प्रागेतिहासिक काल में मनुष्य ने अपने रहने के लिये उन गुफाओं को पसंद किया जो ऊँचे-ऊँचे स्थानों में तो स्थित होती ही थी साथ ही वहां से भोजन एवं जल की व्यवस्था भी आसानी से की जा सकती थी। उस समय के मानव ने इन गुफाओं में अपने रहन-सहन के अनुसार कुछ चित्रण भी किया जो कि आज भी कई गुफाओं में देखे जा सकते हैं।
कुमाउं में भी ऐसे कई स्थान हैं जहां इस तरह के भित्ती चित्र पाये जाते हैं। उनमें से ही एक जगह है लखु-उडि्यार। लखु उडियार अल्मोड़ा से कुछ दूरी पर स्थित है। जिस पहाड़ी में यह गुफा स्थित है उसके पास से ही सुयाल नदी होकर बहती है। इस स्थान को मोटर मार्ग से भी आसानी से देखा जा सकता है। इस गुफा में में कई नर्तकों के चित्र बने हुए हैं। जिस रास्ते से अंदर जाते हैं उस जगह पर ही करीब 7 नर्तकों के चित्र अंकित हैं। और तो रहा और एक नर्तकों की मंडली में तो नर्तकों को आसानी से गिना भी जा सकता है। इन नर्तकों के बाद जो दूसरे प्रमुख चित्र इस गुफा में अंकित हैं वो हैं मानव का जानवरों को चराते हुए, शिकार करने के लिये उनका पीछा करते हुए। इसी तरह इस गुफा में कुछ और फिर चित्र अंकित हैं। जिनमें से कुछ तो आज भी स्पष्ट नजर आते हैं और कुछ खराब हो चुके हैं।
लखु-उडियार के पास और भी कई गुफायें हैं इसीलिये इस स्थान को लखु-उडियार कहा जाता है। लखु माने `लाख´ और उडियार का मतलब होता है `गुफा´। इन गुफाओं में भी कई तरह के चित्र अंकित हैं पर अब ये अच्छी हालत में नहीं हैं।
कुमाउं में भी ऐसे कई स्थान हैं जहां इस तरह के भित्ती चित्र पाये जाते हैं। उनमें से ही एक जगह है लखु-उडि्यार। लखु उडियार अल्मोड़ा से कुछ दूरी पर स्थित है। जिस पहाड़ी में यह गुफा स्थित है उसके पास से ही सुयाल नदी होकर बहती है। इस स्थान को मोटर मार्ग से भी आसानी से देखा जा सकता है। इस गुफा में में कई नर्तकों के चित्र बने हुए हैं। जिस रास्ते से अंदर जाते हैं उस जगह पर ही करीब 7 नर्तकों के चित्र अंकित हैं। और तो रहा और एक नर्तकों की मंडली में तो नर्तकों को आसानी से गिना भी जा सकता है। इन नर्तकों के बाद जो दूसरे प्रमुख चित्र इस गुफा में अंकित हैं वो हैं मानव का जानवरों को चराते हुए, शिकार करने के लिये उनका पीछा करते हुए। इसी तरह इस गुफा में कुछ और फिर चित्र अंकित हैं। जिनमें से कुछ तो आज भी स्पष्ट नजर आते हैं और कुछ खराब हो चुके हैं।
लखु-उडियार के पास और भी कई गुफायें हैं इसीलिये इस स्थान को लखु-उडियार कहा जाता है। लखु माने `लाख´ और उडियार का मतलब होता है `गुफा´। इन गुफाओं में भी कई तरह के चित्र अंकित हैं पर अब ये अच्छी हालत में नहीं हैं।
विनीता कैसी हो? बहुत दिन से तुम्हारे ब्लाग पर नही आ पाई। याद आती है मगर व्यस्त रही।। हमेशा की तरह अच्छी जानकारी। है शुभकामनायें
ReplyDeleteबढिया अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteविनीता जी आपने बेहद बढ़िया जानकारी दी है. काश ये पोस्ट कुछ दिन पहले आयी होती तो मैं भी लघु उडियार हो आता. पिछले दिनों मैं अल्मोड़ा में ही था. खैर कोई बात नहीं अगली यात्रा में वहा जाने की कोशिश जरुर करूँगा. इस आलेख के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteप्रागेतिहासिक काल में मनुष्य गुफाओं/कंदराओं में ही तो रहता था. फुर्सत के समय ऐसे चित्रांकन हुए. कुमाऊँ के लखु उडियार के बारे में यह जानकारी महत्वपूर्ण है. आभार.
ReplyDeleteYes i have been there ! Amazing place but No effort to save the place . Thnx for info .
ReplyDeleteजानकारी के लिए आभार। मुझे तो इसके बारे में पता ही नहीं था। काश कभी जाना हो।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
Acchi jaankari, vakai is Virasat ke sanrakshan ki jarurat hai. Kabhi mauka mila to Jhadkhand ke Bhitti Chitron ki jaaankari bhi dunga.
ReplyDeleteउत्तम जानकारी, धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार जानकारी का.
ReplyDeletevery informative ...thanx ...
ReplyDeleteआप एक बार ये और बता दीजिये कि अल्मोडा से लखु-उडियार पहुंचा कैसे जाता है। किस रोड पर है? कितनी दूर है? बस मिलती है या जीप? पैदल भी चलना पडता है क्या?
ReplyDeleteमैने पहले भी सुना इस जगह का नाम।
हमने प्रयास किया की आपके नए पोस्ट "कुमाऊँ का मुख्य पर्यटन स्थल है बैजनाथ" को पढ़ें.परन्तु वह अपनी जगह नहीं है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर जानकारी.
ReplyDeleteरामराम.
subramaniam ji ki pareshani hi meri pareshani hai.
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