कुमाऊँ में कई लोक देवता हैं जिनमें से एक हैं गोलू देवता। जिन्हें गोलू, श्री ग्वेल ज्यू, बाला गोरिया और गौर भैरव आदि नामों से भी जाना जाता है। गोलू देवता कुमाऊँ में रहने वाले बहुत से लोगों के ईष्ट देव भी हैं। गोलू देवता को न्याय का देवता माना जाता है और लोगों की आस्था है कि गोलू जी के दरबार से कोई भी खाली नहीं लौटता है। गोलू जी सब को न्याय देते हैं और अन्यायी को सजा देते हैं। कुमाऊँ में गोलू जी प्रसिद्ध मंदिर हैं, नैनीताल का घोड़ाखाल मंदिर, चंपावत का मंदिर और अल्मोड़ा का चितई मंदिर। इन मंदिरों में साल के हर माह श्रृद्धालुओं की भीड़ लगी ही रहती है।
गोलू देवता के बारे में किवदंती प्रचलित है कि - गोलू चम्पावत के कत्यूरी वंश के राजा झालुराई के पुत्र थे। झालूराई की सात रानियां थी पर कोई भी संतान नहीं थी। राजा झालुराई ने भैरव भगवान की पूजा कर के उन्हें प्रसन्न किया। भगवान भैरव ने राजा से कहा कि मैं स्वयं तुम्हारे घर में पुत्र बनकर आउंगा पर उसके लिये आपको एक और विवाह करना पड़ेगा।
इसके बाद राजा ने आठवीं रानी प्राप्त करने के प्रयास शुरू कर दिये। एक बार राजा झालुराई शिकार करने वन में पहुंचे तो उन्हें जोरों की प्यास सताने लगी। राजा ने अपने सैनिकों को पानी लाने भेज दिया पर काफी समय तक जब सैनिक वापस नहीं आये तो राजा स्वयं पानी की तलाश में निकल गये। राजा को सामने एक तालाब नजर आया जिसके चारों ओर राजा के सैनिकों के शव पड़े हुए थे। जैसे ही राजा ने पानी में हाथ लगाने की कोशिश की, एक स्त्री ने उनसे कहा - यह मेरा तालाब है और मेरी आज्ञा के बगैर यहां से कोई पानी नहीं ले सकता है। राजा झालुराई ने स्त्री को अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं चम्पावत का राजा झालुराई हूं। पर स्त्री ने उनकी बात वे विश्वास नहीं किया और बोली - यदि आप चम्पावत नरेश हैं तो पहले आपस में लड़ते हुए इन दो भैंसों को अलग करके दिखाइये। राजा को कुछ समझ नहीं आया और उन्होंने अपनी हार मान ली। तब उस स्त्री ने उन भैंसों को अलग कर दिया। राजा को पता चला की वह स्त्री कलिंगा है और राजा ने उससे विवाह कर लिया।
विवाह के कुछ समय पश्चात कलिंगा गर्भवती हो गयी जिस कारण राजा की सातों रानियां कलिंगा से जलने लगी और उन्होंने निश्चय किया कि कलिंगा को मां नहीं बनने देंगी। कलिंगा को जब पुत्र होने वाला था उस समय सातों रानियों ने कलिंगा की आंखों में पट्टी बांध दी और उसके पुत्र को उठाकर गायों के गोठ में फेंक दिया और कलिंगा से कहा कि - तुमने पत्थर को जन्म दिया है। यह सुनकर कलिंगा बेहद आश्चर्यचकित हुई और उदास भी।
इधर पुत्र गायों के गोठ में गायों का दूध पीकर जीवित रह गया तो सातों रानियों ने उसे एक संदूक में बंद कर पानी में फेंक दिया। वह संदूक बहता हुआ गोरीघाट नामक स्थान में पहुंचा जहां उसे एक मछुवारे ने पकड़ लिया। जब उसने उसे खोला तो बच्चे को देखकर वह बेहद खुश हुआ क्योंकि उसकी कोई संतान नहीं थी। मछुवारे और उसकी पत्नी ने बालक को पाल लिया।
जब बालक बड़ा होने लगा था तो उसे अपने जन्म कि सभी बातें स्वप्न में दिखाई देने लगी इसलिये इन बातों की सत्यता का पता करने के लिये बच्चे ने अपने पिता से एक घोड़ा मांगा। पर मछुवारा गरीब था इसलिये उसने एक लकड़ी का घोड़ा लाकर बच्चे को दे दिया। बालक ने इस घोड़े में ही प्राण डाल दिये और उससे यात्रा करने लगा। एक दिन जब बालक घूमते-घूमते झालुराई के राज्य पहुंच गया। वहां उसने एक तालाब देखा जिसके किनारे बैठ कर रानियां कलिंगा के साथ किये दुZव्यवहार की बातें कर रही थी जिसे बालक ने सुन लिया। तभी उसने रानियों से कहा कि - जरा जगह छोड़ो मेरे घोड़े को पानी पीना है। रानियों ने हंस कर कहा - लकड़ी का घोड़ा भी कहीं पानी पीता है। इस पर बालक ने कहा - यदि औरत पत्थर को जन्म दे सकती है तो लकड़ी का घोड़ा भी पानी पी सकता है। बालक की इस धृष्टता पर उसे पकड़ लिया गया और राजा के सामने लाया गया। बालक ने राजा को सभी बातें बता दी। इसके बाद रानियों ने भी अपनी गलतियों को मानते हुए राजा से क्षमा याचना की। बालक के कहने पर राजा ने सभी रानियों को क्षमा कर दिया। यही बालक बाद में गोलू देवता बने जिन्हें राजा ने अपना राज्य सौंप दिया। ग्वेल नाम इन्हें इसलिये दिया गया क्योंकि इन्होंने हमेशा अपनी प्रजा की रक्षा की। गौरीघाट में मिलने के कारण इन्हें गोरिया तथा बहुत गोरा रंग होने और भैरव भगवान की जैसी शक्तियां प्राप्त होने के कारण इन्हें गोर भैरव भी कहा जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि गोलू अपने राज्य में घूम घूम कर अदालतें लगाते थे और दोषियों को सजा देते थे इसलिये इन्हें न्याय का देवता कहा जाता है। आज भी लोग गोलू के मंदिरों में न्याय के लिये जाते हैं और लिख कर अपनी फर्याद गोलू तक पहुंचाते हैं। जिनकी इच्छा पूरी होती है वो घंटी चढ़ाकर भगवान का धन्यवाद करते हैं। इसीलिये गोलू के मंदिरों में घंटियों की बहुतायत रहती है।
Thursday, April 30, 2009
Monday, April 27, 2009
क्या रखा है मेरे नाम में तेरे लिये ?
आज फिर अपनी डायरी से अलेक्जेंडर पूश्किन की एक कविता लगा रही हूं। इस कविता के अनुवादक हैं कुमार कौस्तुभ
क्या रखा है मेरे नाम में
तेरे लिये ?
खत्म हो जायेगा मेरा नाम भी
जैसे, दूर समुद्र के किनारों से टकराती
लहरों का दुख भरा शोर
जैसे रात में सुनसान जंगल में
कोई आवाज़।
छोड़ जायेगा वह
इस यादगार पन्ने पर
एक बेजान निशान
जैसे किसी कब्र पर
अनजानी भाषा में गढ़ी गई इबारत।
क्या है उसमें ? क्या रखा है
बड़ी देर से
नयी विद्रोही व्याकुलताओं में ?
नहीं दे पायेंगी ये
तेरे दिल को कोमल, साफ यादें।
किंतु, बुरे दिनों में, एकांत में
दुख से लेना वह नाम,
कहना : मेरी याद अभी है
संसार में जिंदा है वह दिल
जहां जी रही हूं मैं.....
क्या रखा है मेरे नाम में
तेरे लिये ?
खत्म हो जायेगा मेरा नाम भी
जैसे, दूर समुद्र के किनारों से टकराती
लहरों का दुख भरा शोर
जैसे रात में सुनसान जंगल में
कोई आवाज़।
छोड़ जायेगा वह
इस यादगार पन्ने पर
एक बेजान निशान
जैसे किसी कब्र पर
अनजानी भाषा में गढ़ी गई इबारत।
क्या है उसमें ? क्या रखा है
बड़ी देर से
नयी विद्रोही व्याकुलताओं में ?
नहीं दे पायेंगी ये
तेरे दिल को कोमल, साफ यादें।
किंतु, बुरे दिनों में, एकांत में
दुख से लेना वह नाम,
कहना : मेरी याद अभी है
संसार में जिंदा है वह दिल
जहां जी रही हूं मैं.....
Monday, April 20, 2009
अभी भी कई खुबसूरत झीलें हैं नैनीताल में
नैनीताल से 23 किमी दूर सातताल नाम की एक बहुत ही खुबसूरत जगह है। यहां पर सात तालों - गरूड़ ताल, नल-दमयंती ताल, राम, लक्ष्मण, सीता ताल तथा पुर्ण ताल, सुखा ताल।
सबसे पहले जो ताल पड़ती है वो है नल-दमयंती ताल। पौराणिक कथाओं के अनुसार नल दमयन्ती झील का नाम एक राजा नल और उसकी पत्नी दमयन्ती के नाम पर पड़ा जो यहां पर आये थे और बाद में इस ताल में ही उनकी समाधि बन गयी। उस समय में यह ताल बहुत बड़ी थी और इससे लगभग पूरे गांव में सिंचाई की जाती थी इसी कारण यहां की खेती भाबर की खेती को भी मात करती थी और यहां पर बहुत घना जंगल भी था जो अब खत्म होने लगा है।
उसी समय एक महात्मा के द्वारा इस झील में मछलियां पाली गई थी और ऐसी मान्यता रही कि इस झील में कभी भी मछलियां नहीं मारी जा सकती हैं। यह मान्यता आज भी बनी हुई हैै जिस की वजह से इस झील में आज भी काफी बड़ी और प्रमुख मछलियों का अस्तित्व बचा हुआ है। इन मछलियों में प्रमुख हैं सिल्वर कार्प, गोल्डन कार्प और महासीर जिन्हें बिना किसी मेहनत के झील के बिल्कुल सापफ पानी में यहां वहां घूमते हुए आसानी के साथ देखा जा सकता है।
इसके बाद गरूड़ ताल पड़ती है। यह छोटी सी ताल है और इसका पानी बहुत ही साफ है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस झील के पास पांडवों के वनवास के दौरान द्रोपदी ने अपनी रसोई बनाई थी। द्रोपदी द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले सिल-बट्टा आज भी यहां पे पत्थरों के रूप में मौजूद है। स्थानीय लोगों की ऐसी मान्यता है कि इस पूरे इलाके में पांडव अपने वनवास के दौरान रहे थे।
इसी ताल से कुछ आगे राम, लक्ष्मण, सीता ताल है। यह ताल सबसे बड़ी ताल है जिसमें तीनों ताल एक साथ जुड़ी हुई है। 65 वषीZय एक स्थानीय महिला से जब मैंने यह पूछा कि इसे राम, लक्ष्मण, सीता ताल क्यों कहते हैं ? क्या यहां राम, लक्ष्मण, सीता भी कभी रहे थे ? तो उनका कहना था कि रहे ही होंगे क्योंकि किसी भी जगह का नाम ऐसे ही तो नहीं पड़ता पर हमें तो जो पता है उसके अनुसार यहां पांडव लोग भी रहे थे और यहीं भीम ने हिडम्बा राक्षसी का अंत किया था। सूखा ताल और पूर्ण ताल झीलों का अस्तित्व लापरवाहियों के चलते अब समाप्त हो गया है। पर इन दो झीलों के अलावा जो झीलें हैं वो आज भी अच्छी स्थिति में हैं।
अंग्रेजों के समय में इस जमीन में चाय की काफी अच्छी खेती हुआ करती थी जिस कारण इसे जून स्टेट भी कहते हैं। परन्तु अंग्रेजों के चले जाने के साथ ही इसका भी विनाश हो गया पर अब सराकर ने चाय की खेती से संबंधित कुछ परियोजनायें इस क्षेत्र में शुरू की है।
यहां एक प्राचीन चर्च भी है जो अपने शिल्प के लिये काफी मशहूर है। सातताल से ही 7-8 किमी. की खड़ी चढ़ाई तय करके हिडम्बा देवी का मंदिर भी है। इस मंदिर में जो बाबा जी रहते हैं उन्होंने कई प्रजातियों के पेड़-पौंधे, फूल और जड़ी-बूटियां यहां पे लगाई हैं जिस कारण इस स्थान पे विभिन्न प्रजातियों की चिड़ियां देखने को भी मिल जाती हैं।
तस्वीरें : गूगल सर्च से साभार
सबसे पहले जो ताल पड़ती है वो है नल-दमयंती ताल। पौराणिक कथाओं के अनुसार नल दमयन्ती झील का नाम एक राजा नल और उसकी पत्नी दमयन्ती के नाम पर पड़ा जो यहां पर आये थे और बाद में इस ताल में ही उनकी समाधि बन गयी। उस समय में यह ताल बहुत बड़ी थी और इससे लगभग पूरे गांव में सिंचाई की जाती थी इसी कारण यहां की खेती भाबर की खेती को भी मात करती थी और यहां पर बहुत घना जंगल भी था जो अब खत्म होने लगा है।
उसी समय एक महात्मा के द्वारा इस झील में मछलियां पाली गई थी और ऐसी मान्यता रही कि इस झील में कभी भी मछलियां नहीं मारी जा सकती हैं। यह मान्यता आज भी बनी हुई हैै जिस की वजह से इस झील में आज भी काफी बड़ी और प्रमुख मछलियों का अस्तित्व बचा हुआ है। इन मछलियों में प्रमुख हैं सिल्वर कार्प, गोल्डन कार्प और महासीर जिन्हें बिना किसी मेहनत के झील के बिल्कुल सापफ पानी में यहां वहां घूमते हुए आसानी के साथ देखा जा सकता है।
इसके बाद गरूड़ ताल पड़ती है। यह छोटी सी ताल है और इसका पानी बहुत ही साफ है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस झील के पास पांडवों के वनवास के दौरान द्रोपदी ने अपनी रसोई बनाई थी। द्रोपदी द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले सिल-बट्टा आज भी यहां पे पत्थरों के रूप में मौजूद है। स्थानीय लोगों की ऐसी मान्यता है कि इस पूरे इलाके में पांडव अपने वनवास के दौरान रहे थे।
इसी ताल से कुछ आगे राम, लक्ष्मण, सीता ताल है। यह ताल सबसे बड़ी ताल है जिसमें तीनों ताल एक साथ जुड़ी हुई है। 65 वषीZय एक स्थानीय महिला से जब मैंने यह पूछा कि इसे राम, लक्ष्मण, सीता ताल क्यों कहते हैं ? क्या यहां राम, लक्ष्मण, सीता भी कभी रहे थे ? तो उनका कहना था कि रहे ही होंगे क्योंकि किसी भी जगह का नाम ऐसे ही तो नहीं पड़ता पर हमें तो जो पता है उसके अनुसार यहां पांडव लोग भी रहे थे और यहीं भीम ने हिडम्बा राक्षसी का अंत किया था। सूखा ताल और पूर्ण ताल झीलों का अस्तित्व लापरवाहियों के चलते अब समाप्त हो गया है। पर इन दो झीलों के अलावा जो झीलें हैं वो आज भी अच्छी स्थिति में हैं।
अंग्रेजों के समय में इस जमीन में चाय की काफी अच्छी खेती हुआ करती थी जिस कारण इसे जून स्टेट भी कहते हैं। परन्तु अंग्रेजों के चले जाने के साथ ही इसका भी विनाश हो गया पर अब सराकर ने चाय की खेती से संबंधित कुछ परियोजनायें इस क्षेत्र में शुरू की है।
यहां एक प्राचीन चर्च भी है जो अपने शिल्प के लिये काफी मशहूर है। सातताल से ही 7-8 किमी. की खड़ी चढ़ाई तय करके हिडम्बा देवी का मंदिर भी है। इस मंदिर में जो बाबा जी रहते हैं उन्होंने कई प्रजातियों के पेड़-पौंधे, फूल और जड़ी-बूटियां यहां पे लगाई हैं जिस कारण इस स्थान पे विभिन्न प्रजातियों की चिड़ियां देखने को भी मिल जाती हैं।
तस्वीरें : गूगल सर्च से साभार
Thursday, April 16, 2009
नैनीताल रोपवे
ताउ रामपुरिया जी ने अपने ब्लॉग में पिछले शनिवार को नैनीताल के रोपवे पर एक पहेली पूछी थी। आज में उसी रोपवे के विषय में थोड़ी और जानकारी इस पोस्ट में उपलब्ध करवा रही हूं।
नैनीताल की शान माने जाने वाला रोपवे जो आज नैनीताल के पर्यटन में अपना विशेष स्थान रखता है। इसकी शुरूआत 16 मई 1985 को की गई थी। इस रोपवे का उद्घाटन उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी ने किया था। इस इस रोपवे को नैनी त्रिवेणी इलाहाबाद और वैस्ट अल्पाइन कम्पनी अस्ट्रीया के द्वारा बनवाया गया था। इसमें 800 किग्रा. का वजन एक बार में ले जाया जा सकता है।
यह मल्लीताल रिक्शा स्टेंड से स्नोव्यू तक जाती है। इसकी अधिकतम गति 6 मीटर प्रति सेकेण्ड है और यह 700 मीटर की दूरी को लगभग 5 मिनट में तय कर लेती है। यह दूरी सड़क द्वारा 2.5 किलोमीटर की है। इसे बनाने का मकसद सिर्फ पर्यटकों के एक अच्छा मनोरंजन उपलब्ध करवाना है जो यह आज भी कर रही है। इस रोपवे का वाषिZक टर्नओवर लगभग 1 करोड़ का है और यह 30 प्रतिशत मनोरंजन कर सरकार को देती है साथ ही कई लोगों को रोजगार भी दे रही है।
नैनीताल की शान माने जाने वाला रोपवे जो आज नैनीताल के पर्यटन में अपना विशेष स्थान रखता है। इसकी शुरूआत 16 मई 1985 को की गई थी। इस रोपवे का उद्घाटन उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी ने किया था। इस इस रोपवे को नैनी त्रिवेणी इलाहाबाद और वैस्ट अल्पाइन कम्पनी अस्ट्रीया के द्वारा बनवाया गया था। इसमें 800 किग्रा. का वजन एक बार में ले जाया जा सकता है।
यह मल्लीताल रिक्शा स्टेंड से स्नोव्यू तक जाती है। इसकी अधिकतम गति 6 मीटर प्रति सेकेण्ड है और यह 700 मीटर की दूरी को लगभग 5 मिनट में तय कर लेती है। यह दूरी सड़क द्वारा 2.5 किलोमीटर की है। इसे बनाने का मकसद सिर्फ पर्यटकों के एक अच्छा मनोरंजन उपलब्ध करवाना है जो यह आज भी कर रही है। इस रोपवे का वाषिZक टर्नओवर लगभग 1 करोड़ का है और यह 30 प्रतिशत मनोरंजन कर सरकार को देती है साथ ही कई लोगों को रोजगार भी दे रही है।
Tuesday, April 14, 2009
Monday, April 13, 2009
Tuesday, April 7, 2009
ऐसे भी लोग होते हैं
बलबीर सिंह जी फोटोग्राफी के क्षेत्र में एक जानमाना नाम हैं। आज तक बलबीर जी को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में लगभग 10 प्रथम अवॉर्ड, 16 सर्टिफिकेट ऑफ मैरिट्स सहित कई अन्य पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। अभी तक वह राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय प्रदशर्नियों में 600 से ज्यादा अंक हासिल कर चुके हैं। इनको इंडिया इंटरनेशनल फोटोग्राफी काउंसिल नई दिल्ली एवं इंटनरनेशनल फोटाग्राफी काउंसिल ऑफ अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से प्लेटिनम एवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। बलवीर इस सम्मान को प्राप्त करने वाले भारत के प्रथम विकलांग छायाकार हैं।
मैं बलवीर जी को बचपन से ही उनकी गाड़ी में यहां-वहां जाते देखती थी और उनकी गाड़ी मुझे बहुत आकर्षित करती थी इसीलिये मैं उन्हें 'गाड़ी वाले सरदार जी' कहती थी पर उस समय मुझे यह मालूम नहीं था कि वो यह गाड़ी क्यों इस्तेमाल करते हैं। बहुत बाद में एक फोटो प्रदर्शनी के दौरान मुझे यह बात पता चली की वो चल नहीं पाते हैं इसलिये उस गाड़ी का इस्तेमाल करते हैं। तब से उनके लिये मेरे दिल में काफी इज्जत बन गयी थी क्योंकि ऐसी अवस्था में जहां बहुत से लोग स्वयं को लाचार और बेबस समझने लगते हैं बलवीर जी ने नेचर फोटोग्राफी में अपना नाम स्थापित किया। जिस दिन मुझे उनको सामने बैठ कर उनसे बात करने का मौका मिला वो दिन मेरे लिये बहुत खास था और उसके बाद से मुझे अकसर ही बलबीर जी से बात करने और फोटोग्राफी में कुछ न कुछ सीखने के लिये मिलता ही है।
इस पोस्ट में मैं बलबीर जी से की उस बात के कुछ अंश लगा रही हूं।
प्रश्न :- बलवीर जी, आपने फोटोग्राफी की शुरूआत कैसे की ?
उत्तर :- घरेलू फोटोग्राफी करते-करते ही शुरूआत हो गयी। जब छोटा था तो घर वालों की फोटो खींचता था, पर कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इस मुकाम तक पहुँच जाऊँगा। एक बार फ्यूजी फिल्म कॉम्पटीशन में अपनी एक फोटो भेज दी, जिसमें मुझे 8 फ्यूजी रील, 4 टी शर्ट और एक वॉल क्लॉक इनाम के तौर पर मिले। इस घटना से उत्साह बढ़ा और आत्मविश्वास पैदा हुआ कि मैं भी फोटोग्राफी कर सकता हूँ।
सबसे पहले मैंने एक जैनिथ कैमरा खरीदा, जिसमें मुझे जानकारी न होने के कारण धोखा भी खाना पड़ा। कैमरे की कीमत 1,500 रुपये थी पर मुझे इसके लिये 5,000 रुपये देने पड़े थे। उसके बाद मैंने कैनन का कैमरा और लैंस खरीदे जिससे फिर अच्छे स्तर की फोटोग्राफी की शुरूआत हुई।
प्रश्न :- यह सिलसिला कैसे आगे बढ़ा ?
उत्तर :- मैं लगातार अनूप साह जी को अपने खींचे हुए फोटो दिखाता। कुछ उन्हें अच्छे लगते पर अिधकांश को वे रिजेक्ट कर देते थे। शुरू-शुरू में तो मेरी फोटो खींचने की स्पीड भी काफी कम थी और ज्ञान न होने के कारण कई रोल बर्बाद भी होते थे। पर मैं मेहनत करता रहा। फिर फोटो प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया तो सफलताये मिलीं।
प्रश्न :- आपका प्रिय विषय क्या है ?
उत्तर :- मुझे नेचर फोटोग्राफी ज्यादा पसंद है। फोटोग्राफी में भी कई क्षेत्र होते हैं, जैसे कलर प्रिट और स्लाइड। कलर प्रिंट में चार तरह की फोटोग्राफी होती है नेचर, वाइल्ड, जर्नलिज्म और ट्रेवल। इन सबमें वाइल्ड फोटाग्राफी सबसे ज्यादा कठिन है, पर इसमें सफल होने के अवसर बहुत ज्यादा होते हैं। क्योंकि जो चीज देखनी ही मुश्किल है, उसका चित्र लेना तो और भी कठिन है। एक बार मेरा एक फोटो इन चारों श्रेणियों में चुन लिया गया, जो मेरे लिये किसी अजूबे से कम नहीं था। उसके बाद ही मैंने स्लाइड भी खींचने शुरू किये।
प्रश्न :- सुना है कि आप फुटबॉल के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे। क्या तब भी आप फोटोग्राफी के शौकीन थे ?
उत्तर :- फुटबॉल का नहीं, क्रिकेट का। मैं क्रिकेटर ही बनना चाहता था। उस समय तो फोटोग्राफी दूर-दूर तक मेरे दिमाग में नहीं थी।
प्रश्न :- आपके साथ यह हादसा कब हुआ ?
उत्तर :- यह एक बीमारी है जिसका नाम स्पास्टिक पैराप्लीडिया है। इसकी शुरूआत धीरे-धीरे हुई। मैं उस समय 20 साल का था और क्रिकेट खेलता था। एक दिन जब मैं रन लेने के लिये दौड़ा तो मुझे लगा कि मेरे पैरों में कुछ भारीपन सा महसूस हुआ जिस कारण मैं दौड़ नहीं पा रहा था। उसके बाद यह परेशानी बढ़ने लगी। अकसर ही चलते-चलते मेरे पैर अकड़ जाते। नीचे उतरते हुए मैं अपने पैरों में नियंत्रण नहीं रख पाता। पेशाब में भी मैं नियंत्रण खोने लगा था। जब यह समस्या लगातार होती रही तो मैं डॉक्टर के पास गया। स्थानीय डॉक्टर कुछ विशेष नहीं कर सके तो चंडीगढ़ के एक डॉक्टर का परामर्श लिया। उनकी दवाइयाँ इंगलैंड से मँगवानी पड़ती थीं।
इस तमाम इलाज के दौरान लगभग एक साल बीत चुका था और मैं धीरे-धीरे इस का आदी होने लगा था। हालाँकि मेरे परिवार वालों ने मेरे इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने आयुर्वेद का भी सहारा लिया। मंदिर, मिस्जद, गिरजे, गुरुद्वारे कोई जगह नहीं छोड़ी। झाड़-फूँक तक का सहारा भी लिया।
प्रश्न :- फिर आपने अपनी जिन्दगी कैसे सँवारी ?
उत्तर :- चंडीगढ़ वाले डॉक्टर ने मेरे घर वालों से कहा कि इसे घर मैं मत बैठने देना। इसका आत्मविश्वास कम हो जायेगा। तब मैंने स्टेट बैंक की परीक्षा दी और चुन लिया गया। घर में पैसों की कमी नहीं थी पर फिर भी मुझे नौकरी करना अच्छा लगा, क्योंकि इससे समय कट जाता था। मैंने अपनी नौकरी में कोई प्रमोशन नहीं लिया क्योंकि मैं ट्रांस्फर नहीं चाहता था। फिर जब बचे हुए समय को काटने का सवाल सामने आया तो फोटोग्राफी शुरू कर दी।
प्रश्न :- मतलब, यदि आपके पैर खराब न होते तो शायद आप फोटोग्राफर भी नहीं होते ?
उत्तर :- नहीं ! तब मैं शायद क्रिकेट ही खेल रहा होता।
प्रश्न :- बैंक की नौकरी के साथ फोटोग्राफी के शौक का सामंजस्य आप कैसे बिठाते हैं ?
उत्तर :- देखिये, नौकरी का समय होता है सुबह 9 से शाम 5 बजे तक और फोटोग्राफी का समय होता है सुबह 9 बजे से पहले और शाम को 5 बजे के बाद। मैं दोनों काम आसानी से कर लेता हूँ। कभी जब बाहर जाना होता है तो मैं बैंक से छुट्टी ले लेता हूँ। पर ऐसे मौंके कम आते हैं। अपने साथी कर्मचारियों से भी मुझे पूरा सहयोग मिलता है।
मुझे सबसे ज्यादा सहयोग मिलता है मेरी गाड़ी से और मेरे घर में काम करने वाले हीरा लाल से। मैं जब सवेरे उठता हूँ और कहीं बाहर जाने की सोचता हूँ तो ये दोनों हमेशा मेरी मदद के लिये मेरे साथ होते हैं। मेरी गाड़ी तो खैर मेरे पैर हैं ही, पर हीरा लाल भी मेरे लिये कुछ कम नहीं हैं।
प्रश्न :- नेचर फोटोग्राफी एक कठिन काम है, क्योंकि प्रकृति तो आपके पास आती नहीं। आप ही को उसके पास जाना पड़ता है। तो कभी आपने असमर्थता महसूस नहीं की ?
उत्तर :- मेरे पैरों की कमी मेरी गाड़ी पूरा कर देती है। लेकिन बहुत सारी जगहें ऐसी हैं, जहाँ मैं चाह कर भी नहीं जा पाता। यह कमी अखरती तो है। फिर भी मैं संतुष्ट हूँ कि इतना कुछ तो कर पाया।
प्रश्न :- जब कभी बाहर जाते हैं तो क्या किसी को अपने साथ ले जाते हैं ?
उत्तर :- नैनीताल में तो अकेला ही चला जाता हूँ, पर बाहर जाने पर मित्रों को साथ ले जाना पड़ता है। पर आमतौर पर मुझे अकेले ही फोटोग्राफी करना पसंद है, क्योंकि उसमें आपको पूरी आजादी मिलती है।
प्रश्न :- आपको सबसे ज्यादा प्रेरणा किस से मिलती है ?
उत्तर :- प्रकृति और बच्चों से। बच्चों की मासूमियत मुझे बहुत अच्छी लगती है। उनमें सीखने की जो लगन होती है, वह मुझे बहुत प्रभावित करती है। और प्रकृति तो जितना सिखाती है, उतना कोई नहीं सिखा सकता। हिमालय, पर्वत, बादल, पतझड़, बसंत, बारिश, हवा, फूल, पत्ते सब चीजें कुछ न कुछ सिखाती हैं। इसका अहसास मुझे तब हुआ जब मैं फोटोग्राफी करने लगा। जब मैं पहली बार जिम कॉबेट पार्क गया तो वहाँ मैंने हाथियों के झुंड को बहुत नजदीक से देखा। उनमें जो अनुशासन था, वह मैंने कभी इंसानों में नहीं देखा। हम जो किसी से यह कहते हैं कि कैसा जानवर है, गलत है। हमें तो कहना चाहिये की जानवरों की तरह ही रहो। यदि ऐसा हुआ तो ये दुनिया बहुत खूबसूरत बन जायेगी।
प्रश्न :- डिजिटल कैमरे के बारे में आपके क्या विचार हैं ?
उत्तर :- मैं डिजिटल कैमरे से फोटोग्राफी करना बिल्कुल पसंद नहीं करता। इससे आपकी अपनी सर्जनात्मकता खत्म हो जाती है। आप कोई फोटो खीचते हैं और फिर उसे कम्प्यूटर द्वारा बदल देते हैं। उसमें आपका कमाल कहाँ रहा ? वह तो कम्प्यूटर का कमाल हुआ। फिर डिजिटल कैमरे के लिये कम्यूटर का ज्ञान भी होना चाहिय। कभी कम्प्यूटर खराब हो गया तो सारी मेहनत बेकार हो जाती है। प्रोफेशनल लोगों के लिये डिजिटल कैमरे फायदेमंद हैं, पर नेचर फोटोग्राफी में मैं इसकी आवश्यकता नहीं देखता।
ये है बलवीर जी की गाड़ी
बलबीर जी द्वारा खींचे गये छायाचित्र अगली पोस्ट में