बारिश ने उत्तराखंड के गाँवों में जो भीषण तबाही मचाई है उससे उबरने में यहाँ के लोगों को पता नहीं कितना समय लगेगा क्योंकि जिस तरह से जान माल का नुकसान हुआ उसका अनुमान तक लगा पाना नामुमकिन है।
मुझे नैनीताल से लगभग 16-17 किमी. दूर छड़ा गांव की कुछ तस्वीरें मिली हैं जो कि अकेले इसी गांव की तबाही का नजारा पेश कर रही हैं। दूर गांवों की दशा तो इससे भी कहीं ज्यादा दिन दुःखाने वाली हैं।
फोटो - के. एस. सजवान
बहुत ही भयावह नजारा है, बाढ से काफ़ी क्षति हुई है, आशा है सरकार समुचित प्रबंध कर रही होगी.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत ही दुखद बात है.. पर प्रकृति के कहर को कोई नहीं रोक सकता है.. बस एक ही काम किया जा सकता है.. ज़ख्म पर मरहम लगाने का..
ReplyDeleteआशा है कि वहाँ का प्रशासन जल्द ही उनके लिए उचित प्रबंध ज़रूर करेगा...
प्रकृति का यह प्रकोप तो भयानक है. गरीब जनता ही झेलेगी.
ReplyDeleteआशा है जल्द ही सड़कों और क्षतिग्रस्त मकानों को अपने पुराने स्वरूप मैं लौटाया जा पाएगा।
ReplyDeleteVakai dukhad sthiti hai.
ReplyDeleteसातवें चित्र में तो कार का कंकाल निकला है।
ReplyDeleteबहुत भयानक।
प्रकृति के आगे बेबस हम ,,,,
ReplyDeleteबहुत ही दुखदायी
इसी तरह इस बार पहाड़ को देखना हुआ और देखना रह भी गया. प्रकृति की आपदा से अलग इसे लम्बे समय से चल रहे नीतिगत फैलियोर की तरह भी देखना होगा, जिसमे २०० सालों से चल रहे जंगलों के कटान की भी मुख्य भूमिका है, छोटे बड़े बाँध का जो जाल उत्तराखंड में बुना जा रहा है, वों स्थितियों को और भयंकर आने वाले समय में बनाएगा. प्रकृति से ज्यादा, इसे गुलाम और आज़ाद भारत की नीतियों के परिणाम की तरह देखना चाहिए.
ReplyDeleteSwapndarshi ji : mai apki bato se puri tarah sahmat hu...
ReplyDeletei have suggestion to prevent deforestation....number of trees planted should be attached with the -rebate in tax on income of a person !!may be 1% rebae on ,say,50 trees planted ...or something like that.
ReplyDeletewhat say?
कलयुग तो है ही--चिल्लाते रहेन्गे कि पेड मत काटो या पेड लगओ तो ,नही होने वाला/
so lets attach a benefit to this serious problem.
its my serious suggestion.
Horrible indeed ! When will administration wake up ?
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