Monday, August 3, 2009
ये हैं हमारे असली हीरो
कारगिल में शहीद हुए 22 साल के कैप्टन विजयंत थापर का यह पत्र मुझे एक मित्र की मेल से मिला है।
इसे ब्लॉग पर लगाने के पीछे मेरी सिर्फ इतनी ही मंशा है कि लोग यह जान पायें कि हमारी अच्छी जिन्दगी और अच्छे भविष्य के लिये कैसे हमारे फौजी अपना सब कुछ छोड़ कर अपने सीनों में गोलियां खा रहे हैं।
ऐसे वीर सिपाहियों को सलाम
Dearest Papa ,Mama , Birdie and Granny,
1. By the time u get this letter, i will be observing you all from the sky enjoying the hospitality of Apsaras.
2.I have no regrets; in fact even if i become a human again i'll join the army and fight for the nation.
3.If you can, please come and see where the Indian army fought for your tomorrow.
4.As far as the unit is concerned the new chaps should be told about this sacrifice.I hope my photos will be kept in the 'A' coy mandir with Karni mata.
5.Whatever organ could be taken should be done.
6. Contribute some money to orphanage and keep on giving 50/- rupees to Ruksana per month and meet yogi baba.
7.Best of luck to Birdie, never forget this sacrifice of these men .Papa you should feel proud. Mama so should you, meet ........(i loved her). Mama ji forgive me for everything wrong i did.
ok than its time for me to join my class of the dirty
dozen my asst. party has 12 chaps
best of luck to you all
live life king size
yours
आंखें नम हो गईं आपकी यह पोस्ट पढ़कर.. कैप्टन विजयंत थापर जैसे ज़िंदादिल बहादुर अमर हैं.. देश के हर सेनिक को हमारा सेल्यूट. उनका यह दुर्लभ पत्र हमारे साथ बांटने के लिए आपका आभार.. हैपी ब्लॉगिंग.
ReplyDeleteवाकई लाजवाब पोस्ट, आशीष जी ने ठीक कहा यह हैं हमारे असली होरो
ReplyDeleteबहुत मार्मिक पोस्ट हैआइसे वीरों को मेरा नमन है दिल चीर देती हैं ऐसी शहादतें ये पत्र मुझे भी कुछ दिन पहले मिला था और उस दिन आँसू निकल आये थे आभार इस पोस्ट के लिये
ReplyDeleteकौन ऐसा होगा जिसकी आँखे नाम ना हो गयी हो ये पत्र पढ़कर.वास्तव में एक बार इस राह पे मरना सौ जन्मों के सामान है.लेकिन अफ़सोस यही होता है कि हमारे ऐसे जवानो के बलिदान से कायम यह आजादी बूटाओं के काम आता है जो करोडो की रिश्वत खाने के बाद भी बेशर्मी से पद को कलंकित करते रहते हैं....खैर....सलाम अपने बहादुर जवानों को.जयराम दास.
ReplyDeleteकौन ऐसा होगा जिसकी आँखे नाम ना हो गयी हो ये पत्र पढ़कर.वास्तव में एक बार इस राह पे मरना सौ जन्मों के सामान है.लेकिन अफ़सोस यही होता है कि हमारे ऐसे जवानो के बलिदान से कायम यह आजादी बूटाओं के काम आता है जो करोडो की रिश्वत खाने के बाद भी बेशर्मी से पद को कलंकित करते रहते हैं....खैर....सलाम अपने बहादुर जवानों को.जयराम दास.
ReplyDeleteIncidentally, i also happened to be there in that summer of 99.
ReplyDeleteIt is because of the sacrifice of these men that we celebrate our festivals, send children to school, watch T.V. in our cosy drawing rooms and argue endlessly on world politics.
I thank u for taking some time out to remember the sacrifice of this gallant soldier.
हीरो हैं, हीरे हैं।
ReplyDeleteनमन इन्हें,शत-शत नमन!
पूजनीय हैं ये।
धन्यवाद आपको इस महावीर का पत्र साझा करने हेतु।
काश! सभी अपनी मातृभूमि से इतना प्यार करें!
Vakai yahi hain hamare asli Hero. In 'Shahidon' ko naman.
ReplyDeleteInhe SALAAM.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }</a
कैप्टन थापर को सेल्युट और आपको इस प्रयास के लिये हार्दिक धन्यवाद.
ReplyDeleteरामराम.
मार्मिक पोस्ट..कैप्टन थापर को शत-शत नमन!
ReplyDeleteयह इ-मेल मेरे पास भी है... कारगिल के बाद दरअसल यह अंतर्देशीय पत्र युवाओं को उत्साहित करने और सेना में बहुतायत मात्रा में रिक्त स्थान को भरने में मददगार साबित हुआ... मैं आज भी यह ख़त पढता हूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते है... इस काम को करने के लिए और उस हालत में भी ऐसा ज़ज्बे के लिए कलेजा चाहिए... मेरे पिता जी भी दानापुर रजिमेंट से रोज़ रात प्रेस के लिए शहीदों के लिस्ट में दिल थम कर देखते थे कहीं मेरे भाई का नाम तो नहीं ....
ReplyDeleteVakai mai bahut hi marmik patra hai.isko par ke to shaheedo ki liye izat ka zazaba bahut bahut bad jata hai
ReplyDeletecpt. Thaper ko naman
क्या कैप्टन को ये पता चल गया था कि वो मृत्यु के इतने करीब हैं !
ReplyDeleteजो भी हो ऍसे वीर सैनिकों की बदौलत ही हमारी धरा स्वतंत्र है।
धरती माता को ऐसे ही सपूतों की दरकार है.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteYes Manish he knew it because his was going to be the first assault on enemy sitting pretty over a high summit.In the given situation, only the leader of third attack party could have hoped to survive as enemy would have been exhausted by then.
ReplyDeleteThis is not some romantic notion of heroism , but reality that our army won a nearly impossible victory when whole world watched in stunning silence.It is the sacrifice of these men which raised our stature in world arena.
August 3, 2009 11:44 PM
nice post
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
हार््दिक श््रद््धांजलि।
ReplyDeleteदेश का हाल बेहाल देख कर बहुत दुःख होता है ...आखिर क्यों खेले ये लोग अपनी जान पर...क्या जरुरत थी...!!
ReplyDeleteएक मेल से मुझे भी ये ख़त पढने को मिले थे..ऐसे कितनी ही कुरबानियों के कर्जदार हम है...देश के प्रधानमंत्री जब पाकिस्तान के साथ साझा बयाँ पढ़ते है ...तो बस एक ख्याल आता है .कुछ तो .कभी तो कोई तो स्टेंड हो ...शान्ति से कोई ऐतराज नहीं.पर जब कम उम्र का कोई खून जाया होता है कुछ सरफिरो के कारण ..तब खून खौलता है ...
ReplyDeleteManish ji shayad apko apke sawal ka jawab Munish ke comment se mil gaya hoga...
ReplyDeletemunish ji mai apse kahna chahungi ki aap apne un anubhawo ko apne blog pe likhe taki hum logo ko us hakikat ke baare mai kuchh aur pata chal sake...
ऑंखें नम हो आईं
ReplyDeleteकुछ निशॉं से छोड़ के जाने कहॉं वो बह गये
लहरों से लड़ते रहे वो जो पीछे रह गये।
हीरो को सलाम!
ReplyDeleteI will ! Let the right moment come.
ReplyDeleteपत्र पढ़ कर उस वीर के प्रति सर श्रद्धा से झुक गया और आँखें नम हो गयीं.
ReplyDeletevinita ji,
ReplyDeleteye asli heere hi nahin hain, ye to anmol heere hain.
inhe mera bhi salaam.
ramram saab!!
jaihind saab!