कुछ समय शारदा को देखने के बाद हम लोग उसी रास्ते से वापस आ गये। इस रास्ते में एक झूठा मंदिर भी है। कहा जाता है कि एक बार किसी व्यापारी ने मनौती की थी कि यदि उसके बेटा हुआ तो वो देवी को सोने का मंदिर चढ़ायेगा। मां ने उसकी मनौती पूरी कर दी पर उस व्यापारी ने सोने का मंदिर न चढ़ा के सोने का पानी किया हुआ मंदिर चढ़ा दिया। देवी इससे बुरी तरह नाराज हुई और उन्होंने उस मंदिर का वजन इतना ज्यादा बढ़ा दिया कि व्यापारी मंदिर को आधे रास्ते से ऊपर ला ही नहीं पाया और वो झूठा मंदिर आधे रास्ते में ही रुक गया।
कुछ देर में हम वहां पर आ गये थे जहां से हमने पूजा का सामान खरीदा था। यहां भी कालीमाई का एक मंदिर है। इस मंदिर में बलि चढ़ाई जाती है। मेरे साथ वालों ने तो यहां नारियल चढ़ाये पर मैंने बाहर से ही हाथ जोड़ दिये। इस जगह से भी हमें काफी पैदल वापस आना था। जब हम वापस आ रहे थे तो भाईसाब की बेटी की नजर एक बंदर के बच्चे पर पड़ी। उसने मुझसे कहा - दीदी देखो वो बंदर का सर काला है और थोड़ी-थोड़ी पीठ भी काली है। ऐसा बंदर तो पहले नहीं देखा। उसे देखने के बाद मुझे भी ताज्जुब तो हुआ पर यह समझने में देर नहीं लगी की उसके बाल डाई किये हैं। मैंने उसे समझाया पर वो नहीं मानी और उसकी फोटो खींचने चली गयी। जैसे ही फोटो खींचने वाली थी बंदर के मालिक ने उससे कहा - फोटो खींचने से पहले 50 रुपये तो दे दो। बंदर के डाई का खर्चा निकल आयेगा। बेचारी बिल्कुल झेंप सी गयी। मैंने उसे वापस बुलाया और हम दोनों आगे बढ़ गये। अपने आपसी हंसी मजाक और बातों के साथ-साथ हम जहां गाड़ी खड़ी थी उस जगह आ गये। यहीं हमने खाना खाया और जल्दी-जल्दी वापस हो लिये क्योंकि हमें आज महेन्द्रनगर भी जाना था जो नेपाल बॉर्डर में पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि जब तक यहां के नई ब्रह्म देव मंडी मे स्थित सिद्ध बाबा के मंदिर न जाया जाये तब तक यात्रा को अधूरा ही माना जाता है।
ब्रह्मदेव मंडी टनकपुर से लगभग आधे घंटे की दूरी पर है। यहां शारदा बैराज को पार करते हुए जाना होता है जो कि नेपाल और भारत की सीमा में है। इस बैराज से नेपाल का इलाका शुरू हो जाता है। यह बैराज लगभग आधा किमी. लम्बा है जिसे पैदल ही पार करना होता है। इस बैराज के बाद भी लगभग एक-डेढ़ किमी. और पैदल जाना होता है सिद्ध बाबा के मंदिर के लिये। यहां से शारदा नदी का विशाल दृश्य दिखता है। इस समय शारदा में पानी तो था पर उसके किनारों में रेत बिल्कुल मक्खन की सी लग रही थी। यह पूरा रास्ता शारदा के किनारे-किनारे ही जाता है। रास्ता पार कर लेने के बाद हम ब्रह्मदेव मंडी पहुंच गये। यहां एक छोटा सा बाजार है जिसमें कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक सामान, जूते, कपड़े तथा अन्य तरह के सामान मिल जाते हैं पर हमारा पहला उद्देश्य मंदिर में जाना था सो हम सीधे मंदिर की ओर चले गये।
पूर्णागिरी मंदिर के एकदम उलट यहां के पुजारी बेहद शांत नजर आये जिनमें दक्षिणा को लेकर कोई लालच नहीं दिखा। उनका यह व्यवहार देख कर बहुत अच्छा लगा। ऐसा कहा जाता है कि सिद्ध बाबा से जो भी कुछ मांगा जाये वो पूरा होता है। इस मंदिर में कुछ देर रुकने के बाद हम लोग बाजार की तरफ वापस आ गये। बाजार में हम लोगों के दो ग्रुप बन गये एक वो जिन्हें सामान खरीदना था दूसरा हमारा जिन्हें सिर्फ घूमना था। यहां महिलायें अपनी परंपरागत वेशभूषा में नजर आई। ज्यादातर तो नेपाली बोल रही थी पर हिन्दी भी बहुत अच्छे से बोल ले रही थी। वैसे भी यह कहा जाता है कि नेपाल और भारत में हमेशा से ही चेली-बेटी वाले संबंध रहे हैं माने की यहां की लड़कियों की शादी नेपाल में हो जाती है और नेपाल की लड़कियां बहू बन कर भारत आती है।
मुझे इस बाजार में एक एन्टीक सा दिखने वाला ताला पसंद आया जिसे मैंने अपने लिये खरीदा। दूसरे ग्रुप वालों को खरीदारी में काफी समय लग रहा था सो हमने उन्हें वापस आने का इशारा किया। इस बाजार में हमने लगभग 3 घंटे लगा दिये। अभी पैदल टनकपुर वापस जाना था और उसके बाद नैनीताल के लिये भी निकलना था सो अब थोड़ी जल्दी-जल्दी होने लगी थी। खरीदारी निपटा के हम लोग शारदा बैराज होते हुए वापस भारत की सीमा में आ गये। जहां हमारी गाड़ी हमारा इंतजार कर रही थी।
टनकपुर से लौटते हुए हम लोग पंत नगर विश्वविद्यालय भी गये। यहां भाईसाब की पहचान के कोई सज्जन थे जिन्होंने हमें विश्वविद्यालय घुमाया। समय कम होने के कारण हम यहां ज्यादा समय नहीं बिता पाये पर इस विश्वविद्यालय को देखना एक अच्छा अनुभव रहा। पंतनगर से हम बिना समय गंवाये हुए हल्द्वानी की तरफ लौट लिये पर हमारे पायलट साब की स्पीड में अभी भी कोई फर्क नहीं पड़ा था सो हमें हल्द्वानी पहुंचने में ही करीब रात के आठ बज गये। अब भूख भी सताने लगी थी और हमें से कोई भी घर जाकर खाने के बवाल में नहीं पड़ना चाहता था इसलिये रास्ते के एक रैस्टोरेंट में रुक कर खाना खाया गया।
हल्द्वानी से नैनीताल पहुंचने में हमें लगभग 11 बज गये। भाईसाब ने घर तक छोड़ने के लिये कहा पर मैंने मना कर दिया। रात का चौकीदार सीटी पे सीटी बजाये जा रहा था पर असली समस्या तो तब खड़ी हुई जब पड़ोस के सारे कुत्ते एक साथ इकट्ठा हो गये और भौंकना शुरू कर दिया। मुझे बिल्कुल समझ नहीं आया की अब क्या करूं इतनी रात को किसी का दरवाजा भी नहीं खटखटा सकती थी इसलिये जहां कुत्ते थे उसके दूसरी तरफ वाली दिवार को लांघ कर पूरी स्पीड में दौड़ लगाते हुए मैं अपने घर की पहुंच गई तब जाकर कुछ जान में जान आई और बाद में बहुत हंसी भी आई क्योंकि ऐसा कभी नहीं सोचा था कि अपने ही घर आने के लिये अपने घर की दिवार लांघनी होगी। दूसरे दिन मुझे साथ वालों ने बताया कि वो ड्राइवर रोजाना बच्चों को स्कूल लाता लेजाता है इसलिये उसकी स्पीड 20 से ऊपर नहीं बढ़ती...
समाप्त
20 km/hr , bandar aur kutta teeno hi sansmaran behterin they.
ReplyDeleteइस सांस्कृतिक महत्व की जानकारी के लिए आभार।
ReplyDelete( Treasurer-S. T. )
बहुत ही रोचक यात्रा वृतांत. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
Apke sath is yatra mai to maza aaya per is baar apne pictures nahi lagayi. thori pictures aur laga deti ti achha rahata
ReplyDeleteआज लग ही रहा था कि विनीता वापिस आ गयी होगी। अच्छा वृताँत लिखा है शुभकामनायें
ReplyDeleteआज लग ही रहा था कि विनीता वापिस आ गयी होगी। अच्छा वृताँत लिखा है शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत ही रोचक यात्रा वृतांत !
ReplyDeleteलेखन शैली ऐसी है जो पाठक को बांधे रखती है
शुभ कामनाएं
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ReplyDeleteमेरे आस-पास की जानकारियाँ देने के लिए,
ReplyDeleteआपका आभार!
Achhi jankariyo bhari rochak yatra
ReplyDeleteI'd like to hire the same driver in hills.
ReplyDeleteबहुत अच्छा वृत्तांत रहा.. लगा कि हम भी साथ में यात्रा कर रहे हैं.. बेस्ट पार्ट सबसे आखिर में दीवार लांघकर घर पंहुचने वाला रहा :)
ReplyDeleteहैपी ब्लॉगिंग
विनीता जी,
ReplyDeleteपहले तो ये बताओ कि सबसे ऊपर वाले चित्र में सड़क के बीच में दो लाइनें क्या हैं? और, कुछ नेपाल की करेंसी का भी बताओ. वहां भारतीय मुद्रा किस तरह बदली गयी या बदली ही नहीं गयी.
मेरा भी नवम्बर में उधर ही जाने का प्लान है. एक विदेश यात्रा तो हो ही जायेगी.
Niraj ji yah sharda barrage hai jise cross karke Nepal border mai jaya jata hai...
ReplyDeleteNepal ke is hisse mai humne rupees se hi kaam chalaya tha...
currency change karne ka jhmela yaha pe nahi tha...
achchaa likha
ReplyDeleterochak bhi hai
aur aapkaa anand to spasht hota hi hai
नीरज जी लगता है यह भी जानना चाह रहे थे की शारदा बरेज पर रेल लाइन क्यों बिछी है. उनको रेलवे की हर लाइन आकर्षित करती है. सब लोगों की तरह हमने भी आपके साथ यात्रा कर ली. बहुत ही सुन्दर आलेख. आभार. हाँ हम पूछना छह रहे थे की क्या वहां पर कोई चेक पोस्ट नहीं है? क्या हम आसानी से नेपाल के अन्दर घुस सकते हैं?
ReplyDeleteमाता पूर्णागिरि के विषय में जानकारी देकर आपने सराहनीय कार्य किया, आभार.
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