जागेश्वर उत्तराखंड का मशहूर तीर्थस्थान माना जाता है। यहां पे 8 वीं सदी के बने 124 शिव मंदिरों का समूह है जो अपने शिल्प के लिये खासे मशहूर हैं। इस स्थान में सावन के महीने में शिव की पूजा करना अच्छा माना जाता है। मुझे भी इस बार जागेश्वर जाने का अवसर मिला। हुआ कुछ यों कि मेरे साथ वाले जागेश्वर पूजा करने जा रहे थे जब उन्होंने मुझसे चलने को कहा तो मैंने बिना देरी किये हां बोल दिया। मेरा उद्देश्य पूजा करने के लिये जाना तो नहीं था पर इस जगह को देखना जरूर था।
हम पांच लोग 11 अगस्त 08 की सुबह 7 बजे नैनीताल से जागेश्वर के लिये निकल गये। मैं हमेशा ऐसे लोगों के साथ ही जाना पसंद करती हूं जिनके साथ मेरी अच्छी छनती हो क्योंकि उससे यात्रा का मजा दोगुना हो जाता है। खैर हम लोग भवाली की तरफ बढ़े और करीब 30 मिनट में भवाली पहुंच गये। भवाली से हमने मंदिर में पूजा के लिये कुछ मिठाई और फल खरीदे। मेरे साथ दो लोग ऐसे थे जो व्रत लिये हुए थे।
पर हमारे साथ जो दो भाईसाहब और थे वो कहां बिना कुछ खाये रह पाने वाले थे। सो जैसे ही सामान खरीद के कार में बैठे और अल्मोड़ा की ओर बढ़े ही थे कि एक भाईसाब बोले - अरे यार वो मिठाई खरीदी थी न जरा निकालो तो। देखें तो सही कैसी बनी है ? दूसरे भाइसाब को तो बहाना चाहिये था कि कोई खाने की बात करे और वो झट से खाने पे टूट पड़े सो बोल पड़े - अरे मिठाई के साथ कुछ फल भी तो लिये हैं उन्हें भी देख लेते हैं। दोनों चीजें निकाली और बांटना शुरू। इतनी देर में हम पेट्रोल पम्प में पहुंच गये जहां गाड़ी में पेट्रोल डलाया और गाड़ी की हवा भी चैक करा ली।
जिस बंदे ने हवा चैक की उसने ताजुब्ब से हमारी तरफ देखा और बोला - एक साइड के पहियों की हवा तो कम है। हमें लगा कि इतनी बड़ी गलती हमने कैसे की खैर उसे बोला कि सारे पहियों की हवा बराबर कर दे। सारे काम निपटने के बाद हम फिर आगे की तरफ बढ़ लिये और साथ में हमारी आपसी मजाक भी चलती रही। इस हंसी मजाक के साथ हम कैंची धाम पहुंच गये। कैंची धाम बाबा नीमकरौली महाराज का मंदिर हैं और देश के कोने-कोने से काफी श्रृद्धालू हर वर्ष इस मंदिर में आते हैं। इस समय हम लोग बाहर से ही हाथ जोड़कर आगे बढ़ गये क्योंकि हमारा एक मात्र उद्देश्य जागेश्वर पहुंचना ही था।
अचानक ही हमें महसूस हुआ जैसे गाड़ी सड़क पे लुढ़क रही है और गाड़ी की स्पीड बहुत कम हो गयी। हम लोग भैया को चिढ़ा रहे थे कि उन्हें ड्राइविंग आती ही नहीं है जबरदस्ती बैठ जाते हैं स्टेयरिंग पे और भी न जाने क्या-क्या ? काफी देर माथापच्ची करने के बाद हमें लगा कि ऐसा पहले नहीं हो रहा था पर भवाली में जहां हवा चैक करवायी वहीं कुछ गड़बड़ हुई है सो हमने गरमपानी के पास एक स्पॉट में रुक कर फिर पहियों की हवा चैक करायी। पता चला कि एक तरफ के पहियों की हवा कम और एक तरफ हवा ज्यादा हो गयी है जिस कारण ऐसा हो रहा था। हमने फिर हवा ठीक करायी। इस बार सब कुछ ठीक ही रहा और हम अच्छी स्पीड के साथ अल्मोड़ा की तरफ बढ़ गये।
भवाली से अल्मोड़ा का रास्ता कोसी नदी के साथ चलता है। इन दिनों बरसात थी इसलिये कोसी छलकी हुई थी और बहुत ही सुन्दर लग रही थी। कोसी किसी जगह में काफी चौड़ी हो जाती है तो कहीं पे कुछ संकरी सी हो जाती है। रास्ते में भी काफी हरियाली थी और कई तरह के फूल-पौंधे खिले हुए थे। कोसी नदी में महाशेर मछली बहुत ही ज्यादा है जो कि ठंडे और साफ पानी की मछली मानी जाती है। इस रास्ते में एक स्थान पड़ता है काकड़ीघाट। जहां सोमवारगिरी बाबा का मंदिर है। सोमवार गिरी बाबा पे यहां के लोगों की विशेष आस्था है और नीम करौली महाराज भी सोमवारगिरी महाराज को अपने गुरू तुल्य मानते थे। अपनी हिमालय यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानन्द जी भी इस स्थान में ही रुके थे। इस ही रास्ते में खैरना पुल भी पड़ता है जो कि 100 साल पूरे कर चुका है और उस समय के आर्किटेक्ट का उत्कृष्ठ नमूना है।
अचानक ही हमारे साथ के एक बंदे को उसके पहचान के कुछ लोग सड़क में दिखे उसने चलती गाड़ी से ही उन्हें कमेंट पास किया। हम लोगों ने पीछे पलट के देखा तो वो काफी देर तक गाड़ी की तरफ देख रहे थे। हमने उनसे कहा कि - यदि वो ऐसी हरकतें करते रहे तो हमें जागेश्वर की जगह थाने की यात्रा में जाना पड़ेगा।
मेरे साथ वाले बीच-बीच में ड्राइविंग कर रहे भैया को चिढ़ा रहे थे कि अगर उन्हें गाड़ी की स्पीड बढ़ानी है तो आगे वाली बाइक में बैठी लड़की का पीछा करना शुरू कर दे। इस तकनीक से हम लोग जल्दी अल्मोड़ा पहुंच जायेंगे। मैंने भैया से कहा - तकनीक का इस्तेमाल करने से पहले भाभी को भी याद कर लें अगर कहीं उनको इस तकनीक का पता चल गया तो ऐसा न हो कि हमेशा के लिये उसी लड़की के घर में रहना पड़े। हमारे इसी तरह के हल्के-फुल्के मजाक चल रहे थे और हल्की-हल्की बारिश भी होने लगी थी।
इस बीच हम लोग एक रैस्टोरेंट में चाय पीने के लिये रुके। यहां से कोसी का बहुत ही अच्छा नजारा दिख रहा था। हमने वहां चाय पी और भवाली से खरीदे फल और मिठाई भी साफ कर दिये ये कह के कि जागेश्वर के लिये अल्मोड़ा से खरीद लेंगे। हम लोग अल्मोड़ा के नजदीक पहुंच ही गये थे कि गाड़ी में लगे एफ.एम. में एक गाना बजने लगा जिसे सुन के हमारे साथ के एक जन को नाचने का भूत सवार हो गया और बोले कि - गाना भी ऐसा आ गया कि नाचने का मन कर रहा है। उनकी ये इच्छा पूरी करने के लिये गाड़ी रोकी गयी पर जैसे ही उन्होंने नाचना शुरू किया बारिश तेज हो गयी इसलिये उनकी ये इच्छा इस बार पूरी नहीं हो पायी। कुछ देर में हम अल्मोड़ा पहुंच गये। अल्मोड़ा बहुत ही अच्छी जगह हैं। अल्मोड़ा की जो एक अलग ही संस्कृति है वो मुझे हमेशा से ही आक्रषित करती रही है। (अल्मोड़ा के बारे में विस्तृत लेख किसी दूसरी पोस्ट में) अल्मोड़ा से हमने वहां की प्रसिद्ध सिंगोड़ी और बाल मिठाई खरीदी और बिना समय गवाये जागेश्वर का रास्ता पकड़ लिया।
जारी......
विनीता जी नमस्कार,
ReplyDeleteजागेश्वर यात्रा का वर्णन पढ़कर ऐसा लगा जैसे कि जागेश्वर मुझे भी बुला रहा है. अब तो बर्फ के बाद ही जायेंगे. आप एक कृपा करना. इस पूरी पोस्टमाला को फटाफट ख़त्म कर दो ताकि जागेश्वर घूमने में ज्यादा टाइम ना लगे.
Aage ki yatra ka bhi intzaar rahega. kripya jaldi hi dusri post lagaye.
ReplyDeleteअल्मोड़ा उत्तराखंड के कूर्मांचल क्षेत्र की संस्कारधानी है, अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों के लिये जाना जाता है.वहाँ की प्रसिद्व मिठाई बाल है जो फ्रिज में रखे बिना भी महीनों ख़राब नहीं होती. जागेश्वर बारह ज्योतिर्लिंगों में एक माना जाता है.
ReplyDeleteबहुत सरल प्रवाह से यहां तक की यात्रा कर ली हमने भी आपके साथ साथ ! चित्र बहुत सुन्दर लग रहे हैं ! आगे के यात्रा वृतान्त का इन्तजार है !
ReplyDeleteरामराम !
Ek baar fir achhi yatra karwayi hai apne.
ReplyDeleteयात्रा के साथ जानकारी और मनोरंजन भी हो तो सफर यादगार हो जाता है. Kakrighat पर जानकारी नई थी. धन्यवाद.
ReplyDeleteजागेश्वर की पौराणिकता जान कर मन में स्थल के प्रति आकर्शण उत्पन्न हुआ जा रहा है. अल्मोड़ा के बारे में सुन रखा है की बड़ी प्यारी जगह है. हमें पूरा पूरा चाहिए बिना सेंसर किए भले ही तीसरा भाग भी लिखना पड़े. वाकई मज़ा आ रहा है.
ReplyDeletehttp://mallar.wordpress.com
बहुत खूब विनीता जी !
ReplyDeleteदेखते हैं आप हमें कहाँ - कहाँ घुमाती हैं !
यात्रा वर्णन में लेखनी की सहजता
एक अलग ही आकर्षण भरती है,
द्रश्यचित्र उभारने में सिद्धहस्त लेखक/लेखिका
की तरह आप बार- बार पाठकों को अपने साथ खींचकर अनदेखी जगहों पर ले जाती हैं और पाठक उन तमाम द्रश्यवालियों के बीच स्वयं को अनुभव करता है !
आपने सुंदर चित्रों को शामिल कर यात्रा वृतांत को
और भी रसमय बना दिया !
क्रिसमस पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !
बहुत मजा आ रहा है । यात्रा वृत जल्दी पूरा करो ।
ReplyDeleteबहुत रोचक वृन्तात लिखा है आपने ..इस तरह का लेखन हमेशा उस नई जगह को देखने के लिए प्रेरित करता है .शुक्रिया
ReplyDeleteP.N. Subramanian ji - Mai apko jaldi hi almora ki yatra pe le jaungi. Pakka vada
ReplyDeleteis samay jageshwar hi chlte hai.
protsahan ke liye dhnywad
बहुत बढ़िया, जारी रहें
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चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
जागेश्वर अद्भुत जगह है. देवदार के इतने बलिष्ठ वॄक्ष मैंने और कहीं नहीं देखे. दूसरी किस्त कब?
ReplyDeleteकुमाँऊ जाना होता तो नजर नहीं आता, अब आपके साथ ही घूम रहे हैं। धन्यवाद।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
विनीता जी आपने जागेश्वर यात्रा का वर्णन बहुत अच्छे तरीके से किया है.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढ़ कर
सुक्रिया.