आज कम्प्यूटर में अपनी पुरानी फाइलों को देखते हुए मुझे यह कविता मिली। जो मैंने किसी पत्रिका या अखबार से लिखी थी।
डेविस लेबर्टोव की लिखी इस कविता का हिन्दी अनुवाद चन्द्र प्रभा पाण्डेय द्वारा किया गया है।
अगर रथ और पैरों में चुनाव करना हो
तो मैं पैरों को चुनूंगी
मुझे रथ की उंची गद्दी पसंद है
उसकी ललकारती रफ्तार, दुस्साहसपूर्ण हवा,
जिसकी तेज गति को पकड़ पाना मुश्किल है
परन्तु मैं जाना चाहती हूं,
बहुत दूर,
और मैं उन रास्तों पर चलना चाहती हूं
जहां पहिये नहीं जा सकते
और मैं नहीं चाहती हमेशा रहना
घोड़ों और साज सामान के बीच
खून, झाग और धूल।
मैं उनके विचित्र सम्मोहन से अपने को मुक्त
करना चाहती हूं,
मैं यात्रा में पैरों को एक
अवसर देना चाहती हूं।
सुंदर ..इसको पढ़वाने का शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव हैं इस कविता में....इसे हिन्दी में अनुवाद करने के लिए चंद्र प्रभा पांडेय को धन्यवाद....आभार आपका भी यहां प्रकाशित करने के लिए।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है इस हिन्दि अनुवाद के लिये शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत आभार इसे हमारे साथ बांटने का.
ReplyDeleteदिलचस्प !
ReplyDeleteबहुत यथार्थ मयी कविता.
ReplyDeleteरामराम.
सही कहा है. चक्के भी हर जगह नहीं पहुँच पाते. पैरों का सहारा ही लेना पड़ता है. आभार.
ReplyDeleteविनीता जी..
ReplyDeleteबढ़िया रहा ये कविता मिल गई...फाइलों के बीच से बाहर आ गई हम लोगों के बीच। एक अच्छी कविता पढ़वाने के लिए आभार। अच्छी रचना है...कर्म की महत्ता को केन्द्रित करती।
विनीता जी, नमस्कार
ReplyDeleteबढ़िया लगा ये कविता पढ़ कर,
मैं तो सोच रहा हूँ कि ऐसी कौन सी जगह है कि जहाँ पहिये नहीं पहुँच सकते. मेरे ख्याल से वो जगह है "पहाड़"
शुक्रिया आपका यह कविता बाटने के लिए. सुंदर ब्लॉग
ReplyDeleteधन्यवाद
एक अच्छी कविता को पढवाने को शुक्रिया।
ReplyDeleteबेहतरीन संदेश देती एक प्रतीकात्मक कविता पढ़ाने के लिए आभार।
ReplyDeleteBahut achhi kavita lagayi hai apne vineeta.
ReplyDeleteBahut Achhi
ReplyDeletebahut sundar...
ReplyDeleteBhavpurna kavita chuni hai aapne. Shukriya.
ReplyDeleteधन्यवाद आपका - सुंदर रचना पढ़वाने के लिए.साधुवाद चन्द्र प्रभा पांडे का सुंदर अनुवाद के लिए. ऐसा लगता है मानो अनुवाद न हो कर कोई मौलिक रचना है.
ReplyDeleteइस शानदार कविता को पढवाने का शुक्रिया।
ReplyDeleteबहुत खूब......इस कवि को बहुत-बहुत साधुवाद........आपको भी धन्यवाद.......पैरों पर विश्वास दरअसल ख़ुद पर विश्वास है..........ख़ुद पर विश्वास जिन्दगी पर विश्वास....जिन्दगी पर विश्वास उपरवाले पर विश्वास......वैश्विक चेतना दरअसल इसी का तो नाम है........है ना....!!??
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