सूर्योदय के समय कौसानी सूर्योदय के समय कौसानी
सुबह अच्छी खासी ठंडी थी इसलिये उठने का मन नहीं हुआ पर थोड़ा आलस करने के बाद हम लोग उठ ही गये। सूर्योदय के समय कौसानी का नज़ारा कुछ अलग ही दिखाई दे रहा था। हम थोड़ा आगे तक टहलने निकल गये। वापस आकर कॉफी पी, नाश्ता किया और आज के दिन की प्लानिंग की। क्योंकि हमारे पास सिर्फ आज का ही दिन था इसलिये हम ज्यादा से ज्यादा कौसानी देखना चाहते थे। तैयार होते हुए करीब 11 बज गये। रैस्ट हाउस वालों हमें ने बताया कि - नजदीक में तो आप अनासक्ति आश्रम, सुमित्रानन्दन पंत म्यूजियम जा सकते हो और थोड़ा दूरी पर रुद्रधारी मंदिर जा सकते हो लेकिन वहां जाने के लिये आपको काफी पैदल जाना पड़ेगा। पैदल चलने के नाम पर इस मंदिर के लिये हम लोगों की उत्सुकता बढ़ गयी। उसके बाद हम लोग रास्ते की दुकान पर चाय पीते हुए पैदल ही कौसानी बाजार आ गये। इस समय हिमालय का नजारा देखने लायक था। कौसानी से हिमालय
अनासक्ति आश्रम कौसानी बाजार में ही है। यह वह जगह है जहां सन् 1929 में गांधी जी भ्रमण पर आये थे और इसी स्थान पर उन्होंने अनासक्ति योग लिखा था। इस आश्रम को बहुत अच्छे ढंग से व्यवस्थित किया गया है। यहां गांधी जी से संबंधित सभी चीजों के संकलन किया गया है। इस आश्रम में एक प्रार्थना भवन भी है। अनासक्ति आश्रम में जाना काफी शुकुनभरा अनुभव रहा। अनासक्ति आश्रम अनासक्ति आश्रम के भीतर का नज़ारा अनासक्ति आश्रम का प्रार्थना भवन
यहां से हम लोग सुमित्रानन्दन पंत जो कि हिन्दी साहित्य के महान कवि रहे हैं के पैत्रक निवास को देखने गये। जिसे अब सुमित्रानन्दन पंत म्यूजियम बना दिया गया है। यहां इनसे संबंधित चीजों का संकलन किया है। पर इस म्यूजियम की दशा हमें उतनी ज्यादा अच्छी नहीं लगी।
सुमित्रानन्दन पंत म्यूजियम
इस स्थान में कुछ मंदिर वगैरह भी हैं। यहीं हमने रुद्रधारी मंदिर जाने के लिये टैक्सी की बात की। टैक्सी वाले ने बताया - मंदिर जाने के लिये काफी पैदल जाना पड़ता है इसलिये गाइड को साथ में ले जाना ही ठीक रहेगा क्योंकि जंगल में भटकने का भी खतरा रहता है। पहले तो हमें गाइड ले जाने की बात कुछ समझ नहीं आयी पर फिर लगा कि गाइड को ले ही जाते हैं। शायद 1-2 घंटे में हम रुद्रधारी मंदिर को पैदल जाने वाले रास्ते में पहुंच चुके थे। इसके आगे का रास्ता पैदल चलना था। यह चीड़ का जंगल था। काफी घना था और काफी उतार चढ़ाव वाला रास्ता था। इस रास्ते को देखते हुए हमें लगा कि गांव वालों ने हमें सही राय दी थी कि गाइड को साथ ले लें। यहां पर ट्रेकिंग करने में बड़ा मजा आया। इस जंगल के बीच से एक पतली सी नदी भी बह रही थी जो आजकल शायद पानी कम होने के कारण सूख सी गयी थी।
रुद्रधारी के पास बहने वाला झरना
हम लोग करीब 3 घंटे चलने के बाद रुद्रधारी मंदिर पहुंचे। जब यहां पहुंचे तो हमारी पूरी थकावट एक पल में ही छू हो गयी। इसका कारण मंदिर नहीं था बल्कि मंदिर के पास बहने वाला झरना था जो कि काफी ऊँचा था और उसमें से काफी पानी नीचे गिर रहा था। शायद यही पानी उस नदी में भी जा रहा था। जो भी हो पर हम लोग मंदिर में जाने से पहले काफी देर तक झरने में खेलते रहे। हमारे गाइड ने हमें झरने में ज्यादा आगे जाने से मना कर दिया सो हम पानी में पैर डाल के बैठे रहे। उसके बाद मंदिर में अंदर गये। यहां शिवलिंग हैं। इस मंदिर के बारे में ज्यादा तो हमें कुछ पता नहीं चला पर हां गाइड ने बताया कि यहां कोई बाबाजी रहते हैं जो आजकल कहीं बाहर गये हुए हैं। मंदिर के दर्शन करके हम लोग वापस झरने के पास आये और थोड़ी देर फिर पानी में खेलते रहने के बाद वापस लौट लिये। रुद्रधारी का मंदिर
जंगल में हमें औरतें घास काट के लाती हुई दिखी। मेरे मुंह से अचानक निकल पड़ा कि - गांवों को तो औरतों ने ही जिंदा रखा है अगर ये औरतें नहीं होती तो गांव कब के तबाह हो जाते। महिला सशक्तिकरण का असली उदाहरण तो गांव की ये औरतें हैं जो इतना कठिन जीवन जी रही हैं और इस जीवटता के साथ रात-दिन काम करती हैं। मेरी ये बात गाडड सुन ली। उसने मुझसे कहा - हां ! यहां के आदमी तो किसी काम के अब रहे नहीं। आधे से ज्यादा लोग तो शराब के पीछे बर्बाद हो गये। कुछ ही ऐसे हैं जो मेहनत से काम करते हैं और जो जरा पड़े-लिखे और अच्छे थे वे शहरों में नौकरी के लिये चले गये। इसलिये घर-गांवों की पूरी जिम्मेदारी औरतों के उपर ही है। यही सब कुछ संभालती हैं। हमें एक बात तो महसूस होने लगी थी कि हमारा गाइड निहायत ही शरीफ और शांत स्वभाव का था। उसने वापसी के समय हमें एक पहाड़ी लोक गीत भी सुनाया पर बहुत ही शर्माते-शर्माते।
जिस सड़क से हम वापस आ रहे थे वो सड़क थोड़ा और आगे को जा रही थी। हमने गाइड से पूछा - आगे क्या है तो उसने बताया - एक गांव है और कुछ नहीं। हम लोगों ने गाइड से वहां ले जाने के लिये कहा और वो हमें बिना किसी ना-नुकेर के ले गया। पर हुआ कुछ यूं कि एक गाय हमारी गाड़ी को देख कर इस कदर डर गयी कि वो सड़क में यहां-वहां भागने लगी और फिसल भी रही थी। उस गाय कि हड़बड़ाहट देखकर हमने वापस आ जाना ही ठीक समझा क्योंकि हम नहीं चाहते थी कि वो बुरी तरह गिर के अपने हाथ-पैर तुड़वाये। वैसे इस तरह का नजारा अकसर ही उन गांवों में देखने को मिल जाता है जहां आज भी गाड़ियों का चलन ज्यादा नहीं है।
एक अच्छा दिन बिता के हम लोग कौसानी बाजार वापस आ गये। बाजार में दाल, चावल खाये और पैदल ही रैस्ट हाउस की तरफ बढ़ गये और हां रास्ते में चाय पीना इस समय भी नहीं भूले। करीब 4 बजे हम लोग रैस्ट हाउस में थे। आज का दिन हमारे लिये काफी अच्छा रहा। लेकिन समय की कमी के कारण हम कुछ जगहों पर नहीं जा पाये। शाम के समय फिर बाजार की ओर टहलने आ गये। पर आज काफी देर हो जाने के कारण चाय वाले की दुकान से चाय पीकर ही हम वापस हो लिये। रैस्ट हाउस में आकर खाना खाया और सो गये।
आज की सुबह थोड़ी बादलों भरी थी। हम लोगों का कौसानी में कुछ और दिन रुकने का मन हो रहा था पर वापस आने की मजबूरी थी सो यह सोच कर वापसी की तैयारी करने लगे की फिर कभी यहां आये तो कुछ ज्यादा समय के लिये ही आयेंगे।
समाप्त
बहुत सजीव चित्रण.. कौसानी जाने के बाद वापस आने की इच्छा केवल मजबूरी में ही हो सकती है.. आभार
ReplyDeleteवाह कितनी अन्जानी बाते आज इस यातारा वृतांत से मालूम हुई गांधीजी के बारे मे. और आप लोगों का पैदल चढ कर थोडा यूं लगता है कि काश हम भी पैदल चलकर यह सब देखा होता तो रास्ते के कितने ही मनमोहक नजारे आज यादों मे कैद होते?
ReplyDeleteसच पैदल घूमना, मुझे तो आज लग रहा है कि बहुत जरुरी है माहोल को देखने के और समझने के लिये. गाडी मे बैठे और निकल गये..मजा नही है.
बहुत सुंदर..शुभकामनाएं.
रामराम.
भूल सुधार :
ReplyDeleteयातरा = यात्रा
चढ = चल
कौसानी का सजीव चित्रण देखकर वहा जाने की इच्छा हो गयी है , यात्रा वित्रांत अच्छा लगा ।
ReplyDeleteकौसानी की एक एक बात आपने मन से बताई है। शुक्रिया।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
वाह!!! कितने खुशकिस्मत होते होंगे वो लोग जो ऐसी शांत और रमणीक जगह पे रहते होंगे |
ReplyDeleteकौसानी निहायत खूबसूरत जगह है...हम वहां हम तीन दिनों तक रहे लेकिन मन ही नहीं भरा...
ReplyDeleteनीरज
very lively , youthful and hour by hour account of ur stay at Kausani!
ReplyDeleteविनीता यशस्वी जी।
ReplyDeleteकौसानी के सुन्दर नजारे
दिखाने के लिए धन्यवाद।
बहुत ही सुन्दर रहा कौसानी यात्रा वृत्तान्त. चित्र भी बेहद खूबसूरत. आभार.
ReplyDeleteवनिता जी नमस्कार,
ReplyDeleteबहोत ही सरल हिंदी में आपने कौसानी की यात्रा करा दी बहोत ही खूबसूरती से मैं तो कभी नहीं गया मगर आपको पढ़ते समय ऐसा लगा जैसे आपके साथ वहीँ घूम रहे है और प्रकृति का आनंद ले रहे है बहोत ही खुबसूरत चित्रण किया है आपने...
बधाई
अर्श
suryoday ka chitra behad khubsurat laga. Gaay wali baat achambhit kar gayi !
ReplyDeletepahad ke log bahut hi seedhe aur saral hai. aapne kausani ka bahut hi accha chitan kiya hai. pad kar maza aaya.
ReplyDeleteहम लोंगों की तरफ इतनी भीषण गर्मी ...उफ़ ,और आपका मनमोहक शीतलता प्रदान करनें वाला वर्णन .मन हो रहा है की तुरंत कौसानी भाग आऊं. बहुत सुंदर पोस्ट .
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन वृतांत रहा. आनन्द आ गया. चित्रों ने विवरण में जान डाल दी. आभार.
ReplyDeleteaapka yah yatra vivran bahut achcha laga... sachitra vivran ne post me char chand laga diye.... umeed hai aane wale dino me bhee aap aise yatra vivran wali jaankari deti rahengi.....
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत विवरण दिया आपने. चित्र, लेखनी और जगह सब खुबसूरत रहे इस श्रंखला में.
ReplyDeleteसजीव चित्र है....खूबसूरत..मन मचल गया....
ReplyDeleteBahut sunder photo aur utna hi achha yatra vritant bahi
ReplyDeleteTasveern aur vritant dono hi bahut achhe lage
ReplyDeleteमनमोहक चित्र
ReplyDeleteसुन्दर यात्रा वर्णन
***** V.Good
***** Excellent
***** Exceptional
ताऊ जी ने सही कहा गाडी से भ्रमण करते समय बहुत सी जगहों या द्रश्यों को देखने से वंचित रह जाते हैं ! पैदल घूमने का आनंद ही कुछ और है .... बाद में नींद भी बहुत प्यारी आती है !
आज की आवाज
बहुत अच्छा विवरण लिखा है और फोटो भी ज़ोरदार हैं. साधुवाद.
ReplyDeleteAbhiram! Spast roop se pavitra aur vishuddh kriti!
ReplyDeleteमन कर रहा है कि अभी भागकर कोसानी आ जाएं
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