जिस समय तक हम दोस्त की बहन के घर पहुंचे हमें 4.30 बज गये थे और ठंडी भी बहुत बढ़ गयी थी। घर में दीवाली की रौनक थी जिसमें हम भी शामिल हो गये और हमारा पैदल बाजार आने का प्लान केंसिल हो गया। रानीखेत में भी शाम के समय दीवाली की काफी रौनक थी पर मुझे नैनीताल के मुकाबले थोड़ा कम ही लगी क्योंकि बहुत ज्यादा पटाखों का शोर नहीं सुनाई दे रहा था जो कि हर लिहाज से बहुत अच्छा था। हमने बरामदे में खड़े होकर कुछ देर तक दीवाली का नजारा देखा पर ठंडी से बुरा हाल हो जाने के कारण अंदर आ गये और गप्पें मारने लगे। अगली सुबह करीब 9 बजे हमें वापस नैनीताल लौटना था सो हमने खाना खाया और सो गये।
सुबह थोड़ी आलस भरी थी क्योंकि अच्छी खासी ठंडी थी। थोड़ा आलस करने के बाद हम उठे और बाहर बरामदे में आ गये। यहाँ से हिमालय का नजारा दिखायी दे रहा था पर उसके ऊपर बादल छाये थे। खैर हिमालय का नजारा देखते हुए गुनगुनी धूप में काॅफी पीने का अलग ही मजा होता है जिसका हमने पूरा फायदा उठाया। हमें आज 9 बजे रानीखेत से निकलना था क्योंकि फिर मेरी दोस्त के भाई को दिल्ली जाना था। इसलिये हम नाश्ता कर के ठीक 9 बजे वहाँ से निकल गये। सुबह की धूप में रानीखेत अलग ही मूड में लग रहा था। जब हम वापस लौट रहे थे तब अचानक ही हमने झूला देवी के मंदिर जाने का फैसला कर लिया और गाड़ी वहाँ को मोड़ ली।
यह मंदिर रानीखेत से 7 किमी. दूरी पर चैबटिया जाने वाले रास्ते में है। जब हम इस रास्ते पर बढ़े तो चैबटिया का घना जंगल शुरू हो गया। इस जंगल में कई प्रजाति के पेड़-पौंधे हैं। जंगलों के बीच से जाती हुई सड़क बहुत अच्छी लगती है। झूला देवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि पहले यहाँ काफी घना जंगल था और इसमें कई जंगली जानवर थे जो ग्रामीणों पर हमला कर उन्हें मार देते थे। ग्रामीणों ने मां दुर्गा से अपनी रक्षा की प्रार्थना की। मां दुर्गा ने एक ग्रामीण के सपने में आकर इस स्थान पर अपना मंदिर बनाने के लिये कहा। जब यहाँ पर खुदाई की गई तो मां दुर्गा की मूर्ति निकली जिसे इसी जगह पर स्थापित कर दिया गया। बाद में देवी ने फिर सपने में आकर इस मंदिर में झूला लगाने के लिये कहा जिसके बाद से इसे झूला देवी का मंदिर कहा जाने लगा। इस मंदिर के चारों ओर अनगिनत छोटी-बड़ी घन्टियां टंगी हुई हैं जिन्हें श्रृद्धालु आकर मंदिर में चढ़ा जाते हैं।
यहाँ से फिर हम नैनीताल के लिये वापस लौट लिये। जब हम वापस लौट रहे थे तो अचानक गाड़ी में जोर-जोर से झटके लगने लगे। पीछे बैठे होने के कारण मुझे झटके ज्यादा जोर से लग रहे थे। मैंने अपने दोस्त को गाड़ी की स्पीड कम करने को कहा। उसने बोला उसने स्पीड कम ही रखी है। खैर कुछ देर ऐसे ही चलता रहा और फिर झटके और जोर से लगने लगे। मैंने स्पीड कम करने के लिये कहा तो उसने बोला कि स्पीड तो कम ही है। कुछ देर बाद जब बुरी तरह झटके लगने लगे तो मैंने गुस्से के साथ उसे बोला कि वो गाड़ी रोक के मुझे यहीं उतार दे मैं किसी दूसरी टैक्सी से आ जाउंगी तो उसने मुझे गाड़ी की स्पीड देखने को बोला जो 20-25 की स्पीड पे चल रही थी। मुझे यकीन नहीं हुआ कि इतनी कम स्पीड में इतने झटके क्यों लग रहे हैं। हमने गाड़ी रोक कर जब टायर देखे तो पता चला कि पीछे वाला टायर बुरी तरह फट गया था।
हालांकि रोडसाइड बोर्ड यात्रा के सुखद होने और प्रकृति की सुन्दरता को इन्जाॅय करने की कामना कर रहे थे पर फिर भी हमारा अच्छा खासा सफ़र अंग्रेजी वाला सफर बन गया था पर अच्छा यह था कि हमारे पास स्टेपनी रखी हुई थी सो हमने गाड़ी साइड लगा कर टायर बदलना शुरू कर दिया। जब हम टायर बदल रहे थे तो आने-जाने वाले लोग हमें ऐसे देख रहे थे जैसे हम पता नहीं क्या कर रहे हों...कुछ सज्जन ऐसे भी थे जो ये दिखा रहे थे कि अब तो हमें इस महान मुसीबत से बस वो ही बचा सकते हैं और कुछ लोग अपनी फ्री एडवाइस देने से भी बाज़ नहीं आये। खैर हमने टायर बदला और आगे निकल लिये। इसके आगे का रास्ता अच्छे से बीता पर बेचारे टायर की हालत देख कर बहुत अफसोस हुआ और साथ में अपनी अच्छी किस्मत पर खुशी भी हुई की गाड़ी पलटी नहीं। इस बार समय बहुत कम होने के कारण मैं रानीखेत को बहुत अच्छे से नहीं देख पायी इसलिये एक बार फिर रानीखेत जाना तो तय है...
समाप्त
Balle Balle
ReplyDeleteझूला देवी , चौबटिया ..बहुत कुछ याद आ गया आभार.
ReplyDeleteसपने और सपने के सिक्वल काफी कॉमन हैं हमारे देश में ! खूबसूरत तसवीरें.
ReplyDeleteशानदार विवरण... भगवान से प्रार्थना करेंगे कि अब कभी आपका सफर अंग्रेजी वाला सफर नहीं बने...
ReplyDeleteहैपी ब्लॉगिंग
Shaandar , make pics bigger pls.
ReplyDeletegaon kee yaat taaji kar di.. aabhar.. likhte rahiye....
ReplyDeleteHaardik shubhkamnayen
सरल ब्यौरा, साथ ही अच्छे फ़ोटो भी,
ReplyDeleteI really envy you !
ReplyDeletesundar!
ReplyDeleteThank you friends...
ReplyDeleteरानीखेत की यात्रा शानदार रही. चित्रों के बीच वाटर मार्किंग न करें तो अच्छा होगा. नीचे देने में कोई हर्ज़ नहीं है. पत्नी के स्वर्गवासी हो जाने के बाद पिछले तीन माह से ब्लॉग्गिंग से दूर हो चला था. धीरे धीरे पुरानी पोस्टों को भी बांच ही लूँगा.
ReplyDeleteखूबसूरत तसवीरें..शानदार विवरण
ReplyDeletehttp://shayaridays.blogspot.com
एक बार फिर रानीखेत जाना तो तय है...
ReplyDelete...क़त्ल !!
बस इस एक लाइन पे. बाकी तो 'बोनस' है.
Thnx Subramaniuan ji, Richa & Darpan...
ReplyDeleteअत्यधिक विलम्ब से हाजिर हुआ । यात्रा बृतांत पढा । रोचक
ReplyDeleteaap ke vritant padhe. achche lage. aap aur vistar se likhen aur jagahon ke sath sath logon ke bare men bhi likhen. kahin kahin vyakaran ki galatiyan hain. rahulji ne himalay ke ilakon par kafi likha hai. khoa kar padhen.
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