Wednesday, March 25, 2009

जहां दरिया बहता है

आज फिर अपनी डायरी के पन्नों में दर्ज एक कविता मिली जो वियतनामी कवि वो कू ने लिखी है। वो कू को वियतनाम में युद्ध का विरोध करने के कारण लम्बे समय तक कारवास में रहना पड़ा जहां इन्होंने अनगिनत यातनायें झेली। वो कू के शहर क्वांग त्री सिटी को कई बार युद्ध झेलना पड़ा।
अपने इसी शहर के लिये वो कू ने यह कविता लिखी।


एक बहुत दूर की दोपहर

जब दरिया अपने किनारे लांघ गया था,

उस स्मृति के साथ पहुंचा

मैं अपने शहर, जो तुम्हारा और मेरा शहर था

चमकता है मेरे मन में वही स्विर्णम दिन

तुम्हारा गोल सफेद टोप, उस संकरी गली में

दोपहर की रोशनी में चमक रहा था

तुम्हारी जामुनी फ्राक, हवा में उड़ते लम्बे बाल

और चर्च की लगातार आवाजें लगाती, हज़ारों बार

बजती घंटिया याद आयी मुझे।

वह शहर जो पूरा बरबाद हो गया था युद्ध में

उस शहर की हर गली एक दर्द की तरह

उभरती है मेरे ज़हन में।

मेरा कोई हिस्सा हर गिरती हुई पंखरी के साथ

गिरता है धरती पर

उन चमकदार फूलों का आर पार

दर्द की तरह लहराता हुआ गिरता है धरती पर।

लेकिन मेरे सपनों में वो शहर अछूता है,

बरबादी के पहले सा अछूता

जब गलियां जिन्दा थी, बलखाती लहरों की तरह

जब तुम्हारी सिम्त खिलने से पहिले गुलाब जैसी थी

जब तुम्हारी आंखें तारों की तरह सुलगती थी।

कैसी तेज याद आती है उन बहते पानियों की।

सर्दी की कमजोर रोशनी में कैसी दीखती थी तुम

जब लम्बी घास दरिया के दूसरे किनारे

पर झुका होता था।

हमारे पुराने शहर से अब भी भरा है हमारा होना

मेरे बाल पक गये हैं उस नदी किनारे घास की तरह

या तुम्हारे इतने पुराने प्यार की तरह।

23 comments:

Vinay said...

सुन्दर कविता है!

---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें

अभिषेक मिश्र said...

उस शहर की हर गली एक दर्द की तरह
उभरती है मेरे ज़हन में।

अच्छी कविता चुनी है आपने.

रंजू भाटिया said...

बहुत बढ़िया कविता लगी यह शुक्रिया आपको इसको पढ़वाने का

mamta said...

वो कू की कविता पढ़वाने के लिए शुक्रिया ।

डॉ. मनोज मिश्र said...

सुंदर कविता के लिए धन्यवाद ...

BrijmohanShrivastava said...

अनुवादक तो खैर अनुवादक ही होते है /तुम्हारी जमुनी फ्राक,हवा में उड़ते बाल के पश्चात् यह भी हो सकता था ""चर्च की आवाजें और बजती घंटिया हजारों बार आई मुझे याद ""उन चमक दार फूलों ""का" आर पार की जगह "के "/ और यदि यह अनुवाद आप के द्वारा ही किया गया है तो फिर इसमें कोई त्रुटी नहीं है

mehek said...

हमारे पुराने शहर से अब भी भरा है हमारा होना

मेरे बाल पक गये हैं उस नदी किनारे घास की तरह

या तुम्हारे इतने पुराने प्यार की तरह।

kitna marm bhara is kavita mein,shukran,bahut sunder hai.

Vineeta Yashsavi said...

Adrniya Brijmohan Shrivastw ji kavita ki tarif ke liye shukriya...

per ye anuwad maine nahi kiya hai...kafi samay pahle maine ye kavita kahi pari thi aur apni diary mai likh li...jisse maine kavita likhi usmai bhi anuwadak ka naam nahi tha...isliye anuwadak ka naam na de pane ke liye mai mafi chahti hu...

डॉ .अनुराग said...

क्रिया इस अमूल्य कविता को बांटने के लिए आखिरी लाइन खासा असर रखती है

Anonymous said...

good petry
thanks for availing

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही बेहतरीन कविता पढवाई आपने. असल मे अक्सर हम यही गल्ती कर जाते हैं कि कोई रचना पढते समय सुंदर लगती है तो उसे डायरी के पन्नों पर नोट कर लेते हैं और लेखक का नाम लिख लेते हैं. पर मुझसे भी यही हुआ है कि मैने भी आज तक एक भी अनुवादक का नाम नही लिखा.आगे से हम भी इस बात पर ध्यान देंगे.

बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

Unknown said...

Bahut achhi kavti parwai apne.

Unknown said...

waise to puri kavita hi achhi hai per antim line bahut hi achhi hai

शोभा said...

कविता अच्छी लगी। आभार।

Hari Joshi said...

आभार आपका। गहरे अर्थों वाली भावपूर्ण कविता।

संगीता पुरी said...

अच्‍छी लगी यह कविता ...धन्‍यवाद।

Prabuddha said...

'जब गलियां ज़िन्दा थी बलखाती लहरों की तरह'

इस वक़्त भी न जाने कितने वियतनामों की गलियां बलखाती लहरों से भटकती लहरों में तब्दील हो रही हैं।

BrijmohanShrivastava said...

मेरा आपसे एक ही अनुरोध है कि कृपया साइंस ब्लॉग पर आज २६-३-०९ को मेरे द्वारा किया गया निवेदन पढने की कृपा करें

आशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal) said...

वो कू जैसे महान लेखक की कविता पढ़वाने के लिए आपका आभार..

Harshvardhan said...

sudar kavita apne blog me padwane ke liye aapka shukria

hem pandey said...

एक स्तरीय कविता उपलब्ध कराने हेतु आभार.

Science Bloggers Association said...

थोडी लम्‍बी, किन्‍तु सच्‍चाई के करीब कविता।

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तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

Manish Kumar said...

padhwane ka shukriya