पुरानी धुनों में नई ध्वनि लगाकर
कैसेट का धंधा अजब चल रहा है।
गांधी व लोहिया के नामों को लेकर
असल में नकल का दखल चल रहा है।
कश्मीर की बर्फ शोले बनी है,
उत्तराखंड धू-धू कर जल रहा है।
बजाते हैं लॉबी में वे अपनी बंसी,
राग उनका अपना अलग चल रहा है।
नशे में उन्हें कुछ नज़र आयेगा क्या ?
जमीं चल रही, आसमाँ चल रहा है।
इलाही ज़रा उनकी आँखें तो खोल,
कि उनका सितारा किधर ढल रहा है।
- अवस्थी मास्साब
पोस्टर
साभार : श्री ज़हूर आलम
अध्यक्ष युगमंच नैनीताल