Wednesday, February 11, 2009

सच्चा प्यार

नोबेल पुरस्कार विजेता पोलिश कवयित्री विस्वावा शिम्बोर्स्का की कविता के कुछ अंश.......

.....भला दुनिया के लिये वे दो व्यक्ति किस काम के
जो अपनी ही दुनिया में खोये हों ?
बिना किसी खास वजह के
एक ही ज़मीन पर आ खड़े हुए हैं ये दोनों,
किस अदृश्य हाथ ने लाखों-करोड़ों की भीड़ से उठाकर
अगर इन्हें पास-पास रख दिया
तो यह महज़ एक अंधा इत्तिफाक था,
लेकिन इन्हें भरोसा है कि इनके लिये यही नियत था।
कोई पूछे कि किस पुण्य के फलस्वरूप ?
नहीं, नहीं, न कोई पुण्य था, न कोई फल.....

....क्या ये सभ्यता के आदर्शों को तहस-नहस नहीं कर देगी ?
अजी, कर ही रही है।

देखो, किस तरह खुश हैं दोनों,
कम-से-कम छिपा ही लें अपनी खुशी
हो सके तो थोड़ी सी उदासी ओढ़ लें
अपने दोस्तों की खातिर ही सही। जरा उनकी बातें तो सुनो
हमारे लिये अपमान और उपहास के सिवा क्या है ?
और उनकी भाषा ?
--कितनी संदिग्ध स्पस्टता है उसमें !
और उनके उत्सव, उनकी रस्में,
सुबह से शाम तक फैली हुई उनकी दिनचर्या !
--सब कुछ एक साज़िश है पूरी मानवता के खिलाफ।

हम सोच भी नहीं सकते क्या से क्या हो जाये
अगर सारी दुनिया इन्हीं की राह पर चल पड़े!
तब धर्म और कविता का क्या होगा ?
क्या याद रहेगा, क्या छूट जायेगा
भला कौन अपनी मर्यादाओं में रहना चाहेगा !.....

.....सच्चा प्यार ?
मैं पूछती हूं क्या यह सचमुच इतना जरूरी है ?
व्यावहारिकता और समझदारी तो इसी में है
कि ऐसे सवालों पर चुप्पी लगा ली जाए
जैसे ऊंचे तबकों के पाप-कर्मों पर खामोश रह जाते हैं हम,


जिन्हें कभी सच्चा प्यार नहीं मिला
उन्हें कहने दो कि
दुनिया में ऐसी कोई चीज होती ही नहीं,
इस विश्वास के सहारे
कितना आसान हो जायेगा
उनका जीना और मरना।

21 comments:

  1. एक अच्छी कविता पढ़वाने के लिए शुक्रिया।

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  2. बहुत सुंदर इसको पढ़वाने का शुक्रिया

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  3. हमें तो यह कविता एकदम समायिक लग रही है. सम्भव है हमारी समझ कम हो. फ़िर लगता है नहीं हमारी सोच में खोट नहीं है. अन्यथा इस कविता को आपने ढूँढ कर इस समय परोसा न होता. आभार.

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  4. जिन्होने कभी सच्चा प्यार नही किया...कहने दो उन्हें ऐसी बातें और जी लेने दो उन्हें उन्ही की दुनिया में...जिससे उनका जीना भी आसान और मरना भी...

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  5. Achhi kavita parwane ke liye dhanyawaad...

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  6. Achhi kavita padvai aapne.

    kuchh lines to bahut hi achhi hai.

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  7. बेहद खूबसूरत कविता. बहुत शुभकामनाएं. ऐसे ही गुलदस्तों की आगे भी उम्मीद रहेगी.

    रामराम.

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  8. अच्छी रचना की प्रस्तुति के लिये साधुवाद स्वीकारें..........

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  9. बहुत खूब !!!
    (मुझे कमेन्ट करने पर विवश कर दिया आपने)

    विस्साव शिम्बोर्स्का की यह कविता
    मुझे अत्यन्त प्रिय है !
    मेरी डायरी में भी दर्ज है !
    विनीता जी आपने कई पंक्तियों को
    हटा क्यूँ दिया ? उन पंक्तियों में भी
    बहुत जान थी !

    यह कविता प्रस्तुत करके आपने प्यार के
    इस मौसम को खुशगवार बना दिया !

    शिम्बोर्स्का की बहुत ही प्यारी दिल को
    छूती हुयी कविता है .......
    कितनी सारगर्भित...एवं भावपूर्ण ..........

    "भला दुनिया के लिए वे दो व्यक्ति
    किस काम के हैं
    जो अपनी ही दुनिया में खोये हुए हों...
    बिना किसी ख़ास वजह के"

    मेरी पसंदीदा पंक्तियाँ हैं : -

    "हम सोच भी नही सकते की
    क्या से क्या हो जाए
    अगर सारी दुनिया इन्ही की राह पर चल पड़े
    तब धर्म और कविता का क्या होगा"

    और आखिरी पंक्तियाँ तो किसी को भी देर तक सोचने पर विवश कर सकती हैं :-

    जिन्हें कभी सच्चा प्यार नही मिला
    उन्हें कहने दो कि
    दुनिया में ऐसी कोई चीज होती ही नहीं
    इस विश्वास के सहारे
    कितना आसान हो जाएगा
    उनका जीना और मरना....!!!!!

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  10. भला दुनिया के लिये वे दो व्यक्ति किस काम के
    जो अपनी ही दुनिया में खोये हों ?
    क्या ये सभ्यता के आदर्शों को तहस-नहस नहीं कर देगी ?

    Kafi chunkar layin hai is kavita ko aap.

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  11. एक बेहतरीन कविता पढ़वाने के लिए शुक्रिया।

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  12. प्रेम के इस पर्व में नोबल पुरूस्कार प्राप्त कवि की प्यार पर लिखी प्यारी कविता पढाने के लिए साधुवाद.

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  13. प्रस्तुति के लिए साधुवाद, आपके स्वाद से परिचित हुए.

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  14. बहुत सुंदर रचना .
    धन्याद .
    एक नजर इस ब्लॉग पर "दादी माँ की कहानिया"
    http://dadimaakikahaniya.blogspot.com/

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