उस दिन मुझे कुछ सामान घर पहुंचाना था जिसके लिये मैं अपने रोज के बहादुर (नेपाली काम करने वाले) को ढूंढ रही थी। वो मुझे एक दुकान में बैठा हुआ मिल गया। उसके चारों तरफ मेरी पहचान के ५-६ लोग बैठे जोर-जोर से हंस रहे थे। मैंने भी उत्सुकतावश जानना चाहा कि आखिर माजरा क्या है जो सब पागलों कि तरह हंसे जा रहे हैं ? जब मैंने किस्सा सुना तो मुझे भी सब के जैसे पहले खूब हंसी आयी पर बाद में थोडा अफसोस भी हुआ।
हुआ कुछ यों कि बहादुर पिछ्ले कुछ समय से हार्निया से परेशान था। हम लोगों ने उसे कहा कि वो यहां के सरकारी अस्पताल में जाकर ऑपरेशन करवा ले। डॉक्टर से उसके लिये बात कर लेंगे। उसने भी हमारी बात सुनी और शायद एक कान से सुन के दूसरे से निकाल दी और हां-हूं वाले अंदाज में बात को टाल दिया। धीरे-धीरे हम लोग अपनी दुनिया में मस्त हो गये और किसी को यह बात याद भी नहीं रही। इधर जब काफी समय से बहादुर दिखायी नहीं दिया तो हमें लगा कि शायद उसने ऑपरेशन करवा लिया हो और आराम कर रहा होगा। हमने उसके साथ के दूसरे बहादुर से पता कराया तो पता चला कि वो अपने देश (नेपाल) गया हुआ है। ये जानकर हम लोग निश्चिंत हो गये।
उस दिन जब वो मिला तो उससे पूछा - बहादुर ऑपरेशन करवाया कि नहीं ? उसने कहा - हां। हमने कहा - तूने डॉक्टर को बता दिया था कि हम लोगों ने तुझे भेजा है ? उसने कहा - शाब ! मैं तो देश जा कर अमेरिकी डॉक्टर से ऑपरेशन करवा के लाया हूं। अमेरिकी डॉक्टर ! सुनकर सबके कान खड़े हो गये। आश्चर्यचकित हो के एक ने उससे पूछा - तुझे अमेरिकी डॉक्टर कहां मिल गया और ऑपरेशन में कितना खर्चा आया ? उसने कहा - शाब ! देश में एक अमेरिकी डॉक्टर रहता है वो अमेरीका से डॉक्टरी सीख के देश वापस आ गया। वैसे तो वो ऑपरेशन के लिये 20,000 रुपया लेता है पर मेरे पास इतने रुपये नहीं थे तो उसने मेरा ऑपरेशन 12,000 रुपये में ही कर दिया। 12,000 रुपये सुन कर सबके होश फाख्ता हो गये। हार्निया का ऑपरेशन जो कि सरकारी अस्पताल में शायद ज्यादा से ज्यादा 2,500-3000 रुपये में हो जाता उसके लिये 12,000 रुपये। एक जन ने उसे डांठते हुए कहा - तेरा दिमाग खराब है क्या ? हमने तुझे जो कहा तूने वो क्यों नहीं किया। इतने ढेर सारे रुपये तेरे पास आये कहां से और तेरा ऑपरेशन हुआ कैसे ?
उसने बताना शुरू किया - मैं देश गया था। वहां मेरे साथ वालों ने कहा कि मैं ऑपरेशन वहां करवाउंगा तो ज्यादा अच्छा रहेगा क्योंकि वहां का डॉक्टर अमेरीका से डॉक्टरी सीख के आया है। शाब ! मैं भी तैयार हो गया। मेरे पास थोड़े पैसे बचे हुए थे और कुछ मैंने उधार लिये। दूसरे दिन डॉक्टर के पास चला गया। वो एक झोपड़े में अस्पताल चलाता था। उसने मेरा पर्चा बनाया मुझसे रुपये लिये और ऑपरेशन कर दिया। अब तो बात बिल्कुल सर के ऊपर से निकल गई कि - अमेरिकी डॉक्टर और झोपड़े में अस्पताल।
उससे पूछा तेरा ऑपरेशन कैसे हुआ ? उसने कहा - शाब ! दो तीन लोगों ने मुझे जोर से पकड़ा फिर डॉक्टर ने चीरा लगाया। मेरा तो दर्द से बुरा हाल हो गया पर डॉक्टर ने कहा कि कोई दूसरा डॉक्टर ऑपरेशन करता तो इससे भी ज्यादा दर्द होता वो तो मैं अमेरिका से डॉक्टरी सीख के आया हूं इसलिये कम दर्द हो रहा है। उसके बाद शाब वो डॉक्टर शाब ने एक सुई में धागा डाला और बोरे की तरह मेरे चीरे को सिल दिया। बाद में मुझे पीने के लिये कुछ दे दिया और कहा कि ऑपरेशन के बाद इसे जरूर पीना पड़ता है नहीं तो दर्द ठीक नहीं होगा। शाब उसके बाद में कुछ देर वहीं सोया रहा। जब नींद खुली तो घर आ गया और 10-15 दिन तक घर में ही रहा और फिर यहां वापस आ गया।
जब हमने उसका पर्चा देखा उस पर्चे में नेपाली में ही कुछ लिखा था बांकी न कोई नाम न कुछ पता ठिकाना। ज़ाहिर सी बात है कि उसे बेवकूफ बनाया गया था पर अफसोस इस बात का है कि वो बेचारा आज भी यहीं समझता है कि उसका ऑपरेशन अमेरिकी डॉक्टर ने किया है और उससे भी ज्यादा उसे इस बात की खुशी है कि उसके 8,000 रुपये बच भी गये।