नैनीताल का प्राणी उद्यान जिसका नाम भारत रत्न पं. गोविन्द बल्लभ पंत उच्च स्थलीय प्राणी उद्यान है। मैं वैसे तो इस प्राणी उद्यान में पहले भी जा चुकी हूं पर इस रविवार को मुझे यहां जितना मजा आया उतना पहले कभी नहीं आया था।
आजकल उद्यान में काफी भीड़-भाड़ थी जिस कारण जानवर बेचारे यहां-वहां छिपते फिर रहे थे। इस उद्यान की विशेषता है यहां का स्नो लेपर्ड। जिसे देखने के लिये काफी लोग इस उद्यान में आते हैं। मैंने पक्षी के पिंजड़ों से देखना शुरू किया। यहां कई प्रजातियों के पक्षी जैसे - फीजेंट, फाउल, पी-फाउल, ईगल, तोते, तथा कई अन्य प्रजाति के पक्षी हैं जिनमें कुछ यहीं मिलते हैं तो कुछ बाहर से लाये गये हैं और कुछ ऐसे पक्षी हैं जिन्हें संरक्षण के लिये यहां पर रखा गया है।
इन पिंजड़ों की देख-रेख करने वाले ने बताया कि जब सुबह का समय होता है तो बाहर के पक्षी इन पिंजड़ों के पास आ जाते हैं और अंदर के पक्षियों के साथ बातें करते हैं। जिसे सुनकर बड़ा रोमांच महसूस हुआ। इस उद्यान में कई तरह के पेड़-पौंधे भी हैं।
बाघ तो दूर बैठा धूप सेक रहा था और उसने किसी को लिफ्ट नहीं मारी। इसके बाद में आगे बड़ी तो गुलदार अपने पिंजड़े में आराम से बैठा धूप सेक रहा था पर जैसे ही उसने भीड़ को अपनी तरफ आते देखा बेचारा गुस्से में गुर्राता हुआ यहां-वहां चक्कर काटने लगा। उसको उसी हालत में छोड़ के मैं तो हिरन और कांखड़ों को देखने के लिये आगे बढ़ गयी। ये बहुत सीधे जानवर होते है। कभी-कभी ये पास आकर हाथ भी चाट लेते हैं पर यदि हल्ला-गुल्ला हो तो दूर ही रहते हैं।
आगे बढ़ने पर मैंने जंगली भालू को धूप सेकते देखा। भालू दादा इतना मस्त हो के धूप सेक रहा था कि मैं उसे देखती ही रही और खूब फोटो खींचे। उसका धूप सेकने का तरीका देख के ऐसा लग रहा था जैसे वो असली भालू न हो के कोई बहुत बड़ा टेडी बियर हो जिसे किसी चीज से कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे करीब 15-20 मिनट निहराने के बाद मैं अपने पसंदीदा स्नो लेपर्ड के देखने चली गई। जैसे ही मैं उसके पास पहुंची ही थी कि पीछे से भीड़ का एक रेला आया और उन्होंने इतना हल्ला मचाया कि वो वहां से भाग गया और पहाड़ी के पीछे जा छुपा। मुझे आज तक यह बात समझ में नहीं आयी कि जब लोग इस तरह के प्राणी उद्यानों में जाते हैं तो वहां जाकर ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं कि उन्हें देख के लगता है कि क्या असल में जंगली ये लोग तो नहीं हैं ? मेरे काफी देर तक इंतजार करने के बाद भी वो बाहर नहीं निकला। मैंने उसे उसकी तन्हाई के साथ छोड़ के आगे बढ़ना ही ठीक समझा।
वहां से मैं सराव के पास आयी। इसका नाम पदमा है। जब इसे यहां लाया गया था तो ये 3 महीने की थी। इसे बकरी का दूध पिलाते थे पर अब ये काफी बढ़ी हो गई है। सराव गधे के कान जैसे तथा बकरी की तरह दिखने वाला जानवर है। इसका बहुत ज्यादा शिकार किये जाने के कारण अब यह संरक्षित प्रजातियों में से एक है। वहां से आगे बड़ी तो बारहसिंघे अपनी मस्ती में घुमते हुए दिखे। बेचारा बार-बार पिंजड़े की जाली से टकरा जाता और उसके बड़े-बड़े सींघ उसमें फंस जाते। सांभर तो दूर से ही दर्शन देकर गायब हो गये।
वापस आते समय मैंने देखा कि कुछ लोग बाघ के पिंजड़े जिसे बिल्कुल बंद करके रखा गया था क्योंकि उन्हें अभी दर्शकों के लिये खोला नहीं है, के बाहर कान लगा के उनके गुर्राने की आवाज सुन रहे थे और बाहर से हल्ला मचा के उन्हें परेशान कर रहे थे। पर हद तो तब हुई जब वो दिवार लांघ के उनके पिंजड़े के पास ही जा पहुंचे। इस बार तो मैं स्वयं को रोक नहीं पाई और डांठते हुए मुझे कहना पड़ा - ये सब मैनईटर हैं अगर नैट तोड़ के बाहर निकल गये तो पता भी नहीं चलेगा तुममें से किसी का। इंसान का इस तरह का व्यवहार सच में बहुत अशोभनीय है।
बहरहाल मैं इन सब के साथ एक बहुत ही अच्छा दिन बिता के वापस आ गई।
इन सब की और मेरी तरफ से सभी को नव वर्ष की शुभकामनायें।
नया साल आए बन के उजाला
ReplyDeleteखुल जाए आपकी किस्मत का ताला|
चाँद तारे भी आप पर ही रौशनी डाले
हमेशा आप पे रहे मेहरबान उपरवाला ||
नूतन वर्ष मंगलमय हो |
बहुत अच्छा लगा जो आपने एक दिन जानवरों के साथ बिताया ! पहले ये सब पक्षी हमारे घरॊं के आसपास ही नित्य आया करते थे ! अब इनको देखने चिडियाघर जाना पड रहा है ! ये सब इन्सान की ही करतूत है ! बहुत अच्छा लगा कि आप प्रकृति और उसके जीवों से प्रेम करती हैं !
ReplyDeleteनये साल की आपको एवम आपके परिवार को घणी रामराम और सब तरह से मंगलमय हो यही शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट से आसानी से समझ में आ जाता है कि पिंजडों में रखने की जरुरत किन्हें है. नए साल पर पं. गोविन्द बल्लभ पंत प्राणी उद्यान की सैर कराने का धन्यवाद. नव वर्ष की शुभकामनाएं.
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ReplyDeleteविनीता जी, हैप्पी न्यू ईयर.
ReplyDeleteएक बार मैं भी नैनीताल गया था अकेला. मॉल रोड से घुमते हुए मुझे दिखा-" चिडियाघर जाने का रास्ता"
सोचा कि चलो चिडियाघर ही देख आयें. मैं ऊपर चढ़ने लगा. इक्का दुक्का लोग ही आ जा रहे थे. तभी सामने रास्ते में बैठे काफी सारे बंदरों को देखकर मैं वापस मुड गया. और चिडियाघर में उस दिन एक जानवर की कमी रह गई होगी.
आपने बहुत बढ़िया दिन बिताया और हमें भी बहुत सारे जानवरों से मिलवाया। पढ़ना अच्छा लगा।
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाएँ ।
घुघूती बासूती
Happy New Year Vineeta.
ReplyDeletegood article from you once again.
Happy New Year Vineeta.
ReplyDeletegood article with new infomation.
अहा, पूरा का पूरा चिडियाघर ही कंप्यूटर टेबल पर आ गया. आपको भी नव-वर्ष की ढेरों मंगलकामनाएं.
ReplyDeleteakele-akele sab dekh aaye...hame bhi to jana tha.......jao naa ham aapse baat nahin karte...!!!
ReplyDeleteएक बढ़िया दिन बिताने के लिए
ReplyDeleteआपको बधाई !
वन प्राणियों की दिलचस्प दुनिया को
जानना मुझे सदैव अच्छा लगता है !
मैं जब भी किसी नए शहर जाता हूँ तो
प्राणी उद्यान एवं संग्रहालय अवश्य जाता हूँ !
मुझे ऐसे लोगों पर अत्यन्त कोफ्त होती है जो अपनी अशोभनीय हरकतें ऐसी जगहों पर भी जारी रखते हैं ! कम से कम इतना तो ख्याल रखना चाहिए यह उनका घर है , यहाँ मेहमान आप हैं वो नहीं !
एक चीज मैं हमेशा देखता हूँ कि ज्यादातर लोग सिर्फ घूमने आते हैं ! वो इस अनोखी दुनिया को जानने और समझने में दिलचस्पी नहीं लेते ! हालांकि विभिन्न बाड़ों में रहने वाले वन्यप्राणी के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी लिखी होती है, लेकिन कोई नहीं पढता ! कई बार ख्याल आता है कि यहाँ भी गाईड की व्यवस्था की जाए तो अच्छा रहेगा ! किसी के मुंह से सुनने का आनंद ही अलग है !
नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !
सर्वप्रथम तो नववर्श की हार्दिक शुभकामनाये.नैनीताल का ज़ू मेरा भी घूमा हुआ है जो कि एक दर्शनीय स्थल है.इसके बारे मे रोचक तरीके से बताने के लिये शुक्रिया.
ReplyDelete****FANTASTIC
ReplyDeleteमुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि नैनीताल में प्राणी उद्यान भी है. नैनीताल के पास में कोर्बेट पार्क के बारे में जरूर सुना था. आपके लेख से ऐसा लगता है कि यह उद्यान नैनीताल शहर में ही है. मैं २००७ में नैनीताल गया था,लेकिन जानकारी के अभाव में उद्यान नहीं देखा.
ReplyDeleteमुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि नैनीताल में प्राणी उद्यान भी है. नैनीताल के पास में कोर्बेट पार्क के बारे में जरूर सुना था. आपके लेख से ऐसा लगता है कि यह उद्यान नैनीताल शहर में ही है. मैं २००७ में नैनीताल गया था,लेकिन जानकारी के अभाव में उद्यान नहीं देखा.
ReplyDeleteबहुत खूब। घर बैठे नैनीताल के प्राणी उद्यान घुमाने का शुक्रिया। हमारी ओर से इन्हें भी नव वर्ष की शुभकामनाऍं दें।
ReplyDeleteहर बार नयापन लगे यह मन की अवस्था पर निर्भर करता है बरना बस्तुएं तो वही रहती है /देखभाल करने बाला कितना भाग्यशाली होगा जो पक्षियों से बातें करता होगा बरना aadmee को आदमी बात करने की; फुर्सत नहीं है /guldaar naamke पक्षी को दुर्भाग्य से में नहीं पहिचानता हूँ /bhaloo को १५-२० minat niharne से भी मन नहीं भरा होगा परन्तु आदमी के kpaas समय भी toseemit होता है
ReplyDeletepost achchi lagi
ReplyDeletehappy new year
wow... what a great day you had.. congratulations for having 1000 comments on the blog..
ReplyDeletenyc article
ReplyDeletenyc article
ReplyDeletekk chauhan
editor
uttranchal deep patrika