ताउ रामपुरिया जी ने अपने ब्लॉग में पिछले शनिवार को नैनीताल के रोपवे पर एक पहेली पूछी थी। आज में उसी रोपवे के विषय में थोड़ी और जानकारी इस पोस्ट में उपलब्ध करवा रही हूं।
नैनीताल की शान माने जाने वाला रोपवे जो आज नैनीताल के पर्यटन में अपना विशेष स्थान रखता है। इसकी शुरूआत 16 मई 1985 को की गई थी। इस रोपवे का उद्घाटन उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी ने किया था। इस इस रोपवे को नैनी त्रिवेणी इलाहाबाद और वैस्ट अल्पाइन कम्पनी अस्ट्रीया के द्वारा बनवाया गया था। इसमें 800 किग्रा. का वजन एक बार में ले जाया जा सकता है।
यह मल्लीताल रिक्शा स्टेंड से स्नोव्यू तक जाती है। इसकी अधिकतम गति 6 मीटर प्रति सेकेण्ड है और यह 700 मीटर की दूरी को लगभग 5 मिनट में तय कर लेती है। यह दूरी सड़क द्वारा 2.5 किलोमीटर की है। इसे बनाने का मकसद सिर्फ पर्यटकों के एक अच्छा मनोरंजन उपलब्ध करवाना है जो यह आज भी कर रही है। इस रोपवे का वाषिZक टर्नओवर लगभग 1 करोड़ का है और यह 30 प्रतिशत मनोरंजन कर सरकार को देती है साथ ही कई लोगों को रोजगार भी दे रही है।
Achhi aur inresting jankari de hai apne...
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारि दी आपने. हम जून १९८५ मे जब वहां आये थे तब यह भी अपने आप मे अजूबा था. क्योंकी यह शुरु ही हुई थी, और इसमे चढने के लिये लंबी लाईन लगाना पडती थी.
ReplyDeleteजितने दिन हम वहां रहे , बच्चो का रोजाना इसमे बैठ कर स्नोव्यु जाने का आग्रह रहता था. इस ट्राली से नैनीझील के कुछ बहुत ही खूबसूरत चित्र मेने लिये थे जो उस पहेली के क्ल्यु मे दिखाये भी गये थे.
इसकी सवारी के दौरान बडा मनोरम दृष्य दिखाई देता है नैनीताल शहर का.
आपने इसकी पुरी जानकारि मुहैया करवाई, बहुत धन्यवाद.
रामराम.
आपने बहुत अच्छी जानकारी दी.. दो साल पहले करीब इसी वक्त नैनीताल गया था.. रोपवे देखकर फिर से उसी यात्रा की यादें ताजा हो गईं.. आपका आभार इतनी अच्छी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए..
ReplyDeleteainital ke baare mai aap bahut achhi jankariya uplabdha karwa rahi hai.
ReplyDeleteइस तरह के रोपवे मैंने हरिद्वार और भोपाल में भी देखे हैं.सभी जगह इनका मुख्य उद्देश्य पर्यटकों को ऊंची पहाड़ी पर कम समय में सुगमता से ले जाना है. साथ में मनोरंजन भी हो जाता है.
ReplyDeleteरोपवे की अच्छी जानकारी दी आपने.
ReplyDeleteजानकारी में इस इजाफे के लिए आभार.
ReplyDeleteएक आह निकल आई. न जाने कब जाना होगा. भारत कितना विशाल है. अब तक सुदूर उत्तर की और जा नहीं पाए, इस बात का खेद है.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी है आपने ..शुक्रिया
ReplyDeleteजा चूका हूँ....
ReplyDeleteमैंने भी कई रोप वे देखी हैं. हर एक का एक ही मकसद होता है-- पर्यटकों को सुगमता से ऊँचाई पर पहुँचाना. अच्छा लगा नैनीताल के रोप वे के बारे में जानकर.
ReplyDeleteआपका धन्यवाद इतनी अच्छी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए.... नैनीताल जाना तो हुआ है, पर समय के कमी के कारण इसके आनंद से वंचित रहा.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी .
ReplyDeleteआपने नैनीताल के बारे में इतना कुछ बता दिया, अब तो लगता है इस साल वहाँ का कार्यक्रम बनाना ही पडेगा।
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जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?
this time i would like to try this !
ReplyDeletea very nice blog !
ReplyDeleteropeway ka apna maja hai.. jankari achchi lagi.. vaise nainital ka to pryatan ke mamle me koi javab nahi hai....apne saathiyo se aksar kahta hoo nainital ki jheel ke samne bhoapl ki jheel kuch khas nahi hai...
ReplyDeleteविनीता जी यदि सात-ताल के विषय में आपके पास कोई आलेख हो तो उसे अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करने की कृपा करें । ब्लोग्गर्स का प्रस्तावित पर्वतीय ट्रिप 'मिशन सप्त-सरोवर' (सन्दर्भ maykhaana) आपके आलेख से लाभान्वित होगा । यूँ तो नेट पर काफ़ी जानकारी होगी किंतु मैंने अतीत में कबाड़खाने पर आपके ताल संबंधी अद्भुत लेख पढ़े हैं और इसी वजह से ये गुज़ारिश आप से की जाती है । सहयोग के लिए आभारी रहूँगा ।
ReplyDeletevineeta ji lagta hai nainital par apne poori reserch kar lii hai tabhi itni achchi jaankariyo ke madhyam se aap nainital ko prasarit kar rahe hai.... aapse nivedan hai aage aane wale samay me aur jankari dekar humko labhanvit karne ki kirpa kijiyega....
ReplyDeletethanks
बेहतर जानकारी
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