Wednesday, January 5, 2011

मेरी पिथौरागढ़ यात्रा - 1

मेरा पिथौरागढ़ जाने का इरादा काफी पहले से बना था पर हमेशा कुछ न कुछ अड़चन आ जाती और मेरा जाना अटक जाता था। वैसे ऐसा मेरे साथ अकसर ही होता है कि जब अच्छे से प्लान बनाओ तो चैपट हो जाता है और फिर अचानक ही ऐसा कुछ हो जाता है कि जाना तय हो जाता है। ऐसा ही कुछ इस बार भी हुआ। नैनीताल से मुझे अकेले जाना था और बांकि दोस्त मुझे पिथौरागढ़ पर ही मिलने वाले थे।

हमेशा की तरह मैंने बस से जाना तय किया इसलिये सुबह कड़कड़ाती ठंडी में 6.30 बजे बैग लेकर स्टेशन पहुंच गयी। जब मैं स्टेशन पहुंची तब तक बस खचाखच भर गयी थी। एक पल तो ऐसा लगा कि जैसे इस बार भी जाना संभव नहीं हो पायेगा पर फिर मैंने अपने लिये बोनट पर बैठने की जगह बना ली। यह जगह अच्छी तो नहीं थी पर बांकी के लोग जिस हाल में थे उनके मुकाबले कहीं बेहतर थी। यहां पर बैठने का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि सामने का नजारा साफ-साफ दिखायी दे रहा था। इस बार की बारिश के बाद यह मेरी पहली यात्रा थी इसलिये मुझे सड़कों की हालत साफ नज़र आ रही थी जो पूरी तरह तबाह हो गयी थी। नैनीताल-भवाली सड़क भी कई जगहों पर टूटी हुई थी। वो तो आर्मी ने अपने पुल बना रखे हैं इसलिये काम चल रहा था। एक बात जो मुझे बेहद अखर रही थी वो ये कि सरकारी बस के खचाखच भरे होने के बावजूद भी बस में बिल्कुल सुनसानी थी जिसकी मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी।

खैर भवाली पहुंचने पर बस कुछ देर रूकी। कुछ यात्री और चढ़ गये जो रोज के ही थे और आसपास के गांवों में जाने वाले थे इसलिये ड्राइवर ने उन्हें बस में चढ़ा लिया। उनके चढ़ने से पहले से ही खड़े यात्रियों के लिये मुसीबतें और बढ़ गयी पर मैं काफी अच्छी जगह में थी। भवाली अब हमें अल्मोड़ा जाना था और फिर वहां से पिथौरागढ़। कुछ आगे आने पर कोसी नदी ने हमारा साथ देना शुरू कर दिया। इस समय कोसी इतनी शांत दिख रही थी कि कोई यकीन भी नहीं कर सकता था कि यही वो नदी है जिसने बरसात में इतना विकराल रूप रखा कि इतनी ऊंचाई तलक आकर लोगों के घरों और इतनी बड़ी सड़क का वजूद तक मिटा दिया। इस सड़क में सबसे ज्यादा तबाही हुई थी। सड़क के आसपास बने हुए कई मकान और दुकानों का तो अभी तक भी कुछ पता नहीं चला और बहुत से मकानों की छतें टेड़ी हो गयी। बहुत से मकान और दुकानें तो अब मात्र ढांचे की तरह खड़े हैं। सड़कों की हालत भी इतनी ही बुरी थी। यह पता नहीं चल पा रहा था कि गाड़ी सड़क पर से जा रही है या मिट्टी के ढेर के ऊपर से। कहीं सड़कें नदी ने काट दी तो कहीं सड़कों में ऊपर से पहाड़ कट कर आ गये। मैंने अपने मोबाइल से कुछ तस्वीरें लेने की कोशिश की पर चलती गाड़ी से तस्वीरें इतनी अच्छी नहीं आईं।




9ः18 बजे हम अल्मोड़ा पहुंचे। यहां गाड़ी कुछ देर रुकी। कुछ यात्री अल्मोड़ा में उतरे इसलिये मुझे एक सीट मिल गयी। जितनी सवारियां उतरी उससे ज्यादा बस में चढ़ गयी इसलिये बस की हालत में अभी भी कोई फर्क नहीं आया। जब ड्राइवर ने बस को स्टार्ट किया तो बस अटक गयी। उसने बोला - बस में धक्का लगाना पड़ेगा। यह अनुभव मेरे लिये नया था। खैर मैंने तो धक्का नहीं लगाया पर कुछ उत्साही लोग धक्का लगाने उतर गये। बस थोड़ा आगे-पीछे होती और फिर रुक जाती। ड्राइवर ने आगे झांक कर देखा तो कुछ अति उत्साही बस को आगे से पीछे की ओर धक्का लगा रहे थे। जब उन्होंने पीछे से जाकर धक्का लगाया तो बस ने स्टार्ट हो गयी। अल्मोड़ा से मौसम थोड़ा गर्म हो गया था पर मेरी सीट से मुझे कुछ दिखायी नहीं दे रहा था और मेरी बगल में जो सज्जन बैठे हुए थे वो वैसे तो अच्छे थे पर बेहद वाचाल थे और उनके बोलने पर उनके मुंह से गुटखे का जो भभका आ रहा था उसने मुझे परेशान कर दिया था। मन हुआ कि वापस बोनट में ही जाकर बैठ जाऊं पर वो जगह घिर चुकी थी। खैर बाड़ेछीना, धौलादेवी जैसे गांवों से होते हुए जब हम पनुवानौला पहुंचे तो मुझे फिर से आगे वाली सीट मिल गयी। जो मेरे लिये हर मायने में वरदान ही थी। यहां से नजारा भी दिख रहा था और गुटखे के भभखे से भी निजात मिल गयी। रास्ते में कई छोटे-छोटे गांव पड़ रहे थे और सड़क के किनारे दो-चार पहाड़ीनुमा दुकानें भी मिल जाती।

इसके बाद हम दन्या पहुंचे। मैंने दन्या के आलू के पराठों की काफी चर्चा सुनी थी इसलिये सोच लिया था कि  यहां आलू के पराठे ही खाउंगी पर आलू के पराठे खाने पर मुझे ऐसा कुछ खास नहीं लगा जो स्पेशल हो। ऐसे पराठे तो सब जगह ही मिलते हैं खैर जो भी हो पर इस रैस्टोरेंट के सामने एक गोलू देवता का मंदिर था। मेरा मन था उसमें जाने का पर समय न मिल पाने के कारण मैं जा नहीं पाई। यहां गाड़ी करीब आधा घंटा रुकी और फिर एक धक्का लगाने के बाद आगे बढ़ गयी।

12 : 53 मिनट पर बस ध्याड़ी पहुंची। ध्याड़ी वो जगह है जहां बरसात ने सबसे विकराल रूप दिखया था और ये पूरा गांव बुरी तरह बर्बाद हुआ था। यहां की बुरी तरह टूटी सड़कें अभी भी इस बात की गवाही दे रही थी। कई जगहों में तो बस लगभग आधी नीचे की ओर ही झुक जा रही थी। यहां से आगे निकल जाने पर एक जगह बस थोड़ी देर के लिये रुकी और जब चलने लगी तो एक सवारी कम थी। जब कन्डक्टर ने उसके साथ वाले से पूछा तो उसने जवाब दिया - उसका सिक्किम ब्रांड टूट गया और वो उसे लेने के लिये उतर गया। मुझे लगा कि सिक्कम ब्रांड शायद यहां की कुछ खास चीज होगी इसलिये मैंने भी तय कर लिया था कि पिथौरागढ़ में मिलेगी तो मैं खरीदूंगी पर पिथौरागढ़ पहुंचने पर विशेषज्ञों ने मुझे सिक्किम ब्रांड की मतलब बताया तो मुझे अपने फैसले के ऊपर बहुत हंसी आई और मैंने अपना इरादा बदल लिया।

खैर इस जगह ड्राइवर-कन्डक्टर में कुछ कहासुनी हो गयी। कन्डक्टर के एक पहचान वाले को पिथौरागढ़ से आगे कहीं जाना था इसलिये उसने ड्राइवर को बोला - गाड़ी तेज चलाना और बीच में कहीं किसी भी सवारी के लिये गाड़ी नहीं रोकना। इस बात पर ड्राइवर ने कहा - मैं इतनी जल्दी पहुंचा देता हूं फिर भी ऐसे बोलते हो और यह बस यहां के लोगों के लिये ही है इसलिये मैं हर सवारी को उठाउंगा। जिसे जो करना है करे। इसके बाद ड्राइवर ने बस की स्पीड भी कम कर दी। हम करीब 2 बजे घाट पहुंचे जहां से पिथौरागढ़ की सीमा शुरू हो जाती है। रास्ते से हिमालय का अच्छा नजारा दिख रहा था। यहां नदी पर कुछ परियोजनायें भी चल रही थी।



कुछ आगे जाने पर हम एक जगह पहुंचे गुरुना। यहां सड़क के किनारे पाषाण देवी या गुरना देवी का मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि पहले इस जगह पर बहुत दुर्घटनायें होती थी। बाद में किसी के सपने में आया कि देवी का मंदिर बनाओ। उसके बाद यहां पर देवी की स्थापना की गयी। तब हमेशा हर गाड़ी इस जगह पर थोड़ी सी देर के लिये रुकती जरूर है।


इसके बाद का रास्ता काफी अच्छा था पर ड्राइवर की स्पीड कम करने से मुझे बहुत नुकसान हो रहा था। मेरे दोस्त के लगातार फोन आ रहे थे कि - कितनी देर लगेगी ? अभी कहां है ? मैंने ड्राइवर से पूछा कि - हम किस जगह हैं तो उसने कहा - घाट से थोड़ा ऊपर। फिर बोला - वैसे मैं अभी तक पिथौरागढ़ पहुंचा देता पर कन्डक्टर ने जिस तरह मुझसे बात की मुझे गुस्सा आ गया इसलिये मैंने जानबूझ कर गाड़ी की स्पीड कम कर दी।

मैं लगभग 3.30 बजे पिथौरागढ़ पहुंची। स्टेशन मैं मेरे दोस्त मुझे लेने के लिये आये हुए थे उनके साथ मैं जहां रुकना था उस जगह चली गयी।

जारी...

18 comments:

  1. सुंदर चित्र तथा यात्रा वृत्तान्त.

    ReplyDelete
  2. अजी सि्क्किम ब्रांड लगता है जगाधरी न.1 जैसा ही आयटम है।

    बढिया यात्रा वृत्तांत चल रहा है। मई-जून में मैं प्लान कर रहा हूँ,इधर की यात्रा का।

    आपके अनुभवों का लाभ मिलेगा।

    आभार

    ReplyDelete
  3. बस यात्रा में केबिन काफी मुफीद जगह है, एक साथ दोनों ओर के दृश्यों के अवलोकन के लिए. सिर्फ सीट अपेक्षया उचित होनी चाहिए.

    बस को धक्का देने का प्रसंग खूब रहा.

    उत्तराखंड में 'सिक्कम ब्रांड' ! इस अद्भुत राष्ट्रीय एकता के प्रतीक को तो जरुर लेना चाहिए था, चाहे मित्रों के लिए ही सही :-)

    ड्राईवर - कंडक्टर की मियां -बीवी टाइप नोंक-झोंक के साथ आपकी यात्रा का पहला पड़ाव और वृत्तान्त रोचक रहा. अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी.

    ReplyDelete
  4. आपका सचित्र यात्रा संस्मरण बहुत बढ़िया रहा!
    --
    9 जनवरी को खटीमंा में ब्लॉगरमीट है! इसमें मेरी दो पुस्तकों का लोकार्पण भी होना है!
    आप अपने आने की स्वीकृति भेजने की कृपा करें!

    ReplyDelete
  5. बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ऐसा लगा कि मैं भी इस यात्रा का हिस्सा थी ,,

    ReplyDelete
  6. बस के विंड स्क्रीन से पिथऔरा गढ़ की सड़कें रोह्ताँग जैसी दिखीं. मज़ेदार यात्रा. मैं भी आ रहा हूँ इस साल ....अपना लाहुल ब्राँड ले कर.

    ReplyDelete
  7. @ Abhishek : mai dosto ka itta bi khyal ni rakhti hu Abhishek...

    ReplyDelete
  8. @ विनीता यशस्वी

    दोस्त हैं कम - से कम इतना तो ख्याल है न, काफी है.

    ReplyDelete
  9. बस में बोनट पर बैठकर भी आपने इतने फोटो ले लिए । वाह जी !

    ReplyDelete
  10. shandaar vratant.. ek to pahad, oopar se aapka ye presentation...lagta hai is baar khud ko ek baar phir uttarakhand jane se nahi rok payenge.. agli kadi ki prateeksha hai

    Happy Blogging

    ReplyDelete
  11. Ashish : Rokne ki liye kisne bole hai...bag pakro aur sarkari bus mai bahitho aur nikal paro...

    ReplyDelete
  12. Sikkim is a fine rum friends . It is a product of simple sugarcane and nothing dubious about it. Nice travel account, waiting for more.

    ReplyDelete
  13. bahut sunder

    mai bhi pithoragrh 10 sal rahi hu
    aaj mujhe fir yaad aa gya
    bahut hi achhi jagah hai
    khaskar vha ke mandir

    mai hanuman mandir colony kumod k pad rahti thi

    aapka aabha

    kabhi yha bhi aaye
    www.deepti09sharma.blogspot.com

    ReplyDelete
  14. विनीता जी, आपकी पिथौरागढ की यात्रा के बहाने हमें भी बहुत कुछ जानने को मिला। आभार।

    ---------
    कादेरी भूत और उसका परिवार।
    मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।

    ReplyDelete
  15. अच्छा लगा पिथौरागढ़ जाना.

    ReplyDelete