गुमानी को कुमाउंनी का प्रथम कवि माना जाता है। इनका जन्म सन् 1790 में काशीपुर में हुआ था। पर इनका निवास स्थान अल्मोड़ा का उपराड़ा गांव रहा। इनके पिता का नाम पंडित देवनिधि पंत और मां का नाम देवमंजरी था। कवि गुमानी का असली नाम लोकरत्न पंत था पर पिता ने इनके पिता इन्हें गुमानी नाम से ही संबोधित करते थे और भविष्य में यह इसी नाम से मशहूर हुए। इनका बचपन इनके दादाजी पुरूषोत्तम पंत के साथ उपराड़ा में और काशीपुर में बीता। इनकी शिक्षा महान विद्वानों जैसे - पंडित राधाकृष्ण वैद्यराज, परमहंस परिव्राजकाचार्य और पंडित हरिदत्त ज्योतिर्विद के संरक्षण में हुई। 24 वर्ष की आयु तक इन्होंने अपने गुरूजनों के संरक्षण में शिक्षा प्राप्त की। विवाह के उपरान्त गुमानी ने 12 वर्षों तक देशाटन किया। और कुछ वर्षों तक तपस्या भी की पर माता के अनुरोध करने पर ये अपने गृहस्थ जीवन में वापस आ गये। यहीं से इन्होंने कवितायें लिखने की शुरूआत की।
गुमानी संस्कृत के महापंडित थे। इसके अलावा कुमाउंनी, नेपाली, हिन्दी और उर्दू में भी इनका अच्छा अधिकार था। कुछ लोगों का मानना है कि इन्हें फारसी, अंग्रेजी और ब्रजभाषा का भी अच्छा ज्ञान था।
कहा जाता है कि गुमानी काशीपुर नरेश श्री गुमान सिंह देव के दरबार में भी जाया करते थे और वहां शास्त्रार्थ में बड़े-बड़े पंडितों को भी हरा देते थे। गुमानी टिहरी के महाराज श्री सुदर्शन शाह के राजदरबार में मुख्य सचिव के रूप में भी रहे। सन् 1846 में गुमानी जी का देहान्त हो गया।
गुमानी ने हिन्दी, संस्कृत, कुमाउंनी, उर्दू और नेपाली भाषा में बेहतरीन रचनायें लिखी। इन्हें जो भी दोहा, कविता, शेर, चौपाई याद आती उसे उसी समय कहीं पर लिख देते थे। इनकी प्रमुख रचनायें हैं - राम नाम पंचपंचाशिका, राम महिमा वर्णन, गंगा शतक, जग्गनाथाष्टक, कृष्णाष्टक, राम सहस्त्र गणदंडक, चित्र पद्यावली, राम महिमन्, रामाष्टक, कालिकाष्टक, राम विषयक भक्ति विज्ञप्तिसार, तत्वविद्योतिनी पंचपंचाशिका, नीतिशतक शतोपदेश, राम विषय विज्ञप्तिसार, ज्ञान भैषज्य मजरो। इसके अलावा इनके द्वारा तीन निर्णय ग्रंथ - तिथि निर्णय, आचार निर्णय और अशौच निर्णय की भी रचना की गई।
गुमानी ने अपनी कविताओं में उस समय की सामाजिक परिस्थितियों का भी वर्णन किया है। जब अंग्रेजों से पहले कुमाऊँ में गौरखा राज था उस समय गुमानी ने उनके द्वारा किये अत्याचारों को अपनी रचनाओं में कुछ इस तरह उकेरा -
दिन-दिन खजाना का भार का बोकिया ले,
शिव शिव चुलि में का बाल नैं एक कैका।
तदपि मुलुक तेरो छोड़ि नैं कोई भाजा,
इति वदति गुमानी धन्य गोरखालि राजा।
अर्थात - खजाना ढोते-ढोते प्रजा के सिर के बाल उड़ गये पर राज गोरखों का ही रहा। कोई भी उसका राज छोड़कर नहीं गया। अत: हे गोरखाली राजा तुम धन्य हो।
इसी तरह अंग्रेजी शासन के समय गुमानी ने लिखा है -
अपने घर से चला फिरंगी पहुँचा पहले कलकत्ते,
अजब टोप बन्नाती कुर्ती ना कपड़े ना कुछ लत्ते।
सारा हिन्दुस्तान किया सर बिना लड़ाई कर फत्ते,
कहत गुमानी कलयुग ने याँ सुबजा भेजा अलबत्ते।
कुरातियों के उपर भी गुमानी ने अपनी कलम कुछ इस तरह चलायी है और एक विधवा की दशा को इस तरह से व्यक्त किया -
हलिया हाथ पड़ो कठिन लै है गेछ दिन धोपरी,
बांयो बल्द मिलो छू एक दिन ले काजूँ में देंणा हुराणी।
माणों एक गुरुंश को खिचड़ी पेंचो नी मिलो,
मैं ढोला सू काल हरांणों काजूं के धन्दा करूँ।
अर्थात - बेचारी को मुश्किल से दोपहर के समय एक हलवाहा मिला और वो भी केवल बांयी ओर जोता जाने वाला बैल मिल पाया, दांया नहीं। खिचड़ी का एक माणा (माप का एक बर्तन) भी उसे कहीं से उधार नहीं मिल पाया। निराश होकर वह सोचती है कि कितनी बदनसीब हूं मैं कि मेरे लिये काल भी नहीं आता।
गुमानी ने अपनी रचनायें बिना किसी लाग लपेट की सीधी और सरल भाषा में की हैं। यही कारण है कि गुमानी की रचनायें कुमाऊँ में आज भी उतनी ही प्रसिद्ध हैं जितनी उनके समय में थी। कुमाउंनी के प्रथम तथा लोकप्रिय कवि के रूप में गुमानी आज भी प्रसिद्ध हैं और उनका नाम इस साहित्य सेवा के लिये सदैव लिया जाता रहेगा।
इस लेख को बनाने के लिये मुझे 1966 में प्रकाशित पुस्तक `कुमाउंनी के कवियों का विवेचनात्मक अध्ययन´ से मदद मिली है। इस पुस्तक के लेखक डॉ. नारायणदत्त पालीवाल जी हैं। यह पुस्तक मुझे अभी कुछ समय पहले अपने पिताजी के छोटे से पुस्तकालय से मिली थी।
26 comments:
कवि गुमानी से परिचय का बहुत आभार. आपने अपनी सशक्त लेखन शैली मे उनके बारे मे बताया जो कि बहुत ही सुंदर जानकारी है.
असल मे उस समय के कवियों की रचनाओं मे उस समय के सामाजिक राजनैतिक जीवन का विस्तृत विवरण देने की अदभुत क्षमता थी. जो हमे यहां गुमानी जी की रचनाओं मे भी दिखाई देती है. बहुत धन्यवाद आपको.
रामराम.
कवि गुमानी के बारे में पहली बार इतना विस्तार से जानने को मिला.. आभार
कितना कुछ ऐसा है संसार में अभी जो जानना बाकी है ..आपके द्वारा गुमानी जी के बारे में जान कर बहुत अच्छी रोचक जानाकारी मिली ...शुक्रिया
Maine Gumani ji ka sirf naam hi suna tha. aaj apke dwara unke baare mai jaan ke bahut achha laga
gumaniji bhi hamari uttaranchal belt se aate hai apne rajy ke pahle kavi ke baari me itni sundar jaankari ke liye aapka aabhar ....
गुमानी जी के बारे में हमें तो पहली बार ही पता चला. क्या करें कभी साहित्य प्रेमी नहीं रहे. प्रबल इक्षा है की अल्मोडा में बसा जाए. आभार.
वे वाकई उत्तराखंड के अनमोल रत्न हैं ....जानकारी देने का शुक्रिया
kavi gumani ke vishay mai achhi jankari di apne.
गुमानी जी के बारे में इतने विस्तार से बताने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती
vistrit jaankari ke liye shukriya Vinita, inke baare me mene sabse pehle Sakunakhar me para tha.
गुमानी जी से परिचय कराने का शुक्रिया ...
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
एक ऐतिहासिक कवि और उनकी चुनिन्दा रचनाओं के बारे में जानकारी का शुक्रिया.
कवि गुमानी के बारे में बहुत रोचक जानकारियां उपलब्ध करवाई आपने ... बहुत बहुत धन्यवाद।
मैनें कवि गुमानी का नाम ही सुना था ,आपसे उनके विषय में विस्तृत जानकारी मिली .धन्यवाद
आभार एक बेहतरीन आलेख प्रस्तुत करनेके लिये -
मेरी जानकारी के अनुसार गुमानी जी की मृत्यु १८४६ में हुई थी. वे खड़ी बोली में भी लिखते थे और खड़ी बोली में साहित्य सृजन के जनक थे.
Adrniya Hem Pandey ji meri galti sudharne ke liye dhanyawaad...
aap sahi hai...maine apni galti ko thikkar liya hai...
उत्तराखण्ड की सास्क़तिक और साहित्यिक सम्पदा से परिचित कराने का आपका यह प्रयास प्रशंसनीय है।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
sanskrit ke maha pandit Gumani ji ke bare mein jaankari mili.
unki rachnaon ke ansh bhi padhey.
sach mein bahut hi saaar garbhit rachna hai.
pahli baar un ke baare mein jana.
abhaar.
NICE BLOG TO READ .
MY BEST WISHES FOR U .
THIS IS AJIT PAL SINGH DAIA GREETS YOU.
बेहतरीन पोस्ट के लिये साधुवाद स्वीकारें...
गुमानी जी जैसे प्रेरक व्यक्तिव से मिलवाने के लिए आभार।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
गुमानी जी के बारे में इतने विस्तार से बताने के लिए धन्यवाद।
गुमानी जी कुमाउँनी के सशक्त हस्ताक्षर थे आप ने अच्छी जानकारी दी है कोटिश:आभार
गुमानी जी कुमाउँनी के सशक्त हस्ताक्षर थे आप ने अच्छी जानकारी दी है कोटिश:आभार
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