Monday, August 31, 2009
ऐसा है हल्द्वानी का इतिहास
हल्द्वानी जिसे पहाड़ों में आने के लिये स्वागत गेट माना जाता है। आज यह शहर कुमाऊं का सबसे बड़ा व्यापारिक शहर बन चुका है और इसका विस्तार दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। हल्द्वानी अपने में बहुत बड़ा इतिहास समेटे हुए है। हल्द्वानी 1907 में टाउन एरिया बना। हल्द्वानी-काठगोदाम नगरपालिका का गठन 21 सितंबर 1942 को किया गया तथा 1 दिसम्बर 1966 में हल्द्वानी को प्रथम श्रेणी की नगर पालिका घोषित किया जा चुका था।
हल्द्वानी में हल्दू के वनों का बहुतायत में पाये जाने के कारण इस शहर का नाम हल्द्वानी पड़ा जिसे यहां की स्थानीय भाषा हल्द्वाणी नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि 16वीं सदी में यहां जब राजा रूपचंद का शासन हुआ करता था तब से ही ठंडे स्थानों से लोग यहां सर्दियों का समय व्यतीत करने के लिये आया करते थे। सन् 1815 में जब यहां गोरखों का शासन था तब अंग्रेज कमिश्नर गार्डनर के नेत्रत्व में अंग्रेजों ने गोरखों को यहां से भगाया। गार्डरन के बाद जब जॉर्ज विलियम ट्रेल यहां के कमिश्नर बन कर आये तब उन्होंने इस शहर को बसाने का काम शुरू किया। ट्रेल ने सबसे पहले अपने लिये यहां बंग्ला बनाया जिसे आज भी खाम का बंग्ला कहा जाता है।
हल्द्वानी में जिस जगह को आज भोटिया पड़ाव कहते हैं ऐसा माना जाता है कि पुराने समय में मुन्स्यारी, धारचूला आदि स्थानों से आकर भेटिया लोग यहां अपना डेरा डालते थे जिस कारण इस जगह का नाम ही भोटिया पड़ाव हो गया और जिस जगह अंग्रेजों ने अपना पड़ावा डाला था उस जगह को गोरा पड़ाव कहा गया। मोटाहल्दू में हल्दू के मोटे पेड़ होने के कारण उसे मोटाहल्दू कहा गया।
कालाढूंगी चौराहे में एक मज़ार थी जिसमें लोग अपने जानवरों की रक्षा के लिये पूजा करते थे उसे कालूसाही का मंदिर कहा जाने लगा। यह मंदिर आज भी यहां स्थित है। इसी प्रकार रानीबाग में कत्यूरवंश की रानी जियारानी का बाग था इसलिये इस जगह को उसके नाम पर ही रानीबाग कहा गया। काठगोदाम में लकड़ियों गोदाम था जहां लकड़ियों को स्टोर किया जाता था इसलिये इस जगह का नाम काठगोदाम हो गया।
सन् 1882 में रैमजे ने पहली बार नैनीताल से काठगोदाम तक एक सड़क का निर्माण करवाया था। 24 अप्रेल 1884 को पहली बार काठगोदाम में रेल का आगमन हुआ था जो कि लखनऊ से काठगोदाम आयी थी।
हल्द्वानी का सफर बहुत अच्छा लगा बधाई
ReplyDeleteकितनी बार हल्द्वानी से गुजरा। कभी इस ओर ध्यान ही नहीं गया। देखते देखते शहर कितना बड़ा हो गया !
ReplyDeleteजानकारी के लिये बहुत धन्यवाद।
वाह.. हलद्वानी का इतिहास इतना रोचक है.. नैनीताल जाते वक्त यहां हमने दो घंटे बिताए थे.. आपने फिर से उस याद को ताज़ा कर दिया..
ReplyDeleteहैपी ब्लॉगिंग.
Aise hi hamaare gyaan ke saagar ko bhartee rahen, shukriya.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
शुक्रिया इतनी खूबसूरत जानकारी के लिए बहुत पहले यहाँ जाना हुआ था ..
ReplyDeleteHaldwani to kai baar ana jaana hua per waha ke baare mai itni jankari to pahle kabhi nahi mili
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी के लिए आभार!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहलद्वानी के बारे मे बहुत रोचक जानकारी दी आपने. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
There should have been more pictures perhaps . If possible do try .
ReplyDeleteविनीता,
ReplyDelete24 अप्रैल, 1884 यानी सौ साल से भी ज्यादा. मैं सोच रहा हूँ कि अगले साठ सालों में अंग्रेजों में नैनीताल-अल्मोडा तक रेल क्यों नहीं पहुंचाई? और फिर आजादी के बाद साठ सालों में भारत ने भी कुछ नहीं किया. करना चाहिए था ना?
हल्दू की लकड़ी से मापक यंत्र, जैसे: तरह तरह के फ़ीटे (वही जिनसे मास्टर लोग पिटाई भी कर लिया करते थे), गुनिया आदि बनाए जाते हैं। अब वे चलन में नहीं है। धातु के बने मापक यंत्रों ने उनकी जगह ले ली है। देहरादून में हल्दू की लकड़ी से बनने वाले इन मापक यंत्रों को बनाने वाली ढेरों लघु औद्योगिक इकाइयां थी। हल्दू की लकड़ी की अनुपलब्धता के चलते वे बंद होती गईं। अब शायद एक भी नही है।
ReplyDeleteकाठगोदाम को काठगोदाम क्यों कहते हैं यह कभी सोचा ही नहीं.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी और जानकारी. इतने बरस तक यह तो सोचा ही नहीं था हमने !
ReplyDeleteजानकारी के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteMunish mere paas Haldwani ki jo pics hai wo is post ke sath match nahi karti isliye maine unko nahi lagaya...ager mil jayngi to baad mai laga dungi...
ReplyDeleteVijay ji is nayi jankari ki liye thxn...mujhe itna sab maloom nahi tha...
Haldwani ki itessah ki jankari uplabdha karwa ki apne achha kaam kiya hai
ReplyDeleteJaankaari ke liye Aabhaar.
ReplyDelete( Treasurer-S. T. )
मेरे ममेरे भाई प्रकाश चन्द्र शर्मा से बचपन मे हल्द्वानी का हाल सुना था फिर उस दिन कवि मित्र राम कुमार तिवारी भी हल्द्वानी को याद कर रहे थे । आपका भी इस तरह हल्द्वानी को याद करना मुझे इस शहर के और करीब ले जा रहा है - शरद कोकास दुर्ग छ,ग.
ReplyDeleteapne akdam sahi kaha aur aaj ke din me are instute ban chuke hain medical college haldwani me ban chukah hain internetion stediuam haldwani (golapr ) me banane wala hain yaha par jamrani badh ka bhi nirman hone wal hain
ReplyDeleteapne akdam sahi kaha aur aaj ke din me are instute ban chuke hain medical college haldwani me ban chukah hain internetion stediuam haldwani (golapr ) me banane wala hain yaha par jamrani badh ka bhi nirman hone wal hain
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