आज फिर अपनी डायरी के पन्नों में दर्ज एक कविता मिली जो वियतनामी कवि वो कू ने लिखी है। वो कू को वियतनाम में युद्ध का विरोध करने के कारण लम्बे समय तक कारवास में रहना पड़ा जहां इन्होंने अनगिनत यातनायें झेली। वो कू के शहर क्वांग त्री सिटी को कई बार युद्ध झेलना पड़ा।
अपने इसी शहर के लिये वो कू ने यह कविता लिखी।
एक बहुत दूर की दोपहर
जब दरिया अपने किनारे लांघ गया था,
उस स्मृति के साथ पहुंचा
मैं अपने शहर, जो तुम्हारा और मेरा शहर था
चमकता है मेरे मन में वही स्विर्णम दिन
तुम्हारा गोल सफेद टोप, उस संकरी गली में
दोपहर की रोशनी में चमक रहा था
तुम्हारी जामुनी फ्राक, हवा में उड़ते लम्बे बाल
और चर्च की लगातार आवाजें लगाती, हज़ारों बार
बजती घंटिया याद आयी मुझे।
वह शहर जो पूरा बरबाद हो गया था युद्ध में
उस शहर की हर गली एक दर्द की तरह
उभरती है मेरे ज़हन में।
मेरा कोई हिस्सा हर गिरती हुई पंखरी के साथ
गिरता है धरती पर
उन चमकदार फूलों का आर पार
दर्द की तरह लहराता हुआ गिरता है धरती पर।
लेकिन मेरे सपनों में वो शहर अछूता है,
बरबादी के पहले सा अछूता
जब गलियां जिन्दा थी, बलखाती लहरों की तरह
जब तुम्हारी सिम्त खिलने से पहिले गुलाब जैसी थी
जब तुम्हारी आंखें तारों की तरह सुलगती थी।
कैसी तेज याद आती है उन बहते पानियों की।
सर्दी की कमजोर रोशनी में कैसी दीखती थी तुम
जब लम्बी घास दरिया के दूसरे किनारे
पर झुका होता था।
हमारे पुराने शहर से अब भी भरा है हमारा होना
मेरे बाल पक गये हैं उस नदी किनारे घास की तरह
या तुम्हारे इतने पुराने प्यार की तरह।
सुन्दर कविता है!
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
उस शहर की हर गली एक दर्द की तरह
ReplyDeleteउभरती है मेरे ज़हन में।
अच्छी कविता चुनी है आपने.
बहुत बढ़िया कविता लगी यह शुक्रिया आपको इसको पढ़वाने का
ReplyDeleteवो कू की कविता पढ़वाने के लिए शुक्रिया ।
ReplyDeleteसुंदर कविता के लिए धन्यवाद ...
ReplyDeleteअनुवादक तो खैर अनुवादक ही होते है /तुम्हारी जमुनी फ्राक,हवा में उड़ते बाल के पश्चात् यह भी हो सकता था ""चर्च की आवाजें और बजती घंटिया हजारों बार आई मुझे याद ""उन चमक दार फूलों ""का" आर पार की जगह "के "/ और यदि यह अनुवाद आप के द्वारा ही किया गया है तो फिर इसमें कोई त्रुटी नहीं है
ReplyDeleteहमारे पुराने शहर से अब भी भरा है हमारा होना
ReplyDeleteमेरे बाल पक गये हैं उस नदी किनारे घास की तरह
या तुम्हारे इतने पुराने प्यार की तरह।
kitna marm bhara is kavita mein,shukran,bahut sunder hai.
Adrniya Brijmohan Shrivastw ji kavita ki tarif ke liye shukriya...
ReplyDeleteper ye anuwad maine nahi kiya hai...kafi samay pahle maine ye kavita kahi pari thi aur apni diary mai likh li...jisse maine kavita likhi usmai bhi anuwadak ka naam nahi tha...isliye anuwadak ka naam na de pane ke liye mai mafi chahti hu...
क्रिया इस अमूल्य कविता को बांटने के लिए आखिरी लाइन खासा असर रखती है
ReplyDeletegood petry
ReplyDeletethanks for availing
बहुत ही बेहतरीन कविता पढवाई आपने. असल मे अक्सर हम यही गल्ती कर जाते हैं कि कोई रचना पढते समय सुंदर लगती है तो उसे डायरी के पन्नों पर नोट कर लेते हैं और लेखक का नाम लिख लेते हैं. पर मुझसे भी यही हुआ है कि मैने भी आज तक एक भी अनुवादक का नाम नही लिखा.आगे से हम भी इस बात पर ध्यान देंगे.
ReplyDeleteबहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
Bahut achhi kavti parwai apne.
ReplyDeletewaise to puri kavita hi achhi hai per antim line bahut hi achhi hai
ReplyDeleteकविता अच्छी लगी। आभार।
ReplyDeleteआभार आपका। गहरे अर्थों वाली भावपूर्ण कविता।
ReplyDeleteअच्छी लगी यह कविता ...धन्यवाद।
ReplyDelete'जब गलियां ज़िन्दा थी बलखाती लहरों की तरह'
ReplyDeleteइस वक़्त भी न जाने कितने वियतनामों की गलियां बलखाती लहरों से भटकती लहरों में तब्दील हो रही हैं।
मेरा आपसे एक ही अनुरोध है कि कृपया साइंस ब्लॉग पर आज २६-३-०९ को मेरे द्वारा किया गया निवेदन पढने की कृपा करें
ReplyDeleteवो कू जैसे महान लेखक की कविता पढ़वाने के लिए आपका आभार..
ReplyDeletesudar kavita apne blog me padwane ke liye aapka shukria
ReplyDeleteएक स्तरीय कविता उपलब्ध कराने हेतु आभार.
ReplyDeleteथोडी लम्बी, किन्तु सच्चाई के करीब कविता।
ReplyDelete-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
padhwane ka shukriya
ReplyDelete