नैनीताल से 23 किमी दूर सातताल नाम की एक बहुत ही खुबसूरत जगह है। यहां पर सात तालों - गरूड़ ताल, नल-दमयंती ताल, राम, लक्ष्मण, सीता ताल तथा पुर्ण ताल, सुखा ताल।
सबसे पहले जो ताल पड़ती है वो है नल-दमयंती ताल। पौराणिक कथाओं के अनुसार नल दमयन्ती झील का नाम एक राजा नल और उसकी पत्नी दमयन्ती के नाम पर पड़ा जो यहां पर आये थे और बाद में इस ताल में ही उनकी समाधि बन गयी। उस समय में यह ताल बहुत बड़ी थी और इससे लगभग पूरे गांव में सिंचाई की जाती थी इसी कारण यहां की खेती भाबर की खेती को भी मात करती थी और यहां पर बहुत घना जंगल भी था जो अब खत्म होने लगा है।
उसी समय एक महात्मा के द्वारा इस झील में मछलियां पाली गई थी और ऐसी मान्यता रही कि इस झील में कभी भी मछलियां नहीं मारी जा सकती हैं। यह मान्यता आज भी बनी हुई हैै जिस की वजह से इस झील में आज भी काफी बड़ी और प्रमुख मछलियों का अस्तित्व बचा हुआ है। इन मछलियों में प्रमुख हैं सिल्वर कार्प, गोल्डन कार्प और महासीर जिन्हें बिना किसी मेहनत के झील के बिल्कुल सापफ पानी में यहां वहां घूमते हुए आसानी के साथ देखा जा सकता है।
इसके बाद गरूड़ ताल पड़ती है। यह छोटी सी ताल है और इसका पानी बहुत ही साफ है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस झील के पास पांडवों के वनवास के दौरान द्रोपदी ने अपनी रसोई बनाई थी। द्रोपदी द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले सिल-बट्टा आज भी यहां पे पत्थरों के रूप में मौजूद है। स्थानीय लोगों की ऐसी मान्यता है कि इस पूरे इलाके में पांडव अपने वनवास के दौरान रहे थे।
इसी ताल से कुछ आगे राम, लक्ष्मण, सीता ताल है। यह ताल सबसे बड़ी ताल है जिसमें तीनों ताल एक साथ जुड़ी हुई है। 65 वषीZय एक स्थानीय महिला से जब मैंने यह पूछा कि इसे राम, लक्ष्मण, सीता ताल क्यों कहते हैं ? क्या यहां राम, लक्ष्मण, सीता भी कभी रहे थे ? तो उनका कहना था कि रहे ही होंगे क्योंकि किसी भी जगह का नाम ऐसे ही तो नहीं पड़ता पर हमें तो जो पता है उसके अनुसार यहां पांडव लोग भी रहे थे और यहीं भीम ने हिडम्बा राक्षसी का अंत किया था। सूखा ताल और पूर्ण ताल झीलों का अस्तित्व लापरवाहियों के चलते अब समाप्त हो गया है। पर इन दो झीलों के अलावा जो झीलें हैं वो आज भी अच्छी स्थिति में हैं।
अंग्रेजों के समय में इस जमीन में चाय की काफी अच्छी खेती हुआ करती थी जिस कारण इसे जून स्टेट भी कहते हैं। परन्तु अंग्रेजों के चले जाने के साथ ही इसका भी विनाश हो गया पर अब सराकर ने चाय की खेती से संबंधित कुछ परियोजनायें इस क्षेत्र में शुरू की है।
यहां एक प्राचीन चर्च भी है जो अपने शिल्प के लिये काफी मशहूर है। सातताल से ही 7-8 किमी. की खड़ी चढ़ाई तय करके हिडम्बा देवी का मंदिर भी है। इस मंदिर में जो बाबा जी रहते हैं उन्होंने कई प्रजातियों के पेड़-पौंधे, फूल और जड़ी-बूटियां यहां पे लगाई हैं जिस कारण इस स्थान पे विभिन्न प्रजातियों की चिड़ियां देखने को भी मिल जाती हैं।
तस्वीरें : गूगल सर्च से साभार