कुमाऊँ में कई लोक देवता हैं जिनमें से एक हैं गोलू देवता। जिन्हें गोलू, श्री ग्वेल ज्यू, बाला गोरिया और गौर भैरव आदि नामों से भी जाना जाता है। गोलू देवता कुमाऊँ में रहने वाले बहुत से लोगों के ईष्ट देव भी हैं। गोलू देवता को न्याय का देवता माना जाता है और लोगों की आस्था है कि गोलू जी के दरबार से कोई भी खाली नहीं लौटता है। गोलू जी सब को न्याय देते हैं और अन्यायी को सजा देते हैं। कुमाऊँ में गोलू जी प्रसिद्ध मंदिर हैं, नैनीताल का घोड़ाखाल मंदिर, चंपावत का मंदिर और अल्मोड़ा का चितई मंदिर। इन मंदिरों में साल के हर माह श्रृद्धालुओं की भीड़ लगी ही रहती है।
गोलू देवता के बारे में किवदंती प्रचलित है कि - गोलू चम्पावत के कत्यूरी वंश के राजा झालुराई के पुत्र थे। झालूराई की सात रानियां थी पर कोई भी संतान नहीं थी। राजा झालुराई ने भैरव भगवान की पूजा कर के उन्हें प्रसन्न किया। भगवान भैरव ने राजा से कहा कि मैं स्वयं तुम्हारे घर में पुत्र बनकर आउंगा पर उसके लिये आपको एक और विवाह करना पड़ेगा।
इसके बाद राजा ने आठवीं रानी प्राप्त करने के प्रयास शुरू कर दिये। एक बार राजा झालुराई शिकार करने वन में पहुंचे तो उन्हें जोरों की प्यास सताने लगी। राजा ने अपने सैनिकों को पानी लाने भेज दिया पर काफी समय तक जब सैनिक वापस नहीं आये तो राजा स्वयं पानी की तलाश में निकल गये। राजा को सामने एक तालाब नजर आया जिसके चारों ओर राजा के सैनिकों के शव पड़े हुए थे। जैसे ही राजा ने पानी में हाथ लगाने की कोशिश की, एक स्त्री ने उनसे कहा - यह मेरा तालाब है और मेरी आज्ञा के बगैर यहां से कोई पानी नहीं ले सकता है। राजा झालुराई ने स्त्री को अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं चम्पावत का राजा झालुराई हूं। पर स्त्री ने उनकी बात वे विश्वास नहीं किया और बोली - यदि आप चम्पावत नरेश हैं तो पहले आपस में लड़ते हुए इन दो भैंसों को अलग करके दिखाइये। राजा को कुछ समझ नहीं आया और उन्होंने अपनी हार मान ली। तब उस स्त्री ने उन भैंसों को अलग कर दिया। राजा को पता चला की वह स्त्री कलिंगा है और राजा ने उससे विवाह कर लिया।
विवाह के कुछ समय पश्चात कलिंगा गर्भवती हो गयी जिस कारण राजा की सातों रानियां कलिंगा से जलने लगी और उन्होंने निश्चय किया कि कलिंगा को मां नहीं बनने देंगी। कलिंगा को जब पुत्र होने वाला था उस समय सातों रानियों ने कलिंगा की आंखों में पट्टी बांध दी और उसके पुत्र को उठाकर गायों के गोठ में फेंक दिया और कलिंगा से कहा कि - तुमने पत्थर को जन्म दिया है। यह सुनकर कलिंगा बेहद आश्चर्यचकित हुई और उदास भी।
इधर पुत्र गायों के गोठ में गायों का दूध पीकर जीवित रह गया तो सातों रानियों ने उसे एक संदूक में बंद कर पानी में फेंक दिया। वह संदूक बहता हुआ गोरीघाट नामक स्थान में पहुंचा जहां उसे एक मछुवारे ने पकड़ लिया। जब उसने उसे खोला तो बच्चे को देखकर वह बेहद खुश हुआ क्योंकि उसकी कोई संतान नहीं थी। मछुवारे और उसकी पत्नी ने बालक को पाल लिया।
जब बालक बड़ा होने लगा था तो उसे अपने जन्म कि सभी बातें स्वप्न में दिखाई देने लगी इसलिये इन बातों की सत्यता का पता करने के लिये बच्चे ने अपने पिता से एक घोड़ा मांगा। पर मछुवारा गरीब था इसलिये उसने एक लकड़ी का घोड़ा लाकर बच्चे को दे दिया। बालक ने इस घोड़े में ही प्राण डाल दिये और उससे यात्रा करने लगा। एक दिन जब बालक घूमते-घूमते झालुराई के राज्य पहुंच गया। वहां उसने एक तालाब देखा जिसके किनारे बैठ कर रानियां कलिंगा के साथ किये दुZव्यवहार की बातें कर रही थी जिसे बालक ने सुन लिया। तभी उसने रानियों से कहा कि - जरा जगह छोड़ो मेरे घोड़े को पानी पीना है। रानियों ने हंस कर कहा - लकड़ी का घोड़ा भी कहीं पानी पीता है। इस पर बालक ने कहा - यदि औरत पत्थर को जन्म दे सकती है तो लकड़ी का घोड़ा भी पानी पी सकता है। बालक की इस धृष्टता पर उसे पकड़ लिया गया और राजा के सामने लाया गया। बालक ने राजा को सभी बातें बता दी। इसके बाद रानियों ने भी अपनी गलतियों को मानते हुए राजा से क्षमा याचना की। बालक के कहने पर राजा ने सभी रानियों को क्षमा कर दिया। यही बालक बाद में गोलू देवता बने जिन्हें राजा ने अपना राज्य सौंप दिया। ग्वेल नाम इन्हें इसलिये दिया गया क्योंकि इन्होंने हमेशा अपनी प्रजा की रक्षा की। गौरीघाट में मिलने के कारण इन्हें गोरिया तथा बहुत गोरा रंग होने और भैरव भगवान की जैसी शक्तियां प्राप्त होने के कारण इन्हें गोर भैरव भी कहा जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि गोलू अपने राज्य में घूम घूम कर अदालतें लगाते थे और दोषियों को सजा देते थे इसलिये इन्हें न्याय का देवता कहा जाता है। आज भी लोग गोलू के मंदिरों में न्याय के लिये जाते हैं और लिख कर अपनी फर्याद गोलू तक पहुंचाते हैं। जिनकी इच्छा पूरी होती है वो घंटी चढ़ाकर भगवान का धन्यवाद करते हैं। इसीलिये गोलू के मंदिरों में घंटियों की बहुतायत रहती है।