इस बार 14 जनवरी मकर संक्रान्ति या उत्तरायणी वाले दिन रानीबाग जाने का अवसर मिला जो मेरे लिये इस दुनिया का सबसे पवित्र स्थान है। रानीबाग नैनीताल से 28 किमी. की दूरी पर है। रानीबाग में ही एच.एम.टी. घड़ी की फैक्ट्री भी है जिसने पहाड़ वालों को बहुत लम्बे समय तक रोजगार उपलब्ध करवाया और बाद में सरकार और कर्मचारी दोनों की लापरवाहियों के चलते बन्द भी हो गई।
रानीबाग में चित्रेश्वर महादेव का मन्दिर है जो कत्यूरियों के समय का है। उत्तराखण्ड में कत्यूरवंशियों ने बहुत लम्बे समय तक शासन किया। इसलिये इसे चित्रशिला तीर्थ के नाम से जाना जाता है। यहां एक नदी भी बहती है जिसके किनारे हिन्दुओं का शमशान घाट है और एसी मान्यता है कि इस जगह का महात्म्य हरिद्वार जितना ही है।
रानीबाग में मकर संक्रान्ति के अवसर पर मेला लगता है। इस मेले की खास बात है इसमें लगने वाली जागर। इस जागर में कुमाउं और गढ़वाल के कत्यूर वंशी आते हैं और मां जियारानी के पत्थर के सामने एकत्रित होकर जागर लगाते हैं और अपनी कुलदेवी जियारानी को याद करते हैं।
कहा जाता है कि मां जिया इसी स्थान पर चित्रेश्वर महादेव की अराधना किया करती थी और पास ही में बनी गुफा में रहती थी। एक बार जब वो स्नान कर कर रही थी उसी समय उन पर उनके शत्रुओं द्वारा उन पर हमला कर दिया गया। अपनी रक्षा के लिये लिये जियारानी अपनी गुफा में चली गई और उसके बाद वो गायब हो गई। कहा जाता है कि नदी के किनारे एक पत्थर में उनके घाघरे के निशान आज भी हैं और इसी पत्थर के चारों ओर कत्यूर वंशियों द्वारा हर साल जागर लगायी जाती है। इस जागर में कत्यूरवंशी 13 तारीख से आने लगते हैं और रात से ही अपनी कुलदेवी की याद में जागर लगाने लगते हैं। जियारानी को जागरों की महारानी भी कहा जाता है।
इस स्थान पर अब कुछ नये मन्दिर भी बना दिये गये हैं और चित्रेश्वर महादेव और जियारानी की गुफा को आधुनिक ढंग का बना दिया गया है जिस कारण इन मन्दिरों की प्राचीनता कम हो गई है। जागर के अलावा इस स्थान पर श्रद्धालुओं द्वारा विभिन्न तरह की पूजायें और यज्ञोपवीत संस्कार इत्यादि भी किये जाते हैं। मन्दिर परिसर के अन्दर एक छोटे से मेले का आयोजन भी होता है जिसमें आसापास के स्थानों से व्यापारी आकर दुकानें लगाते हैं।
कुछ तकनीकि समस्याओं के चलते इस पोस्ट में फोटो नहीं लगा पा रही हूं। फोटो अगली पोस्ट में।