पिछली पोस्ट में मैंने अवस्थी मास्साब के बारे में लिखा था। इस पोस्ट में प्रस्तुत हैं उनके द्वारा बनाये कुछ पोस्टर और उनके द्वारा लिखी एक कविता
पुरानी धुनों में नई ध्वनि लगाकर
कैसेट का धंधा अजब चल रहा है।
गांधी व लोहिया के नामों को लेकर
असल में नकल का दखल चल रहा है।
कश्मीर की बर्फ शोले बनी है,
उत्तराखंड धू-धू कर जल रहा है।
बजाते हैं लॉबी में वे अपनी बंसी,
राग उनका अपना अलग चल रहा है।
नशे में उन्हें कुछ नज़र आयेगा क्या ?
जमीं चल रही, आसमाँ चल रहा है।
इलाही ज़रा उनकी आँखें तो खोल,
कि उनका सितारा किधर ढल रहा है।
- अवस्थी मास्साब
पोस्टर
साभार : श्री ज़हूर आलम
अध्यक्ष युगमंच नैनीताल