नैनीताल में 1918-19 से प्रति वर्ष नन्दा देवी मेले का आयोजन किया जाता है जो कि 3-4 दिन तक चलता है। इस बार भी यह मेला 7 सितम्बर को आयोजित किया गया। मेले के धार्मिक अनुष्ठान पंचमी के दिन से प्रारम्भ हो जाते है। जिसके प्रथम चरण में मूर्तियों का निर्माण होता है। मूर्तियों के निर्माण के लिये केले के वृक्षों का चुनाव किया जाता है। केले के वृक्ष को लाने का भी अनुष्ठान किया जाता है। जिसके बाद मूर्तियों का विधि विधान से निर्माण किया जाता है। नंदा की मूर्ति का स्वरूप उत्तराखंड की सबसे उंची चोटी नंदा के आकार की तरह ही बनाया जाता है। अष्टमी के दिन इन मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और भक्तों के दर्शनों के लिये इन्हें डोले में रखा जाता है। 3-4 दिन तक नियमित पूजा पाठ चलता है और उसके बाद नन्दा-सुनन्दा के डोले के पूरे शहर में घुमाने के बाद संध्या काल में नैनी झील में विसर्जित कर दिया जाता है। इस बार 10 सितम्बर को मूसलाधार बारिश के बीच इस आयोजन का समापन हुआ।
इस दौरान मल्लीताल में मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें बाहर से व्यापारी आकर अपनी दुकानें लगाते हैं। नैनीताल के आस-पास बसे गांव के लोगों के लिये इस मेले का एक विशेष महत्व रहता है। अब इस मेले का स्वरूप काफी बदल गया है और इसे महोत्सव का रूप दिया जा चुका है।
मैंने तस्वीरों के माध्यम से मेले के कुछ पलों को कैद किया प्रस्तुत है वैसे ही कुछ लम्हे
मेले की रौनक
नन्दा-सुनन्दा की विदाई
मेले के बाद
5 comments:
आभार इस प्रस्तुति और जानकारी के लिए.
कमाल, धमाल है, अच्छा लगा, बेजोड है, मुमकिन है!
Bahut Achha kaam
achhe pictures hai vineeta
Good one....the photographs are detailed and it itself describes the beauty of the mahotsav.Thanks a lot...keep it up...atleast it helps us to know about the Indian cultures.
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