कस्तूरी मृग जिसे अंग्रेजी में मस्क डियर भी कहते हैं उत्तराखंड का राजकीय पशु है। कस्तूरी मृग में पाये जाने वाली कस्तूरी के कारण इसकी विशेष पहचान है पर इसकी यही विशेषता इसके लिये अभिशाप भी है। कस्तूरी मृग हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। उत्तराखंड के अलावा यह नेपाल, चीन, तिब्बत, मंगोलिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भूटान, वर्मा, कोरिया एवं रुस आदि देशों में भी पाया जाता है।
कस्तूरी मृग से मिलने वाले कस्तूरी की अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में कीमत लगभग 30 लाख रुपया प्रतिकिलो है जिसके कारण इसका अवैध शिकार किया जा रहा है। चीन 200 किलो के लगभग कस्तूरी का निर्यात करता है। आयुर्वेद में कस्तूरी से टी.बी., मिर्गी, हृदय संबंधी बिमारियां, आर्थराइटिस जैसी कई बिमारियों का इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेद के अलावा यूनानी और तिब्बती औषधी विज्ञान में भी कस्तूरी का इस्तेमाल बहुत ज्यादा किया जाता है। इसके अलावा इससे बनने वाली परफ्यूम के लिये भी इसकी बहुत मांग है।
कस्तूरी चॉकलेट रंग की होती है जो एक थैली के अंदर द्रव रूप में पायी जाती है। इसे निकाल कर सुखाकर इस्तेमाल किया जाता है। एक मृग से लगभग 30-40 ग्राम तक कस्तूरी मिलती है और कस्तूरी सिर्फ नर में ही पायी जाती है जबकि इसके लिये मादा मृगों का भी शिकार किया जाता है। जिस कारण इनकी संख्या में बहुत ज्यादा कमी आ गयी है।
कस्तूरी निकालने के लिये इन जानवरों का शिकार करना बिल्कुल भी जरूरी नहीं है क्योंकि कुछ आसान तकनीकों का इस्तेमाल करके इनसे कस्तूरी को आसानी से बिना मारे निकाला जा सकता है।
इसके जीवन पर पैदा हो रहे संकट के चलते इसे `इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेस´ ने `रैड डाटा बुक´ में शामिल किया गया है। भारत सरकार ने भी वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत इसके शिकार को गैरकानूनी घाषित कर दिया है। इंडियन वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने जिन 13 वन्य प्राणियों के जीवन को खतरे की सूची में डाला है उसमें से कस्तूरी मृग भी एक है।
यदि अभी भी इस जानवर को बचाने के प्रयास गंभीरता से नहीं किये गये तो जल्द ही उत्तराखंड का यह राजकीय पशु शायद सिर्फ तस्वीरों में ही नज़र आयेगा।
कस्तूरी मृग से मिलने वाले कस्तूरी की अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में कीमत लगभग 30 लाख रुपया प्रतिकिलो है जिसके कारण इसका अवैध शिकार किया जा रहा है। चीन 200 किलो के लगभग कस्तूरी का निर्यात करता है। आयुर्वेद में कस्तूरी से टी.बी., मिर्गी, हृदय संबंधी बिमारियां, आर्थराइटिस जैसी कई बिमारियों का इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेद के अलावा यूनानी और तिब्बती औषधी विज्ञान में भी कस्तूरी का इस्तेमाल बहुत ज्यादा किया जाता है। इसके अलावा इससे बनने वाली परफ्यूम के लिये भी इसकी बहुत मांग है।
कस्तूरी चॉकलेट रंग की होती है जो एक थैली के अंदर द्रव रूप में पायी जाती है। इसे निकाल कर सुखाकर इस्तेमाल किया जाता है। एक मृग से लगभग 30-40 ग्राम तक कस्तूरी मिलती है और कस्तूरी सिर्फ नर में ही पायी जाती है जबकि इसके लिये मादा मृगों का भी शिकार किया जाता है। जिस कारण इनकी संख्या में बहुत ज्यादा कमी आ गयी है।
कस्तूरी निकालने के लिये इन जानवरों का शिकार करना बिल्कुल भी जरूरी नहीं है क्योंकि कुछ आसान तकनीकों का इस्तेमाल करके इनसे कस्तूरी को आसानी से बिना मारे निकाला जा सकता है।
इसके जीवन पर पैदा हो रहे संकट के चलते इसे `इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेस´ ने `रैड डाटा बुक´ में शामिल किया गया है। भारत सरकार ने भी वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत इसके शिकार को गैरकानूनी घाषित कर दिया है। इंडियन वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने जिन 13 वन्य प्राणियों के जीवन को खतरे की सूची में डाला है उसमें से कस्तूरी मृग भी एक है।
यदि अभी भी इस जानवर को बचाने के प्रयास गंभीरता से नहीं किये गये तो जल्द ही उत्तराखंड का यह राजकीय पशु शायद सिर्फ तस्वीरों में ही नज़र आयेगा।
23 comments:
खूब जानकरियों से भरी है ये पोस्ट।
achhi jankariya di apne is post mai
कस्तूरी मृग के संरक्षण के प्रयास होने ही चाहिए.. वरना आने वाली पीढ़ी इन्हें केवल तस्वीरों में ही देखेगी.. अच्छी जानकारी दी है आपने
हैपी ब्लॉगिंग
बहुत अच्छी जानकारी है ।अशीर्वाद्
badhiya jankari di hai tumne vineeta
achhi jaankari ke liye aapka aabhaar...
arsh
ओह ! बची रहे यह प्रजाति.
सही कहा है!
Waah,ek baar phir jaankari bhari post.Keep it up.
is jaankari ke liye aabhaar
when we were kids we used to say 'My dear dear is very deer ', it applies here. no ?
yeah munish u right...
बहुत सुंदर जानकारी दी. शुभकामनाएं.
रामराम.
बेहतरीन जानकारी!! आभार!
कस्तूरी मृग के बारे में जान कर अछा लगा ...... आपकी चिंता वाजिब है ....
jo sandeh aap vyakt kar rahin hain kyaa us dishaa me aapne koi kadam badhaayaa hai ?
main nischintataa se kah saktaa hun ki agar aap apne prayaas karen to wo din door nahi ke vany praaniyon ko bachaaye rakhne me koi kathi naaii ho
ek esa prayaas karte karaate aaj mera parichay ratlam jile me ban gayaa aur aapkokhush kabar dun ki
hamaare kshetra me paaye jaane waalaa pakshi kharmor jo 1983 se 2005 tak adhiktam 21 ki sankhya me darj hua hamaare prayaason se pichhle baras 42 aur is saal 32 ki sankhya me gine gaye. usase jordaar baat ki petlaawad ke sameep bhi yah pakshi dikhaai diyaa hai. matr 21 se badhkar koi pakshi dugune dikhne lagen to prayaas ko nirarthak nahi kahaa ja sakta
aapne kasturi mrug par chitaa jataaii uske lye shukriyaa.
magar aapko nishchit hi sanrakshan ki dishaa me prayaason ko gati dena padegi. meri chaahat bhi aapse yahi hai.
jankari ke Shukriya.........
इस शमा को जलाए रखें।
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भीड़ है कयामत की, फिरभी हम अकेले हैं।
इस चर्चित पेन्टिंग को तो पहचानते ही होंगे?
Nice Post!! Nice Blog!!! Keep Blogging....
Plz follow my blog!!!
www.onlinekhaskhas.blogspot.com
कस्तूरी कुंडली बसे मृग ढूँढे वन माहि
कबीर ने हिन्दी जगत को इस पशु का नाम बताया था. आप ने विस्तृत जानकारी दी , खुशी हुई. इस महत्वपूर्ण पोस्ट पर कुछ चीज़ें जोड़ना चाहता हूँ :
# यह हिमाचल मे भी होता है.
# लाहुल में मान्यता है कि यह भोज वनों में ही पाया जाता है.
# बचपन में कबीर जी के इस अद्भुत पशु को देखने के लिए हम तरस जाते थे.यती , शीत, हिममानव आदि मिथकीय जीवों की तरह कस्तूरी मृग भी बच्चों की चर्चा के केन्द्र में होता था.
# इधर पिछले एकाध दशक से यह प्राणी मेरी खिड़की के सामने कारदंग़ गोम्पा की ढ्लानों पर सरे आम घूमते नज़र आने लगे हैं.
# यही नहीं , अन्य संकट्ग्रस्त प्रजातियाँ भी आबादी वाले इलाक़ों में दर्जनों के झुण्ड बना कर चहल कदमी करते दीख पड़ते हैं.
कारण हैं, यहाँ महिला मण्डलों ने जंगल् की कटाई और शिकार पर सम्पूर्ण प्रतिबन्ध लगा रखा है.और इस फतवे का पालन इस लिए ठीक से हो रहा है कि मामला कहीं न कहीं धार्मिक भी है. यह अविश्वसनीय सा लगता है लेकिन सच है.उम्मीद है इस सुन्दर पोस्ट के साथ यह सूचना
ग़ैर ज़रूरी नहीं लगेगी.
Apke is jankari bhare comment me meri post ko complete kar diya Ajay ji...
bahut shukriya is jankari ki liya...
mujhe bada dukh hua ki uttrakhund ka rajya pashu kasturi marig ab vilupt hone ke kagar par aa gaye hai, yah badi dukhad baat hai. ki log apne fayde ke liye in nirdosh praniyo ki jaan lete hai. agar aisa hi chalta raha to wo din dur nahi jab ye prani kewal kitabo ke panno me hi nazar aayenge..... hume aur govt ko kuch kathor kadam uthane chahiye
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