इस बार काफी लम्बे समय के बाद हम दोस्तों का एक साथ कहीं जाना हो पाया और मौका था हमारे एक दोस्त की शादी। उसकी शादी उसके पैतृक गांव से होनी थी सो पहले तो हम लोगों को समझ नहीं आया कि जायें जा नहीं पर फिर अंत में तय किया गया कि जायेंगे। एक तो शादी भी निपट जायेगी और साथ ही एक नयी जगह देखने को भी मिलेगी।
रास्ते से हिमालय का नज़ारा हम सुबह 7 बजे नैनीताल से लमगड़ा के लिये निकले। वैसे तो लमगड़ा भी अल्मोड़ा वाले रास्ते से जा सकते थे पर हमे नया रास्ता देखना था सो उसके उल्टा रास्ता पकड़ा जिससे हम पदमपुरी होते हुए धानाचूली बैंड पहुंचे और वहां से लमगड़ा की ओर निकल गये। इन दिनों मौसम बहुत सुहाना था और हिमालय का भव्य नजारा हमारे साथ इस पूरे रास्ते में बना रहा। अब इन क्षेत्रों में भी बाहर से आकर लोगों ने बड़ी-बड़ी इमारतें बना दी हैं। करीब 11 बजे हम लमगड़ा पहुंच गये।
यहां पहुंचने के बाद हमें 5-6 किमी. कच्ची सड़क पर आगे बढ़े और इसके बाद गाड़ी को यहीं छोड़ना पड़ा। अब आगे का सफर पैदल ही तय करना था। इस स्थान पर हमें जो सज्जन लेने आये थे उनका आग्रह था कि पहले उनके घर चल कर थोड़ा सुस्ता लें।
पैदल रास्ता
मालूम पड़ा कि उन्होंने पहले से ही हम सब के लिये भोजन बनवा रखा था। खाने की इच्छा तो नहीं थी, पर जब घर के कुटे लाल चावल और लोबिया की दाल हमारी नजरों के सामने आये तो सबके मुँह में पानी आ गया। हमने तो ऐसे लाल चावल जिन्दगी में पहली बार देखे थे। और स्वाद तो एकदम निराला! गाँव के हवा-पानी का भी असर होता होगा शायद।
यहीं खाये हमने लाल कुटे चावल और लोबिया की दाल
फिर करीब तीनेक किमी. का पैदल सफर तय करके रौतेला जाख पहुँचे। यह रास्ता था तो कच्चा पर सीधा-सीधा ही था सो चलने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई और करीब आधे घंटे में हम लोग दोस्त के घर पहुंच गये। घर में शादी का माहौल था। महिला आंगन में अपने नृत्य आदि कार्यक्रमों में लगी थी। बैंड की जगह भी पारम्परिक छोलिया नर्तक थे और साथ में दो मशकबीन बजाने वाले।
शादी का घर
मशकबीन बीन वाले
बारात पास के ही एक गाँव फटक्वाल डुँगरा, को जानी थी, अत: इत्मीनान से निकली। फटक्वाल डुँगरा एकदम सामने की पहाड़ी पर दिखाई दे रहा था। हमसे कहा गया कि ज्यादा नहीं चलना है, सो हम लोग बेफिक्र हो गये। थोड़ा ही आगे बढ़े थे कि एक साथ वाले ने एक घर की तरफ इशारा करते हुए कहा, अरे देखो, यहाँ तो मयखाना खुला है। बहुत से लोग हाथ में नोट लेकर भीतर जा रहे हैं और थोड़ी देर बाद होंठ पोंछते वापस आ रहे हैं। गाँवों में शराब का जो मर्ज फैला है, उसका खालिस नमूना हमारी नजरों के सामने था। बड़े-बूढ़े तो एक तरफ, बच्चों को वहाँ जाने में कोई शर्म नहीं थी। बारात थोड़ा ही आगे पहुँची होगी, आधे बाराती टल्ली हो चुके थे।
आधा किमी. चलने के बाद ही एक तीखी ढलान शुरू हो गयी। चलना थोड़ा मुश्किल था पर फिर भी आपसी हंसी-मजाक के साथ जैसे-तैसे ढलान से तो हम लोग निपट लिये। तभी दोस्त के पिताजी हमारे पास आये और बोले - बच्चो बस अब ये छोटी सी चढ़ाई पार करनी है और फिर हम पहुंच जायेंगे। हमने सामने की तरफ देखा तो एक सीधी चढ़ाई हमारा इन्तजार कर रही थी। हम लोगों ने आपस में कहा कि - अगर ये छोटी सी चढ़ाई है तो बड़ी सी चढ़ाई कैसी होगी भगवान जाने।
सामने की चढ़ाई
खैर हम लोगों को ट्रेकिंग की अच्छी आदत थी सो ज्यादा टेंशन भी नहीं हुआ और हमने आगे बढ़ना शुरू कर दिया। हमसे कुछ ही दूरी पर दुल्हे मियां घोड़े पर सवार होकर चले जा रहे थे। जिसे हमने पीछे से थोड़ा चिढ़ाया तो वो रुक गया और हमारे एक साथी से बोला - यार ! तू घोड़े पर चले जा मैं पैदल ही आ जाउंगा। इस पर साथ वाले ने इस अंदाज में ताना मारते हुए उसे मना किया कि सभी पेट पकड़-पकड़ के हंसने लगे। दोस्त ने बोला - नहीं यार ! तू ही जा घोड़े में वरना लड़की वाले कहेंगे कि दिखाया किसे था और ले किसे आये।
खैर चलते-सुस्ताते, हंसते-हंसाते हम लोग आगे बढ़ते रहे। इस चढ़ाई पर कोई निश्चित रास्ता नहीं रहा। जिसे जहाँ से सुविधाजनक लगा, वह उस रास्ते से चढ़ रहा था। बारात पूरी तरह बिखर चुकी थी। हमारे साथ चल रहे एक ग्रामीण ने बताया कि यहाँ सड़क न होने के कारण हमें बहुत परेशानी झेलनी पड़ती है। सबसे ज्यादा परेशानी तो उस वक्त होती है, जब कोई बीमार हो जाता है। नजदीक कोई अस्पताल भी नहीं है। उस समय तो ऐसा लगता है, जैसे मरीज के वास्ते मुर्दाघाट नजदीक है।
शाम 7 बजे बारात उस पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गयी। बिखरे हुए सभी बाराती वहाँ पर इकट्ठा हुए और छिटपुट आतिशबाजी कर आगे बढ़े। थकान से हम लोगों का बुरा हाल था। उस समय तो यही लग रहा था कि अगर पहले पता होता कि इतना खराब रास्ता होगा, तो आते ही नहीं। पर फिर हमें यह भी लगा कि यदि आते ही नहीं तो पता कैसे चलता कि पहाड़ों में लोग आज भी कितनी कठिनाइयों में रहते हैं। हम आपस में यही कह रहे थे कि यदि हमारे नेता लोगों को सिर्फ 1 दिन के लिये भी इन जगहों में भेज दिया जाये तो शायद उन्हें पता चले कि वो कौन से वाले विकास की बात करते हैं।
जारी...
बेहतरीन संस्मरण है।
ReplyDeleteShaadi ka sansmaran accha laga. Buniyadi suvidhaon ke abhay mein kafi kathinai uthani pad rahi hai graminon ko.
ReplyDeleteहम आपस में यही कह रहे थे कि यदि हमारे नेता लोगों को सिर्फ 1 दिन के लिये भी इन जगहों में भेज दिया जाये तो शायद उन्हें पता चले कि वो कौन से वाले विकास की बात करते हैं।
ReplyDeleteबहुत लाजवाब यात्रा विवरण. उपरोक्त कथन असली पीडा व्यक्त करता है. गांव का आज भी इतने प्राकृतिक माहोल मे होना आश्चर्य चकित करता है. प्राईमरी सुविधाएं तो होई ही चाहियें. लेकह पढकर बहुत आनंद आया.
रामराम.
शुक्रिया ................अच्छे नजारे ...........अच्छी जानकारी
ReplyDeleteThe best post i have ever read ! Best because it narrates the difficulties as well the simple pleasures of Highland life. This mashakbeen or bagpipe is played in Scotland also by people who wear skirts.I don't think these simple village players have heard of Scotland . Hills of Scotland are no more beautiful than Uttaranchal , but difference in quality of governance is as vast as the difference between 'kachi sharab' and Scotch . This post deserves the best travel post award.Keep it pasted .
ReplyDeleteआप के संस्मरण का आनंद ले रहा हूँ। सोच कर कि यदि मैं होता तो चढ़ाई में कितना मजा आता।
ReplyDeleteहमेशा याद रहने वाली घटना।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मेरे गाँव के चहुंमुखी विकास के लिए भी सरकार ने वहां एक अंग्रेजी दारु की दुकान खोल दी है. सरकार का बहुत-बहुत धन्यवाद.
ReplyDeletebahut sunder dhang se aapne yeh lekh likha
ReplyDeleteGod bless u
मुनीश जी बिलकुल सही कह रहे हैं.
ReplyDelete.
हमने भी एक ऐसी ही शादी अटैंड की है, जब हम वहां पहुंचे तो दुल्हे मियां तो बारात लेकर जा चुके थे, लेकिन फिर भी वो जबरदस्त ट्रेकिंग रही.
बहुत ही बेहतरीन पोस्ट ...पहाडी शादी की मुश्किलें सुनी थी पर इतनी यह आज आपकी पोस्ट पढ़ कर जाना .. चित्र भी बढ़िया है अग्लो कड़ी का इन्तजार रहेगा शुक्रिया
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ReplyDeleteबिखरी बिखरी सी बारात के फ़िर फ़िर जुटने के इस किस्से में अपने ही तरह की सादगी है। आज ही किसी ब्लाग में पढ रहा था कि एक संगोष्ठी ब्लाग पर हो रही है, उसी में जिक्र किया गया था कि कुछ हिन्दी के विद्वानों को ब्लाग पर हो रहा लेखन अ-गम्भीर लगता है। शायद उनकी गलती नहीं, वे ब्लाग की दुनिया से परिचित नहीं हैं,उन्हें भी यह पोस्ट पढनी चाहिए और इस जैसी दूसरी हजारों पोस्ट, जो अन्य ब्लोगों में छपती रह्ती हैं।
ReplyDeleteबिना किसी लेखकीय अकड के लिखने वाले इन ब्लागरस के लेखन में जो सादगी है, वह कहीं और दिखाई नहीं पडती।
यह सादगी बनी रहे विनीता ।
इस शादी में हमें भी शामिल करने का शुक्रिया :)
ReplyDeleteचढाई वाला फोटू देखके सांस फूल गयी ..सच में कुछ जगह बतोर टूरिस्ट .आप चार दिन मजे से काट लेते है पर वहां रहकर उन मुश्किलों का रोज सामना करना अलग बात है
ReplyDeleteहिन्दी के प्रतिष्ठित बडे लेखक या समीक्षाकार हिन्दी ब्लोग जगत की आँखोँ देखी बानगी और विश्व के हर कोने से उभरती आवाज़ को
ReplyDeleteसुन ही नहीँ रहे ..उन्हेँ क्या पता ..कि यहाँ कितना सच और सरल लेखन हो रहा है -
कल झारखँड की समस्याओँ का ऐसा सच्चा विवरण पढा जो समाचार पत्र भी नहीँ छापते
विनीता जी ये विवरण बहुत पसँद आया
हमेँ शामिल करने का शुक्रिया जी ..
- लावण्या
विनीता जी आप जा रही तो हमे भी ले जाती!
ReplyDeleteसच मे चढाई चढने मे जो मज़ा है वो कही नही है....वो पैर को ज़मा कर रखना और कभी कभी ज़मे पैर का फ़िसलना...
आपने तो पुराने दिन याद करा दिये...आपका बहुत बहुत शुक्रिया
विनीता तुम्हारी पोस्ट पढ़कर कई साल पहले की एक बारात बरबस याद आ गई. पड़ोस के गाँव की बारात में मुझे अपने घर का प्रतिनिधि बन कर जाना था. दुल्हन के घर पहुँचते-पहुँचते अधिकांश बाराती परमहंसावस्था में पहुँच चुके थे. रात ढलते ही पंगत सज गई, लोग लाइन से अपनी-अपनी थालियाँ सामने कर बैठ गए. भोजन परोसा जाने लगा और लोगों ने खाना शुरू किया.
ReplyDeleteबारातियों में एक महाविघ्नकारी भी था. पंगत के एक छोर में पूर्ण टुन्नावस्था में बैठा बबाल करने का मौका तलाश कर रहा था. कुछ नहीं मिला तो उसने भोजन पर कड़वी टिप्पणियां शुरू कर दीं. घरातियों में भी कुछ पहुंचे हुए मौजूद थे. उन्होंने जवाबी जुमले उछाले. बात कुछ ऐसी बिगड़ी कि हमारे बिघ्नकारी अचानक उठे और पूरी पंगत की थालियों पर दौड़ पड़े. फिर क्या था, दोनों तरफ के शराबी एक-दूसरे पर टूट पड़े. गिनती के होशमंद अपनी सलामती की खातिर इधर-उधर हो लिए. अपने राम ने भी पास के प्राइमरी स्कूल में शरण लेने में ही भलाई समझी. किसी तरह रात कटी और सुबह की बस पकड़ कर वापस घर हो लिए. पहाड़ के गांवों की बारातें शराब के कारण बरबाद हो गयी हैं. इस वजह से लोग अब दिन की शादियाँ पसंद करने लगे हैं.
ये पोस्ट तो खैर बेहतरीन है, ऐसा दो से अधिक बार इस टिपण्णी से पहले कहा भी जा चुका है.
ReplyDeleteइससे भिन्न परिवेश में, बाड़मेर जिले के एक रेगिस्तानी गाँव इन्द्रोई में एक शादी कुछ बरस पहले मैंने भी एक बाराती के तौर देखी थी. तब बरात पूरे ढाई दिन दुनिया से लगभग कटे उस गाँव रुकी थी.गर्मी और तीखी मिर्च की सब्जियां आज भी याद है...
पहाडों की परम्परागत शादी में हमे भी भाग लेने का आपने मौका दिया ,धन्यवाद
ReplyDeleteकितनी सुन्दर वादियाँ हैं. अच्छे मकान, साफ़ सुथरा माहौल बस चढ़ने उतरने की कठिनाई है. चित्र तो गजब के हैं. बिलकुल एहसास हो रहा है की क्या परिस्थतियाँ हैं. अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.
ReplyDeleteइसी बहाने हम भी घूम लिए आपके साथ..बहुत सुन्दर वृतांत!!
ReplyDeleteबेहतरीन संस्मरण
ReplyDeleteहमें भी शादी में शामिल होकर अच्छा लगा ! विस्तृत वर्णन अच्छा लगा !
ReplyDelete25th ,silver jubilee, comment--
ReplyDeleteIf the feel and number of comments is any indication , we Indians surely love to narrate and hear about marriages and what transpires during the ceremony ! Next time don't forget to upload movie of the procession with hindi songs !
bahut acha laga padhkar
ReplyDeletepahadon ki shadi almost choti moti trekking ke brabar hai iska ahsaas aapki is post se hua.
ReplyDeleteअभी हाल ही में भवाली के पास घोड़ाखाल के मंदिर में ऐ शादी में गया था। अभी एक महीने के अंदर फिर पहाड़ जाने का संयोग हो रहा है। मैं दोमने हो रहा था, आपका लेख पढ़ कर फिर पहाड़ जाने का इरादा पक्का कर लिया है।
ReplyDeleteBahut Khoob.. ye comment chhota sa isliye kar raha hu kyoki mujhe agla bhag padhne kee jaldi hai :)
ReplyDeleteVineeta aaj hi apki ye post par paya hu. bahut achha likha hai
ReplyDeleteवाह विनिता अकेले ही शादी देख ली अब तो अपना भी मन हो रहा है ऐसी शादी देखने का और नाचने का बहुत सुन्दर पोस्ट है बधाई
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