Friday, July 3, 2009

एक शादी ऐसी भी - 1

इस बार काफी लम्बे समय के बाद हम दोस्तों का एक साथ कहीं जाना हो पाया और मौका था हमारे एक दोस्त की शादी। उसकी शादी उसके पैतृक गांव से होनी थी सो पहले तो हम लोगों को समझ नहीं आया कि जायें जा नहीं पर फिर अंत में तय किया गया कि जायेंगे। एक तो शादी भी निपट जायेगी और साथ ही एक नयी जगह देखने को भी मिलेगी।
रास्ते से हिमालय का नज़ारा हम सुबह 7 बजे नैनीताल से लमगड़ा के लिये निकले। वैसे तो लमगड़ा भी अल्मोड़ा वाले रास्ते से जा सकते थे पर हमे नया रास्ता देखना था सो उसके उल्टा रास्ता पकड़ा जिससे हम पदमपुरी होते हुए धानाचूली बैंड पहुंचे और वहां से लमगड़ा की ओर निकल गये। इन दिनों मौसम बहुत सुहाना था और हिमालय का भव्य नजारा हमारे साथ इस पूरे रास्ते में बना रहा। अब इन क्षेत्रों में भी बाहर से आकर लोगों ने बड़ी-बड़ी इमारतें बना दी हैं। करीब 11 बजे हम लमगड़ा पहुंच गये।

यहां पहुंचने के बाद हमें 5-6 किमी. कच्ची सड़क पर आगे बढ़े और इसके बाद गाड़ी को यहीं छोड़ना पड़ा। अब आगे का सफर पैदल ही तय करना था। इस स्थान पर हमें जो सज्जन लेने आये थे उनका आग्रह था कि पहले उनके घर चल कर थोड़ा सुस्ता लें।
पैदल रास्ता
मालूम पड़ा कि उन्होंने पहले से ही हम सब के लिये भोजन बनवा रखा था। खाने की इच्छा तो नहीं थी, पर जब घर के कुटे लाल चावल और लोबिया की दाल हमारी नजरों के सामने आये तो सबके मुँह में पानी आ गया। हमने तो ऐसे लाल चावल जिन्दगी में पहली बार देखे थे। और स्वाद तो एकदम निराला! गाँव के हवा-पानी का भी असर होता होगा शायद।
यहीं खाये हमने लाल कुटे चावल और लोबिया की दाल
फिर करीब तीनेक किमी. का पैदल सफर तय करके रौतेला जाख पहुँचे। यह रास्ता था तो कच्चा पर सीधा-सीधा ही था सो चलने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई और करीब आधे घंटे में हम लोग दोस्त के घर पहुंच गये। घर में शादी का माहौल था। महिला आंगन में अपने नृत्य आदि कार्यक्रमों में लगी थी। बैंड की जगह भी पारम्परिक छोलिया नर्तक थे और साथ में दो मशकबीन बजाने वाले।
शादी का घर

मशकबीन बीन वाले
बारात पास के ही एक गाँव फटक्वाल डुँगरा, को जानी थी, अत: इत्मीनान से निकली। फटक्वाल डुँगरा एकदम सामने की पहाड़ी पर दिखाई दे रहा था। हमसे कहा गया कि ज्यादा नहीं चलना है, सो हम लोग बेफिक्र हो गये। थोड़ा ही आगे बढ़े थे कि एक साथ वाले ने एक घर की तरफ इशारा करते हुए कहा, अरे देखो, यहाँ तो मयखाना खुला है। बहुत से लोग हाथ में नोट लेकर भीतर जा रहे हैं और थोड़ी देर बाद होंठ पोंछते वापस आ रहे हैं। गाँवों में शराब का जो मर्ज फैला है, उसका खालिस नमूना हमारी नजरों के सामने था। बड़े-बूढ़े तो एक तरफ, बच्चों को वहाँ जाने में कोई शर्म नहीं थी। बारात थोड़ा ही आगे पहुँची होगी, आधे बाराती टल्ली हो चुके थे।

आधा किमी. चलने के बाद ही एक तीखी ढलान शुरू हो गयी। चलना थोड़ा मुश्किल था पर फिर भी आपसी हंसी-मजाक के साथ जैसे-तैसे ढलान से तो हम लोग निपट लिये। तभी दोस्त के पिताजी हमारे पास आये और बोले - बच्चो बस अब ये छोटी सी चढ़ाई पार करनी है और फिर हम पहुंच जायेंगे। हमने सामने की तरफ देखा तो एक सीधी चढ़ाई हमारा इन्तजार कर रही थी। हम लोगों ने आपस में कहा कि - अगर ये छोटी सी चढ़ाई है तो बड़ी सी चढ़ाई कैसी होगी भगवान जाने।
सामने की चढ़ाई

खैर हम लोगों को ट्रेकिंग की अच्छी आदत थी सो ज्यादा टेंशन भी नहीं हुआ और हमने आगे बढ़ना शुरू कर दिया। हमसे कुछ ही दूरी पर दुल्हे मियां घोड़े पर सवार होकर चले जा रहे थे। जिसे हमने पीछे से थोड़ा चिढ़ाया तो वो रुक गया और हमारे एक साथी से बोला - यार ! तू घोड़े पर चले जा मैं पैदल ही आ जाउंगा। इस पर साथ वाले ने इस अंदाज में ताना मारते हुए उसे मना किया कि सभी पेट पकड़-पकड़ के हंसने लगे। दोस्त ने बोला - नहीं यार ! तू ही जा घोड़े में वरना लड़की वाले कहेंगे कि दिखाया किसे था और ले किसे आये।

खैर चलते-सुस्ताते, हंसते-हंसाते हम लोग आगे बढ़ते रहे। इस चढ़ाई पर कोई निश्चित रास्ता नहीं रहा। जिसे जहाँ से सुविधाजनक लगा, वह उस रास्ते से चढ़ रहा था। बारात पूरी तरह बिखर चुकी थी। हमारे साथ चल रहे एक ग्रामीण ने बताया कि यहाँ सड़क न होने के कारण हमें बहुत परेशानी झेलनी पड़ती है। सबसे ज्यादा परेशानी तो उस वक्त होती है, जब कोई बीमार हो जाता है। नजदीक कोई अस्पताल भी नहीं है। उस समय तो ऐसा लगता है, जैसे मरीज के वास्ते मुर्दाघाट नजदीक है।

शाम 7 बजे बारात उस पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गयी। बिखरे हुए सभी बाराती वहाँ पर इकट्ठा हुए और छिटपुट आतिशबाजी कर आगे बढ़े। थकान से हम लोगों का बुरा हाल था। उस समय तो यही लग रहा था कि अगर पहले पता होता कि इतना खराब रास्ता होगा, तो आते ही नहीं। पर फिर हमें यह भी लगा कि यदि आते ही नहीं तो पता कैसे चलता कि पहाड़ों में लोग आज भी कितनी कठिनाइयों में रहते हैं। हम आपस में यही कह रहे थे कि यदि हमारे नेता लोगों को सिर्फ 1 दिन के लिये भी इन जगहों में भेज दिया जाये तो शायद उन्हें पता चले कि वो कौन से वाले विकास की बात करते हैं।

जारी...