मेरी यह यात्रा सुनामी हादसे से सिर्फ कुछ महीने पहले की है। इस यात्रा की तस्वीरें खराब हो जाने के कारण मैं उन्हें नहीं लगा पाउंगी जिसका मुझे अफसोस है।
सुनामी हादसे के बारे में सुना तो एक पल के लिये यकीन ही नहीं हुआ कि कुछ समय पहले जिन लहरों के बीच मैं एक छोटी सी बच्ची रेहा का हाथ थामे हुए इतना मजा ले रही थी, वही शांत लहरें एक दिन विकट रूप लेकर हजारों लोगों को अपने साथ बहा ले जायेंगी। इन लहरों में अपना जीवन तलाशने वाले कितने ही मासूम पूरी जिन्दगी इन लहरों से घृणा करने लगेंगे.......
9 नवम्बर को अपराह्न 1 बजे जब हम चेन्नई पहुँचे, आकाश काले-काले बादलों से घिरा हुआ था और झमाझम बारिश हो रही थी। मेरे जैसे पहाड़ी के लिये यह मौसम अच्छा ही था। नैनीताल में तो हम अक्टूबर की शुरूआत में ही मानसून को अलविदा कह चुके थे। कामराज डोमेस्टिक चिन्नई हवाई अड्डे से वीरूगमबाक्कम जाते हुए टैक्सी से बाहर झाँकने पर तमिल सिनेमा के चर्चित कलाकार रजनीकांत और राजनीति की चर्चित खिलाड़ी जयललिता के पोस्टर सबसे ज्यादा नजर आये। हर गली के नुक्कड़ पर जयललिता की मुस्कुराती तस्वीर मानो आम जनता को मुँह चिढ़ा रही हो कि देखो सिर्फ मैं ही हँस सकती हूँ। क्योंकि जनता तो उन दिनों उनसे मासूम हाथियों की बलि देने के कारण नाराज दिखाई दे रही थी। यह मुद्दा वहाँ के न्यूज चैनलों पर छाया हुआ था।
दूसरे दिन टी नगर (त्यागराज नगर) जाने का मौका मिला। जहाँ-तहाँ पर घंटों का जाम लगा हुआ था। हर तरफ इतनी भीड़ इतना शोरशराबा कि दिमाग खराब हो जाये। जिस चीज ने मेरा सबसे ज्यादा धयान खींचा वह यह कि ज्यादातर दुकानों में औरतें ही काम करती नजर आई। गिनती की ही दुकानों पर पुरुष थे। 3-4 दिन बाद दीवाली आने वाली थी और बाजार में काफी भीड़ थी। मैं जिन दुकानों में भी गई, लोग मुझे अपनी परम्परागत पोशाकें और इसी तरह की चीजें खरीदते दिखे। यहाँ दीवाली में उत्तरी भारत की तरह अमावस्या के दिन लक्ष्मी की पूजा नहीं की जाती, बल्कि नरहर चतुर्दशी को दीवाली मनाते हैं। मान्यता है कि इस दिन नरकासुर के आतंक से मुक्ति मिली थी।
दीवाली के दिन सुबह घर का मुखिया परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर तेल लगाता है और फिर सब लोग स्नान कर नये कपड़े पहनते हैं, जिन्हें पहले मंदिर में रखा जाता है। सवेरे से ही खाने का जोर रहता है। ब्राह्मण ज्यादातर शाकाहारी खाना ही खाते हैं, जबकि ब्राह्मणेतर लोग मांस खाकर खुशी मनाते हैं। गलागला नामक एक विशेष प्रकार की मिठाई तैयार की जाती है, जो हमारे घुघुतों की तरह ही होती है। फर्क इतना है कि गुड़ की जगह चीनी का प्रयोग किया जाता है और उनका आकार भी घुघुतों जैसा नहीं होता। भोजन केले के पत्तों में परोसा जाता है। दीवाली के दिन घर में बिजली की मालायें लगाने का रिवाज नहीं दिखायी दिया, पर घर के बाहर ढेर सारे सूखे रंगों से रंगोली बनाने का रिवाज था, जो हमारे ऐपणों से पूरी तरह भिन्न थी। शाम को पटाखों धूम धड़ाके और धुएँ से चेन्नई शहर भरा हुआ था। मैं जबसे वहाँ गयी थी, मुझे कभी भी अपने पहाड़ों के जैसा तारों से भरा नीला आसमान नजर ही नहीं आया था। इस बात पर मैं अपने एक दोस्त को चिढ़ा भी रही थी की मैं तेरे मद्रास के बिना तारों वाले बदरंग आसमान में थोड़ा नीला रंग और दो-चार तारे ढूँढने की कोशिश कर रही हूँ। पर दीवाली वाले दिन तो आसमान की कल्पना करना ही मुश्किल था।
अगले दिन हमने अपनी कुमाउंनी दीवाली मनाई। व्रत रखा और पूरा बाजार छानकर एक खील का पैकेट खरीद कर लाये जिसमें मुश्किल से दो मुठ्ठी खील होगी, पर कीमत थी 30 रु.! बहरहाल खाँड के खिलौने और बताशे तो हमें नहीं ही मिले। सरसों के तेल के दियों की जगह भी दिये के आकार वाली मोमबत्तियाँ जला कर काम चलाया।
(जारी......)
15 comments:
विनीता जी, चेन्नई की इतनी खूबसूरत यात्रा कराने के लिए धन्यवाद.. अगली कड़ी का इंतजार है..
आपकी यह पोस्ट यात्रा के साथ साथ हमारी परम्पराओं के बारे मे भी जानकारी देती है !
बुत सुन्दर लगा यह यात्रा व्रुतान्त !
रामराम !
अरे विनीता जी, आप पहाड़ छोड़कर चेन्नई घूम आई. चलो बढ़िया है. आगे की यात्रा का इंतज़ार है.
good travel blog
regards
भगवान् सभी जगह नहीं जा सकता इसीलिए उसने माँ को बनाया......लोग ऐसा कहते हैं, हम कहते हैं कि भगवान् जहाँ नहीं जा सकता, जो नहीं कर सकता वो ही माँ कर सकती है. इसी कारण माँ भगवन से ऊपर है. आपको धन्यवाद
मेरी यह यात्रा सुनामी हादसे से सिर्फ कुछ महीने पहले की है। इस यात्रा की तस्वीरें खराब हो जाने के कारण मैं उन्हें नहीं लगा पाउंगी जिसका मुझे अफसोस है।
सुनामी हादसे के बारे में सुना तो एक पल के लिये यकीन ही नहीं हुआ कि कुछ समय पहले जिन लहरों के बीच मैं एक छोटी सी बच्ची रेहा का हाथ थामे हुए इतना मजा ले रही थी, वही शांत लहरें एक दिन विकट रूप लेकर हजारों लोगों को अपने साथ बहा ले जायेंगी। इन लहरों में अपना जीवन तलाशने वाले कितने ही मासूम पूरी जिन्दगी इन लहरों से घृणा करने लगेंगे.......
9 नवम्बर को अपराह्न 1 बजे जब हम चेन्नई पहुँचे, आकाश काले-काले बादलों से घिरा हुआ था और झमाझम बारिश हो रही थी। मेरे जैसे पहाड़ी के लिये यह मौसम अच्छा ही था। नैनीताल में तो हम अक्टूबर की शुरूआत में ही मानसून को अलविदा कह चुके थे। कामराज डोमेस्टिक चिन्नई हवाई अड्डे से वीरूगमबाक्कम जाते हुए टैक्सी से बाहर झाँकने पर तमिल सिनेमा के चर्चित कलाकार रजनीकांत और राजनीति की चर्चित खिलाड़ी जयललिता के पोस्टर सबसे ज्यादा नजर आये। हर गली के नुक्कड़ पर जयललिता की मुस्कुराती तस्वीर मानो आम जनता को मुँह चिढ़ा रही हो कि देखो सिर्फ मैं ही हँस सकती हूँ। क्योंकि जनता तो उन दिनों उनसे मासूम हाथियों की बलि देने के कारण नाराज दिखाई दे रही थी। यह मुद्दा वहाँ के न्यूज चैनलों पर छाया हुआ था।
दूसरे दिन टी नगर (त्यागराज नगर) जाने का मौका मिला। जहाँ-तहाँ पर घंटों का जाम लगा हुआ था। हर तरफ इतनी भीड़ इतना शोरशराबा कि दिमाग खराब हो जाये। जिस चीज ने मेरा सबसे ज्यादा धयान खींचा वह यह कि ज्यादातर दुकानों में औरतें ही काम करती नजर आई। गिनती की ही दुकानों पर पुरुष थे। 3-4 दिन बाद दीवाली आने वाली थी और बाजार में काफी भीड़ थी। मैं जिन दुकानों में भी गई, लोग मुझे अपनी परम्परागत पोशाकें और इसी तरह की चीजें खरीदते दिखे। यहाँ दीवाली में उत्तरी भारत की तरह अमावस्या के दिन लक्ष्मी की पूजा नहीं की जाती, बल्कि नरहर चतुर्दशी को दीवाली मनाते हैं। मान्यता है कि इस दिन नरकासुर के आतंक से मुक्ति मिली थी।
दीवाली के दिन सुबह घर का मुखिया परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर तेल लगाता है और फिर सब लोग स्नान कर नये कपड़े पहनते हैं, जिन्हें पहले मंदिर में रखा जाता है। सवेरे से ही खाने का जोर रहता है। ब्राह्मण ज्यादातर शाकाहारी खाना ही खाते हैं, जबकि ब्राह्मणेतर लोग मांस खाकर खुशी मनाते हैं। गलागला नामक एक विशेष प्रकार की मिठाई तैयार की जाती है, जो हमारे घुघुतों की तरह ही होती है। फर्क इतना है कि गुड़ की जगह चीनी का प्रयोग किया जाता है और उनका आकार भी घुघुतों जैसा नहीं होता। भोजन केले के पत्तों में परोसा जाता है। दीवाली के दिन घर में बिजली की मालायें लगाने का रिवाज नहीं दिखायी दिया, पर घर के बाहर ढेर सारे सूखे रंगों से रंगोली बनाने का रिवाज था, जो हमारे ऐपणों से पूरी तरह भिन्न थी। शाम को पटाखों धूम धड़ाके और धुएँ से चेन्नई शहर भरा हुआ था। मैं जबसे वहाँ गयी थी, मुझे कभी भी अपने पहाड़ों के जैसा तारों से भरा नीला आसमान नजर ही नहीं आया था। इस बात पर मैं अपने एक दोस्त को चिढ़ा भी रही थी की मैं तेरे मद्रास के बिना तारों वाले बदरंग आसमान में थोड़ा नीला रंग और दो-चार तारे ढूँढने की कोशिश कर रही हूँ। पर दीवाली वाले दिन तो आसमान की कल्पना करना ही मुश्किल था।
अगले दिन हमने अपनी कुमाउंनी दीवाली मनाई। व्रत रखा और पूरा बाजार छानकर एक खील का पैकेट खरीद कर लाये जिसमें मुश्किल से दो मुठ्ठी खील होगी, पर कीमत थी 30 रु.! बहरहाल खाँड के खिलौने और बताशे तो हमें नहीं ही मिले। सरसों के तेल के दियों की जगह भी दिये के आकार वाली मोमबत्तियाँ जला कर काम चलाया।
(जारी......)
ye aapke blog kii aapki hi post se liya hai, kya vaakai aapka blog surakshit hai?
Kumarendra singh ji maine to try kiya tha par lagta hai iska koi fayada nahi hai
avagat karane ki liye shukriya
सुनामी हादसे के पहले की रचना मुम्बई हादसे के बाद प्रस्तुत की /चित्रण अति सुंदर
Vineeta humesha ki tarah is baar bhi apne bahut achha yatra vritant padhya. uske liye shukriya.
vineeta waise to is lock ko mai bhi crack kar chuki thi aur shayad apne bhi kar liya ho par fir bhi lock lagane ke baad thora mushkil to hota hi hai aur sub jan shayad hi lock crack kar paye. so laga hai to rahne hi do...
bahut achha chitran kiya hai waha ki riti riwazo ka. achha laga padh ke.
Agale saptaah mai bhee jane vala hoo.
इस नाचीज़ के ब्लाग पर आपकी आमद का शुक्रिया,जिससे के आपके इस बेहतरीन ब्लाग का भी पता चला.क्र्प्या आती रहियेगा.
Chaliye aapke sath Chennai ki yatra ka bhi mauka mil raha hai.
बढ़िया वृतांत व साथ में कुमाऊँ की यादें भी दिलाती रहीं ।
घुघूती बासूती
अरे, आप चेन्नई यात्रा के बारे में बतायें और हमें पता भी नहीं.. क्या करें बहुत व्यस्त चल रहा था सो ठीक से ब्लौग भी नहीं देख पा रहा था.. अब कोई पोस्ट मिस नहीं होगा.. आपको ब्लौग रौल में जोड़ लिया है.. :)
वैसे सर्वना स्टोर गये या नहीं?? अगर नहीं गये थे तो चेन्नई आना व्यर्थ रहा.. वहीं टी.नगर में ही है.. जहां सबसे ज्यादा भीड़ दिखे, बस वहीं कहीं आस पास होगा.. :D
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