पिछली पोस्ट में मैंने अवस्थी मास्साब के बारे में लिखा था। इस पोस्ट में प्रस्तुत हैं उनके द्वारा बनाये कुछ पोस्टर और उनके द्वारा लिखी एक कविता
पुरानी धुनों में नई ध्वनि लगाकर
कैसेट का धंधा अजब चल रहा है।
गांधी व लोहिया के नामों को लेकर
असल में नकल का दखल चल रहा है।
कश्मीर की बर्फ शोले बनी है,
उत्तराखंड धू-धू कर जल रहा है।
बजाते हैं लॉबी में वे अपनी बंसी,
राग उनका अपना अलग चल रहा है।
नशे में उन्हें कुछ नज़र आयेगा क्या ?
जमीं चल रही, आसमाँ चल रहा है।
इलाही ज़रा उनकी आँखें तो खोल,
कि उनका सितारा किधर ढल रहा है।
- अवस्थी मास्साब
पोस्टर
साभार : श्री ज़हूर आलम
अध्यक्ष युगमंच नैनीताल
बड़ी ज़ोरदार प्रविष्टी की है
ReplyDeletekavita ke kahyaalaat behad khubsurat... aapke massab ko salaam
ReplyDeletearsh
Vinita maine Awasthi massab ke poster to dekhe hai per kavita aaj hi pari. achha laga unki kavita ko per ke
ReplyDeleteमास्साब कि कविता भी खूब रही. पोस्टरों का भी जवाब नहीं
ReplyDeleteबहुत ही जोरदार .
ReplyDeleteलगता है मास्साब बिल्कुल मौलिक विचार रखते हैं, आज के समय मे ऐसे महामानव बिरले ही मिलते हैं.
ReplyDeleteअवस्थी मास्साब को बहुत नमन. उन्होने बहुत ही सुंदर उदाहरण पेश किया है.
रामराम.
कविता बेहतरीन है..पोस्टर कम शब्दों में कितनी जागरुकता पैदा कर रहे हैं..बेहतरीन!!
ReplyDeleteBahut hi acchi post likhi aapne. Massab ki ummidon ke 'Jagran' ka intejar hamein bhi hai.
ReplyDeleteAvasthi massab ka jawab nahi..
ReplyDeleteBahut achha laga awasthi maasaab ke bare mai jan ke aur unke poster dekh ke.
ReplyDeleteवाहवा बेहतरीन प्रस्तुति के लिये साधुवाद
ReplyDeleteमास्साब को नमन
कविता के साथ साथ पोस्टर भी जबरदस्त हैं....
ReplyDeleteबहुत ही नए..........लाजवाब vichaar हैं..........maasaab को hamaara भी pranaam
ReplyDeleteसभी chhand prabhaavi hain
मै मास्साब के पोस्टर पढ़ रहा था और मन में कबीर वाणी उमड़ रही थी -
ReplyDelete"सुखिया सब संसार है खावै और सोवै !
दुखिया दास कबीर है जागे और रोवै !
ऐसे लोग किस मिट्टी के बने होते हैं ?
इनका संघर्ष क्या उनके अकेले का संघर्ष था ?
इन्होने जो दीप प्रज्ज्वलित किया क्या इस
परंपरा को आगे ले जाने वाला नयी पीढी से
कोई आएगा ?
मास्साब का व्यक्तित्व तो पिछली पोस्ट में ही पता चल गया था. ये रचना भी कमाल की है.
ReplyDeletekavita and poster lajwab...
ReplyDeleteमास्साब कि कविता भी खूब रही.
ReplyDeleteपोस्टरों का भी जवाब नहीं
मास्साब की सुन्दर और कालजयी रचनाओं से रु-ब-रु करा कर एक नेक कार्य कर रहीं है आप.
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
marvellous ! one man fighting against the system in his own way. a REAL MAN indeed!
ReplyDeletekoi to hai jagane ko
ReplyDeletevaise kai og hain jo chupchaap apnaa kaam kiye jaate hai
aur log makhaul udaakar maje lete rahte hai
aapne mahtv jataaya iski aapko badhaai
maja aa gaya padh ke.
ReplyDeleteइन सभी प्रेरणा स्तम्भों को सादर प्रणाम।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अवस्थी मास्साब पर दोनो ही पोस्ट बहुत ही उत्कृष्ट हैं. इन्हें मिलाकर एक बानाया जाना चाहिए और किसी पत्रिका में आना चाहिए.इन पोस्ट्स से आशुतोष उपाध्याय के 'बुग्याल' वाले लेख की याद आ गई.
ReplyDeleteअवस्थी मास्साब को फिर से याद कराने का शुक्रिया. कभी मैंने भी उन पर एक पोस्ट लिखी थी:
ReplyDeletehttp://bugyaal.blogspot.com/2007/08/blog-post_18.html
Awasthi Ji k bare me padhkar bahut acha laga.Aise log ab mushqil se hi milte hai.
ReplyDeleteकविता और पोस्टरों का भी जवाब नहीं....बहुत सुन्दर....
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