रानीखेत की मेरी यह यात्रा 5-6 नवम्बर 2010 को दीवाली वाले दिन की है। हमेशा की तरह मेरी यह यात्रा भी अचानक ही बनी और ऐसी यात्रायें हमेशा बहुत मजेदार रहती हैं। हुआ कुछ ऐसा कि दीवाली से एक दिन पहले मेरी दोस्त ने बोला कि वो और उसका भाई दीवाली मनाने अपनी बहन के पास रानीखेत जा रहे हैं। उसने मुझे भी साथ चलने के लिये बोला जिसे मैंने तुरंत स्वीकार कर लिया।
अगली सुबह दीवाली वाले दिन हम 11 बजे रानीखेत के लिये निकल गये। रास्ते में हमें कई जगह ट्रेफिक जैम का सामना करना पड़ा जिस कारण देरी भी हो रही थी। हमें भवाली पहुंचने में ही काफी समय लग गया पर भवाली से आगे फिर इतना बुरा हाल नहीं था। हमने तय किया कि गरमपानी में रुक कर रायता-पकौड़ी खायेंगे। गरमपानी अपने स्पेशल तरह के तीखे रायते और पकौड़ी के लिये प्रसिद्ध है। मेरी दोस्त का भाई रायते से ऐसा बेहाल हुआ कि काफी देर तक बेचारा आंख और नाक पोछते हुए ही गाड़ी चलाता रहा। कुछ समय वहाँ रुकने के बाद हम आगे निकल गये और रानीखेत जाने के लिये खैरना पुल को पार किया। रानीखेत वाला रास्ता मेरे लिये नया था। यह रास्ता मुझे अल्मोड़ा वाले रास्ते से ज्यादा अच्छा लगा। यह रास्ता भी नदी के साथ-साथ ही चल रहा था। इसके किनारे के खेत और गांवों को देखना बहुत अच्छा लग रहा था। आजकल खेतों में सरसों और धान लगे थे जो खेतों को बहुत आकर्षक बना रही थी। हमने कुछ देर गाड़ी रोकी और इस घाटी का नजारा लिया। मौसम सुहावना था इसलिये गुनगुनी धूप में बैठना अच्छा भी लग रहा था। कुछ देर धूप का मजा लेने के बाद हम आगे बढ़ गये। रास्ते में हमें कई छोटे-छोटे गाँव दिखायी दिये। सड़कों के किनारे बनी छोटी-बड़ी बजारें भी दिखायी दे रही थी जिनमें जरूरत का सारा सामान मिल जाता है।
जैसे-जैसे हम रानीखेत के नजदीक पहुंचते गये जमीन की टोपोग्राफी आकर्षित करने लगी। जिसे लाल रंग की मिट्टी और ज्यादा आकर्षक बना रही थी। रानीखेत की समुद्रतल से ऊँचाई 1,869 मीटर है। मान्यता है कि यहां के राजा सुखहरदेव की पत्नी रानी पदमिनी को यह जगह बेहद पसंद थी इसलिये इस जगह का नाम भी रानीखेत पड़ गया। सन् 1869 में ब्रिटिशर्स ने यहाँ कुमाऊँ रेजीमेंट का हैडक्वार्टर बनाया। रानीखेत कैन्टोलमेंट क्षेत्र है इसलिये यह जगह आज भी बेहद व्यवस्थित है। जब हम रानीखेत पहुंचे तो हमने फैसला किया कि हम ताड़ीखेत होते हुए बिनसर महादेव के मंदिर जायेंगे और गाड़ी को ताड़ीखेत वाले रास्ते पर मोड़ लिया।
ताड़ीखेत बहुत अच्छी जगह है। यहाँ का रास्ता भी घने जंगलों के बीच से होता हुआ जाता है। यहाँ से हिमालय का भी शानदार नजारा दिखता है। करीब एक-डेढ़ घंटे में हम बिन्सर महादेव के मंदिर पहुंच गये। यह मंदिर काफी भव्य है। मान्यता है कि यहाँ शिव ध्यान करने के लिये आये थे। शिव के अलावा यहाँ माँ सरस्वती और ब्रह्या की मूर्तियां भी हैं। अपने वास्तु के लिये प्रसिद्ध इस मंदिर का निर्माण 9वीं सदी में राजा कल्याण सिंह ने मात्र एक दिन में ही किया था। मान्यता है कि बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन महिलायें हाथ में दिया जला कर बच्चे की कामना करती है। यह मंदिर चारों ओर से घने जंगल से घिरा हुआ है और इसकी समुद्रतल से ऊँचाई 8,136 फीट है। यहां ठंडी भी बहुत ज्यादा थी। यह मंदिर काफी साफ-सुथरा था और यहाँ एक संस्कृत विद्यालय भी चलता है। जब हम मंदिर से बाहर निकले तो आंगन में लकडि़यों की आग जल रही थी। ठंडी होने के कारण हम आग के पास चले गये। कुछ देर रुकने के बाद हम यहाँ से वापस लौट गये।
जब हम वापस रानीखेत पहुंचे तो शहर में प्रवेश करने से पहले चुंगी देनी पड़ी जिसके बाद ही हमें अंदर प्रवेश करने दिया गया। रानीखेत में आज भी पुराने समय के कोठियां, बंग्ले और मैदान दिख जाते हैं। आर्मी एरिया होने के कारण जगह काफी साफ है और किसी भी तरह का अवैधानिक निर्माण यहाँ नहीं हुआ है। यही कारण है कि इसकी खूबसूरती आज भी बनी हुई है। जब हम रानीखेत बाजार पहुंचे तो बाजार में दीवाली के कारण बहुत चहल-पहल थी और लगभग हर तरह का सामान बिक रहा था बस जेब में पैसा होना चाहिये...
जारी है...
Very informative and very nice ..as usual
ReplyDeleteआज तो आपने यादों में पहुंचा दिया.मेरी पूरी स्कूली पढाई रानीखेत की ही है.गरम पानी का पकोड़ी,गुटका रईता, खेरना का पुल. उफ़ ...पहले इन यादों से निकलूँ तो कुछ लिखूं.
ReplyDeleteबहुत आभार आपका.
यादो को संजोकर रखने का सबसे अच्छा तरीका है यह..आपने काफी अछे तरीके से अपने सफर का साथी हम सभी को बना लिया..लिखते रहिये..शुभकामनाओ के साथ..
ReplyDeleteसुंदर संस्मरण है। फ़ोटो तो हैं ही।
ReplyDeleteबस 5 फ़ोटो !
ReplyDelete:)
अपने साथ रानीखेत की यात्रा करवाने का हार्दिक धन्यवाद.
ReplyDeleteVery good write-up with appropriate images.
ReplyDelete---Pankaj Sharma
बहुत सुन्दर. धान के खेत तो गज़ब के हैं. मैं अक्सर सोचता हूँ पहाड़ पर एक खास अल्टिट्यूड तक सिर पर बोझा उठाने की प्रथा है. अधिक ऊँचाई पर बोझ पीठ पर आ जाता है......
ReplyDeleteAjay ji : you are correct Ajay ji...
ReplyDeletethnx to All Friends...
रानीखे में जाकर तो दिल खिल जाता है| धन्यवाद|
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट फ़ोटो थोडे से छोटे रह गये बस
ReplyDeleteexcellent! breath taking charm.
ReplyDeleteachcha laga ye sachitra vivran
ReplyDeleteशानदार विवरण... मैं भी तीन साल पहले रानीखेत गया था.. लेकिन वहां केवल दो घंटे ही रुक पाया... यहां के प्राकृतिक सौंदर्य का जवाब नहीं..
ReplyDeleteहैपी ब्लॉगिंग
मैं भी साथ-साथ रानीखेत की सैर कर रहा हूं. बढिया चल रहा है. मुबारक़बाद !
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