलिये हम अपने टाॅर्च साथ में लेकर गये थे और उन्हीं से रोशनी कर रहे थे। इसके आगे का काफी लम्बा स्ट्रैच हमने आधा झुक कर पार किया। हर जगह पर यह डर बना हुआ था कि कहीं सर किसी नुकीले पत्थर से न टकरा जाये या हमारे कैमरे दिवारों से न टकरा जायें। इसके आगे का तीसरा स्ट्रैच हमने खड़े-खड़े तय किया पर यह रास्ता इतना पतला था कि चलने में परेशानी हो रही थी पर क्योंकि हम पतले दुबले प्राणी हैं तो आसानी से रास्ता पार कर गये।। मैंने अपने दोस्त से कहा भी कि - पतले होने के फायदे तो बहुत होते हैं। खैर गुफा के अंदर मौसम एकदम बदल गया था। यहां बिल्कुल ठंड नहीं थी और पानी भी थोड़ा गर्म लग रहा था। जब हम गुफा के अंतिम छोर पर पहुंचे वहां पानी का कुड दिखा। हम इस कुड से दूर ही रहे क्योंकि इसमें फूल चढ़े हुए दिखायी दिये। गुफा की दिवारों पर कैल्सियम की पपड़िया जमी हुई थी। इस गुफा के अंदर हालांकि अभी कुछ साफ नहीं है पर गहराई से देखने पर लगा की प्राचीन देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। मेरी अपनी समझ के अनुसार मुझे शिव और देवी की मूर्तियों के से नमूने भी इसमें दिखायी दिये।
कुछ देर तक हम लोग गुफा को देखते रहे और हर एंगिल से फोटो लेते रहे। इस समय बिल्कुल ऐसा लग रहा था जैसे हम डिस्कवरी का कोई प्रोग्राम कर रहे हैं जिसकी रिसर्च के लिये यहां आये हुए हों। खैर झूठा ही सही पर वो अहसास भी अपने आप में रोमांचित कर देने वाला था। कुछ समय बाद हम उसी तरह वापस लौट आये जिस तरह अंदर गये थे। बाहर लौटते हुए मैंने चमकादढ़ के कुछ तस्वीरें उसे परेशान किये बगैर ले ली। गुफा के बाहर एक पानी की टंकी बनायी है जिसमें अंदर के कुंड का पानी आकर जमा होता है। हमने यहां यह पानी पिया अपने हाथ-पैर धोये जो कि बुरी तरह कीचढ़ में सने हुए थे। उसके बाद जंगल का रास्ता तय करते हुए गाड़ी तक आये और फिर दुकान वापस आ गये। (फिलहाल मैं इस गुफा की तस्वीरें नैट पर नहीं लगा सकती हूं।)
वापस आकर छांछ पी और खाना बनने तक तय किया कि हम पास में ही मोस्टमानूं के मंदिर जायेंगे। कहा जाता है कि मोस्टमानूं भगवान कुमाउं के राजा थे। यहां एक मेले का आयोजन भी होता है। इस मंदिर के अंदर जाते हुए बाहर प्रांगण में विशाल झूला टंगा हुआ है। इस झूले से गंगोलीहाट का नजारा दिखायी देता है। हालांकि यह एक प्राचीन मंदिर है पर अब इसे पूरी तरह आधुनिक कर दिया गया है जो इसकी प्राचीनता को कहीं से भी नहीं दिखाता है। जब मैंने पहले दिन भी इस मंदिर के गेट को देखा था तो मुझे लगा था कि शायद कोई रिजाॅर्ट होगा पर बाद में पता चला कि मोस्टमानू का मंदिर यही है। मैं इस मंदिर के अंदर अकेले ही गयी और अच्छे से इस मंदिर को देखा और बात का दुःख होता रहा कि हमारी अपनी चीजों को हम खुद ही कितनी आसानी से छोड़ के आधुनिकता के रंग में रंग जाते हैं। इस मंदिर के अंदर शिव की मूर्ति स्थापित है। मुझे तो वह मूर्ति भी प्राचीन नहीं लगी खैर थोड़ा उदासी के साथ हम वापस दुकान आये। जहां हमारे लिये आलू-गोभी की सब्जी और पूरी इंतजार कर रहे थे। खाना खाने के बाद हम वापस लौट लिये क्योंकि अभी हमें एक ट्रेकिंग के लिये भी निकलना था...
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