नगरपालिका नैनीताल
नैनीताल की म्यूनिसिपल बोर्ड का गठन सन् 1845 में हुआ। नैनीताल की नगरपालिका देश की दूसरी नगरपालिका है। उस समय यदि कोई अपने क्षेत्र में म्यूनिसिपल बोर्ड बनवाना चाहता था तो उन्हें गर्वनर के पास प्रस्ताव भेजना होता था कि उनके क्षेत्र में भी 1842 के एक्ट x को शुरू किया जाये। इस प्रस्ताव के लिये दो तिहाई मकान मालिकों की रजामन्दी अनिवार्य थी। नैनीताल में 8 मई 1845 को दो तिहाई मकान मालिकों द्वारा यह प्रस्ताव गर्वनर के पास भेजा गया जिसे गर्वनर ने स्वीकार कर लिया और 7 जून 1845 को नगरपालिका नैनीताल का गठन हुआ।
गठन के बाद इस पालिका कमेटी में मेजर ज. डब्ल्यू रिचर्ड, जी.सी. ल्यूसिंगटन, मेजर एमोड, कैप्टन वॉग और पी बैरन थे। कमेटी में मत देने के अधिकार भी इस प्रकार थे जो एक मकान का कर देता हो वो 1, जो 4 मकानों के कर देता हो उसे 2, और 8 मकानों के कर देने वाले को 3 और ज्यादा से ज्यादा 4 मत देने का अधिकार था।
इस नगरपालिका के कार्य थे सड़कें बनावाना, सफाई व्यवस्था करना, कुली की व्यवस्था करना, भवन निर्माण आदि कार्यों को सुनियोजित करना, कर निर्धारित करना, आय-व्यय का हिसाब रखना आदि। कुल मिलकार वह सारे काम जो एक शहर की मजबूत नींव रख सकें।
शहर की पहली पुलिस व्यवस्था भी नगरपालिका द्वारा 1847 में की गई थी जिसमें 6 पुलिसकर्मी थे। सन् 1890 में स्वास्थ्य सेवाओं को अच्छा करने के लिये रैमजे अस्पताल बनवाया गया और उसके बाद मल्लीताल में क्रोस्थवेट अस्पताल जिसे अब बी.डी. पाण्डे चिकित्सालय कहा जाता है का निर्माण करवाया। स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं में मुख्य रूप से ध्यान दिया गया और इसके चलते दूध बेचने वालों के लिये लाइसेंस जारी किये गये। मिलावटी या गंदा दूध मिलने पर उसे ज़ब्त किया जाने लगा साथ ही खाद्य पदार्थों में किसी भी तरह की गंदगी या मिलावट पाये जाने पर उसे नष्ट करने के साथ-साथ दुकानदार पर कढ़ी कार्यवाही भी की जाने लगी।
इस पालिका के अंतिम अंग्रेज अध्यक्ष आर.सी. ब्रुशर रहे। स्वतंत्रता के बाद पालिका के प्रथम भारतीय अध्यक्ष राय बहादुर जशौद सिंह बिष्ट रहे। इन्होंने 13 अक्टूबर 1949 से 30 नवम्बर 1953 तक कार्य किया। इनके बाद भी कई अध्यक्ष और रहे जिन्होंने शहर के विकास के लिये काम किया।
सन् 1977 में प्रदेश की सभी पालिकायें भंग कर दी गई थी इस अवधि में जिलाधिकारी ही पालिका के कार्य को देखते थे। 11 वषो बाद फिर पालिकाओं का गठन किया गया पर अब पालिका को वो स्वरूप नहीं बचा है जो पहले था।