नैनीताल का वर्णन स्कंद पुराण के महेश्वर खंड में त्रिऋषि यानी तीन ऋषि - अत्रि, पुलस्त्य और पुलह के सरोवर के रूप में आता है। मान्यता है कि ये संत यात्रा करते-करते जब गागर पहाड़ी श्रृंखला की उस चोटी पर पहुंचे जिसे अब चाइना पीक के नाम से जाना जाता है, तो उन्हें प्यास लग गयी। उस स्थान में पानी नहीं था और तीनों ऋषि प्यास से बेहाल थे। तब उन्होंने मानसरोवर का ध्यान किया और जमीन में बड़ा से छेद कर दिया। वह छेद मानस जल से भर गया। इस प्रकार उनके द्वारा सृजित इस झील का नाम त्रिऋषि सरोवर पड़ा। यह भी मान्यता है कि इस सरोवर में स्नान करने से वही फल प्राप्त होता है जो मानसरोवर में स्नान करने से मिलता है। बाद में इस झील का नाम नैनी झील उस देवी के नाम में पड़ा जिसका मंदिर इस झील के किनारे स्थित है। 1880 के भूस्खलन में यह मंदिर नष्ट हो गया। जिसे फिर दोबारा उस स्थान पर बनाया गया जहां यह इस समय स्थित है।
इस स्थान के बारे में एक अन्य मान्यता के अनुसार नैनीताल को 64 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ भी माना जाता है क्योंकि जब भगवान शिव सती के मृत शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे उस समय सती की बांयी आंख (नैयन) इस स्थान पर गिरी थी। इसलिये कहा जाता है कि इस झील का आकार आंख के जैसा है।
इस झील के बारे में सर्वप्रथम 1841 के अंत में कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले अखबार `इंग्लिशमैन´ में छपा था। जिसमें यह लिखा गया था कि - `अल्मोड़ा क्षेत्र में झील की खोज´ इसके बाद बैरन ने `पिलिग्रम´ नाम से `आगरा अखबार´ में इस झील का विवरण दिया गया था। बैरन ने आगे लिखा था कि - वह नैनीताल जाते समय खैरना से होकर गया और लौटा रामनगर के रास्ते से। उसने यह भी लिखा था कि - पहले स्थानीय लोग उसे झील दिखाने से लगातार इंकार करते रहे क्योंकि इस झील का उनके लिये बेहद धार्मिक महत्व था और उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि यहां कोई झील नहीं है। पर बाद में बड़ी मुश्किल से स्थानीय लोग मान गये।
वर्ष 1842 में बैरन यहां फिर वापस आया। इस समय तक करीब आधा दर्जन अर्जियां भवन निर्माण के लिये अधिकारी के पास पहुंची और उस समय के कमिश्नर लुशिंग्टन ने एक छोटा सा भवन बनाने की शुरूआत की। 1842 से पहले इस स्थान में एक झोपड़ी भी नहीं थी। सिर्फ नैयना देवी की पूजा के लिये वर्ष में एक बार आस-पास गांव के लोग यहां इकट्ठा होते थे और एक छोटे से मेले का आयोजन भी होता था। जिसे आज भी नंदादेवी मेला के रूप में मनाया जाता है।
मिस्टर लुशिंग्टन ने ही यहां बाजार, सार्वजनिक भवन और एक सेंट जोन्स गिरजाघर का निर्माण करवाया। मिस्टर बैरन ने इस झील में पहली बार नौका को डाला और झील में नौकायान की शुरूआत की।
नैनीताल और नैनी झील पर नई जानकारियां मिलीं.
ReplyDeleteaapne bahut rochak jankari di hai.
ReplyDeleteरोचक लगी यह जानकारी ..शुक्रिया
ReplyDeleteनैनी झील के बारे में बड़ी सुन्दर जानकारी. आभार. भारत में न जाने कितने शक्ति पीठ हैं. लगता हैं यह भी एक शोध का विषय बन सकता है.
ReplyDeleteक्या कहा? बायीं आँख गिरी थी नैनीताल में. फिर दायीं आँख कहाँ गिरी थी....शायद हिमाचल प्रदेश में नैना देवी मंदिर है जहाँ पर, जहाँ पिछले साल भगदड़ मचने से कई लोग मर गए थे.
ReplyDeleteमुझे भी उस अंग्रेज की "चेष्टाओं" की जानकारी तो पहले से थी, लेकिन पौराणिक जानकारी नहीं थी. जानकारी देने के लिए धन्यवाद.
झील में घूमे तो है पार इतिहास आज झाँककर देखा .
ReplyDeleteबिलकुल ही नयी जानकारी है यह मेरे लिए.....बहुत बहुत अच्छा लगा जानना...
ReplyDeleteरोचक जानकारी को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करने के लिए आभार.
Bahut achhi jankari.
ReplyDeleteachha laga yah sab jaanke
अच्छी जानकारी है ... शायद ही किसी को मालूम हो यह सब।
ReplyDeleteरोचक और दिलचस्प जानकारी दी आपने नैनीताल के बारे मे. जो तीन बार वहां आने के बाद भी नही पता चली थी.
ReplyDeleteबहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
इतनी नौराई भी मत लगवाओ। सच में बहुत याद आ रही है कुँमाऊ और नैनीताल की। आपका लेखन सभी यादें हरी कर देता है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
बहुत अच्छी जानकारी.. पिछले साल वह गए थे.. याद ताजा हो गयी.. आभार
ReplyDeleteजब तक भारत में रहे नैनीताल बहुत बार जाने का अवसर मिला जब से परदेस में बसे हैं कभी२ भारत आना होता चाहकर भी अपने प्रिय स्थलों पर नहीं जा पाते आज झील के बारे में इतनी अच्छी जानकारी आपके द्वारा पढ़ने को मिली बहुत अच्छा लगा ऐसा प्रतीत हुआ मानो हम झील के ही आसपास घूम रहे हों ...आभार जानकारी के लिए...
ReplyDeletevinita ji
ReplyDeletemanaali kullu velly me bhi esi kai gathaae sun paayaa tha
vashisth kund, hidimba mandir
manu mandir, bijli mahaadev ki yaad aa gayi aapkaa lekh padhkar
अच्छी जानकारी है पर साथ में झील का चित्र होता तो और मजा आता...
ReplyDeleteनैनीताल की इस जानकारी के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteनैनीताल के बारे में बहुत रोचक जानकारी देने का शुक्रिया...
ReplyDeleteनीरज
नैनीताल के बारे में ढेर सारी जानकारी प्रदान करने के लिए आभार।
ReplyDeletenainitaal ke baare ma badi hi rochak aur mohak jaankaari aapne di ,... bahot badhaaee aapko..
ReplyDeletearsh
तालों में नानिताल बाकि सब तलायिया...
ReplyDeleteएतिहासिक तथ्य ,१८४२, इंग्लिशमेन,बैरन ,आगरा अखवार तो ठीक वाकी ,पुराणों में बर्णित मान्यताओं से आप कहाँ तक सहमत हैं /
ReplyDeletevineeta ji nainital par aap kaafi kuch likh rahi hai... aap apne blog ke madhyam se poore nainital ko desh videsh me pracharit kar rahi haijiske liye aapko sadhuvaad...
ReplyDeleteachchi jaankaari lagi
Vinita ji,
ReplyDeletenainitaal ke bare mein kafi padha aur suna hai..vyaktigat taur par dekha bhi hai..aap ke blog par aur adhik jaankariyan mil rahi hain.dhnywaad.
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maluuum nahin aap ko mere blog par fonts theek se kyun dikhaayee nahin de rahe hain.
main Ashish ji se poochungi ,shayad wahi bata sakengey..anytha aap browser mein feed ke sign ko click karengee to plain page par rachna likhi milegi.
shesh sab kushal hai..dhnywaad aap mere blog tak aayin.
abhaaar sahit,
alpana
Shukriya achchhee jankari ke liye
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