इस दौरे में मुझे दुनिया के सबसे अमीर भगवान तिरुपति बालाजी के दर्शन का मौका भी मिला। वहाँ दर्शन करने के लिये जब हम लोगों ने चेन्नई में आरक्षण करवाया तो हमारे नाम-पतों के साथ-साथ कम्प्यूटर फोटो और अंगूठे का निशान भी लिया गया। पता चला कि यह सुरक्षा की दृष्टि से किया जाता है। चेन्नई से तीन घण्टे की यात्रा के बाद रात्रि 10 बजे हम तिरुपति पहुँचे। तिरुपति बालाजी का मंदिर आंध्र प्रदेश में है। अगले दिन सुबह हम 7 बजे बालाजी के दर्शन के लिये निकले। रास्ता सिर्फ आधे घंटे का था, लेकिन कुछ माह पूर्व इस रास्ते पर आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू के ऊपर बम फेंकने के बाद सुरक्षा जाँच सख्ती से हो रही थी। यात्रियों के सामान को खोल कर तलाशी ली जा रही थी। पर जब हमारी गाड़ी का नम्बर आया सिर्फ औरतें और बच्चे होने के कारण हमें तुरन्त छोड़ दिया गया।
यह पूरा रास्ता पहाड़ी है। मानो नैनीताल के ही पेड़ और पहाड़ हों। लाल मिट्टी चमक वाली। पहाड़ भी मद्रास के मुकाबले थोड़ा ज्यादा ऊँचे थे। पौने आठ बजे हम वहाँ पर पहुँचे थे और कुछ धार्मिक अनुष्ठान निपटाने के बाद 10 बजे दर्शन के लिये लाईन में खड़े हुए। काफी समय तक हम लोग यूँ ही लाइनों में चलते रहे। इस बीच सामान की तलाशी ले रहे सुरक्षाकर्मियों ने मेरे पर्स में मोबाइल के साथ रखे चार्जर को निकाल कर जमा कर लिया। मेरे साथ वालों ने तब मुझे बताया कि यहाँ पर यह वर्जित है। मुझे गुस्सा आ गया, किसी ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ? ताज्जुब की बात वे मोबाइल नहीं ले गये।
देर तक लाइनों में ही चक्कर लगाने के बाद हम एक बड़े से कमरे में पहुँचे, जिसके अंदर हमें भरकर बाहर से ताला लगा दिया गया। फिर कमरा तभी खोला गया, जब अगले कमरे में मौजूद लोग आगे बढ़ गये। खैर इन तमाम झंझटों को झेलते हुए हम लोग आगे बढ़े और करीब ३-४ घंटे बाद हम बालाजी के आसपास कहीं थे। यहाँ पर भी एक सुरक्षाकर्मी था जो सामान की स्कैंनिंग मशीन से जाँच कर रहा था। उसने मेरे पर्स को चैक किया जिसमें उसे मोबाइल मिल गया। उसने तमिल में कुछ कहा, जो मुझे समझ नहीं आया इसलिये मैंने स्वयं ही अंग्रेजी में उसे बताया कि मुझे मालूम नहीं था, क्योंकि मैं यहाँ नैनीताल से आई हूँ। गौर से मुझे देखकर उसने मोबाइल को अपने पास रख लिया और मुझे प्राप्ति की चिट दे दी। उसका विनम्र व्यवहार अच्छा लगा।
आधा घंटा और इंतजार के बाद हम बालाजी के मंदिर के सामने थे। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते सिक्योरिटी और ज्यादा सख्त होती जाती थी। इतनी धक्कामुक्की में दर्शन क्या होते ! जैसे-तैसे हम बालाजी के सामने पहुँचे और एक सेकेण्ड भी नहीं हुआ कि एक सुरक्षाकर्मी ने हमें धक्का देकर हटा दिया। तीन-चार सुरक्षाकर्मी लगातार यही काम कर रहे थे। सवेरे से भूखे-प्यासे इस लाईन में खड़े थे और यहाँ तो प्रणाम करने तक का मौका नहीं मिला।
बालाजी का मंदिर पूरा सोने का बना हुआ है। बेतहाशा चढ़ावा हर रोज आता है। मंदिर परिसर में ही एक स्थान पर सिक्कों को बड़े-बड़े बोरों में भरा जा रहा था। एक और कमरे में 15-20 आदमी नोट गिनने में व्यस्त थे। उनके चारों जितना रुपया बिखरा हुआ था, मैंने आज तक अपने जीवन में नहीं देखा। वहाँ से प्रसाद लेकर हम लोग बाहर आये। सुरक्षाकर्मी ने मोबाइल मुझे वापस करते हुए पूछ लिया, आप नैनीताल से आयी हैं, वहाँ तो बर्फ गिर गयी होगी न ?
यहाँ पे एक नई बात और देखने को मिली वो था लोगों का बाल कटाना। बालाजी में महिलायें भी अपने पूरे बाल कटवा रही थीं। मुझे ऐसा लगा कि कुछ लोग मनोती पूरा होने पर और कुछ लोग मनोती पूरी होने के लिये बाल कटा के बालाजी को चढ़ा रहे थे।
बालाजी का प्रसाद लड्डुओं का होता है। दो रुपये की एक थैली लाजिये और फिर जितने लड्डू चाहिये थैलियों में खरीद कर लाइये।
एक रैस्टोरेंट में खाना खाने गये। जोरों की भूख थी, मगर उस होटल की गंदगी और खाना इतना तीखा था कि मैं तो खा ही नहीं पायी। पर हाँ, होटल के बाहर जो पान वाला था, उसके पान बनाने का तरीका इतना अलग था कि एक पान खाये बिना नहीं रहा गया।
मद्रास में मुझे कई और मंदिर भी देखने को मिले। जिनके नाम अब में भूल गयी हूं। उनमें एक मंदिर था कमल के फूल चढ़ाने वाला मंदिर। यहाँ हम लोगों ने भी कमल के फूल चढ़ाये। यहाँ के मंदिरों की संरचना कुछ अलग तरह की थी। पत्थरों से बने छोटी-छोटी रंगीन नक्काशीदार संरचनाओं से मिलकर बने भव्य मंदिर। एक मंदिर हनुमानजी का था। इस मंदिर में हनुमान जी की भव्य प्रतिमा है। इतनी बड़ी प्रतिमा मैंने अभी तक तो फिलहाल कहीं नहीं देखी है। एक मंदिर था जिसमें सुबह और शाम को समय में स्वयं ही कुछ (शायद इलेक्ट्रॉनिक) वाद्य यंत्र बजने लगते हैं। इनके अलावा भी कुछ और मंदिर देखने को मिले।
यहाँ पूजा के पश्चात पूजारी सर में कुछ टोपी जैसी चीज रख कर आशीष दे रहे थे। पूजा समाप्त करने के बाद सभी लोग मंदिर के बरामदे में कुछ समय अवश्य बैठते हैं। यहाँ भगवान कारतिकेय की विशेषतः पूजा की जाती है। उन्हें कई नामों से जाना जाता है। उनमें एक नाम जो मुझे याद है वो है 'भगवान मुरगन'।
(जारी........)
मनोती वाली बात नहीं है /ऐसा नही है के कोई ऐसा संकल्प करता हो कि हमारा अमुक काम पूरा हो जाएगा तो बाल कटवा देंगे /वहां तो वाल उतरवाए ही जाते हैं ऐसा क्यों है अभीतक किसी ने खोज करने की कोशिश भी नहीं की प्रथा के पीछे कोई बात रहे होगी /जैसे इनका नाम था ""त्रिपति "" अब कब और कैसे "तिरुपति " होगया /आपने वहां की पर्याप्त जानकारी दे
ReplyDeletevineeta tere sath madras yatra mai bara maza aa raha hai.
ReplyDeleteविनीता जी, मैं तो ऐसे बड़े बड़े आलीशान मंदिरों को दुकान कहता हूँ. जब कभी मैं हरिद्वार में मनसा देवी या चंडी देवी मंदिर जाता हूँ, तो वहां पर भी ऐसा ही हाल होता है. मैं तो अब चढाने के लिए प्रसाद भी नहीं लेता. उल्टे मंदिर के पीछे जो पुजारी नारियल इकट्ठे करता रहता है, उससे दो चार नारियल ही मांग लेता हूँ. नारियल तो वो दे देता है लेकिन अच्छी बुरी खूब सुनाता है.
ReplyDeleteरोचक वर्णन, बालाजी के दर्शन बडे सौभाग्य से होते हैं।
ReplyDeleteतिरुपति अर्थात श्री पति जी का यात्रा विव्रण अच्छा लगा. आभार.
ReplyDeleteआपके यात्रा व्रुतान्त ने तो बालाजी के दर्शन करवा दिये ! बहुत धन्यवाद आपको !
ReplyDeleteराम राम !
Hello vinita yashashvi ji..
ReplyDeleteHeartly thanks for your comment .
you write really well maam.
keep on doing.
god bless you.
gajendra singh bhati
Chennai yatra ke teenon bhagon ko aaj hi padhne ka mauqa mila. Chennai jana ek baar hua hai par wo bhi ek din ke liye isliye tab bahut kam jagahon par ja saka tha.
ReplyDeleteTamilnadu ke interiors mein to log theek se angerezi bhi nahin samajhte hindi to door ki baat hai.
Mandiron aur us dauran wahan ke reeti riwazon ka aapne achcha varnan kiya hai.
विनीता जी वाकई आपने यात्रा वर्णन अच्छा किया है.
ReplyDeleteयह तीर्थ में प्रभु दर्शन की बजाय यातना यात्रा का विवरण लगता है. कहते हैं कि पीड़ा से भगवान मिलते हैं, शायद उसी का रास्ता तिरुपति यात्रा से मिलता है. यानि आतंकवादियों के डर से अधिक सुरक्षा जाँच भी प्रभु मिलन के रूप में ही देखी जानी चाहिये!
ReplyDeletebahut achha
ReplyDeleteविनीता जी,
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखती हैं आप। मेरे हिसाब किसी संस्मरण लेखक के लिए शब्दचित्र खींच पाना ही सबसे बड़ी कामयाबी है। और आप ये काम अच्छा कर लेती हैं। हमें चेन्नई और घुमाइए। अभी मन नहीं भरा। मेरी शुभकामनाएं...
vinita ji apka blog dekhkar achcha laga
ReplyDeletebahut achcha vivaran diya hai aapne tirupati ke bare me