आयोजन का उद्घाटन युगमंच व जसम के कलाकारों द्वारा कार्यक्रम प्रस्तुत करके की गयी। इसी सत्र में फिल्म समारोह स्मारिका का विमोचन भी किया गया और प्रणय कृष्ण, गिरीश तिवाड़ी `गिर्दा´ एवं इस आयोजन के समन्वयक संजय जोशी ने सभा को संबोधित किया। इसके बाद आयोजन की पहली फिल्म एम.एस. सथ्यू निर्देशित `गरम हवा´ दिखायी गयी। बंटवारे पर आधारित यह फिल्म दर्शकों द्वारा काफी सराही गयी
सायंकालीन सत्र में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कवि वीरेन डंगवाल के काव्य संग्रह `स्याही ताल´ का विमोचन किया गया तथा गिरीश तिवाड़ी `गिर्दा´ और विश्वम्भर नाथ सखा को सम्मानित किया गया। इस दौरान `आधारशिला´ पत्रिका का भी विमोचन किया गया। इसके बाद राजीव कुमार निर्देशित 15 मिनट की डॉक्यूमेंट्री `आखिरी आसमान´ का प्रदर्शन किया गया जो कि बंटवारे के दर्द को बयां करती है। उसके बाद अजय भारद्वाज की जे.एन.यू. छात्रसंघ के अध्यक्ष चन्द्रशेखर पर केन्द्रत फिल्म `1 मिनट का मौन´ तथा चार्ली चैिप्लन की फिल्म `मॉर्डन टाइम्स´ दिखायी गयी। इस फिल्म के साथ पहले दिन के कार्यक्रम समाप्त हो गये।
दूसरे दिन के कार्यक्रमों की शुरूआत सुबह 9.30 बजे बच्चों के सत्र से हुई। इस दौरान `हिप-हिप हुर्रे´, `ओपन अ डोर´ और `चिल्ड्रन ऑफ हैवन´ जैसी बेहतरीन फिल्में दिखायी गयी। बाल सत्र के दौरान बच्चों की काफी संख्या मौजूद रही और बच्चों ने इन फिल्मों का खूब मजा लिया।
दोपहर के सत्र की शुरूआत में नेत्र सिंह रावत निर्देशित फिल्म `माघ मेला´ से हुई और इसके बाद एन.एस. थापा द्वारा निर्देशित डॉक्यूमेंट्री फिल्म `एवरेस्ट´ का प्रदर्शन किया गया। यह फिल्म 1964 में भारतीय दल द्वारा पहली बार एवरेस्ट को फतह करने पर बनायी गयी है। यह पहली बार ही हुआ था कि एक ही दल के सात सदस्यों ने एवरेस्ट को फतह करने में कामयाबी हासिल की थी। निर्देशक एन.एस. थापा स्वयं भी इस दल के सदस्य थे। इस फिल्म को दर्शकों से काफी प्रशंसा मिली। इस के बाद विनोद राजा निर्देशित डॉक्यूमेंट्री `महुवा मेमोआर्ज´ का प्रदर्शन किया गया। यह फिल्म 2002-06 तक उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड और आंध्र प्रदेश के आदिवासी इलाकों में किये जा रहे खनन पर आधारित है जिसके कारण वहां के आदिवासियों को अपनी पुरखों की जमीनों को छोड़ने के लिये मजबूर किया जा रहा है। यह फिल्म आदिवासियों के दर्द को दर्शकों तक पहुंचाने में पूरी तरह कामयाब रही।
सायंकालीन सत्र में अशोक भौमिक द्वारा समकालीन भारतीय चित्रकला पर व्याख्यान दिया गया और एक स्लाइड शो भी दिखाया गया तथा कवि विरेन डंगवाल जी का सम्मान किया गया। इस उत्सव की अंतिम फिल्म थी विट्टोरियो डी सिल्वा निर्देशित इतालवी फिल्म `बाइसकिल थीफ´। उत्सव का समापन भी युगमंच और जसम के कलाकारों की प्रस्तुति के साथ ही हुआ।
समारोह के दौरान अवस्थी मास्साब के पोस्टरों और चित्तप्रसाद के रेखाचित्रों की प्रदर्शनी भी लगायी गयी जिसे काफी सराहना मिली।
आयोजन की कुछ झलकियां
अवस्थी मास्साब के पोस्टर
चित्तप्रसाद के रेखाचित्र
12 comments:
यथार्थ सिनेमा को नजदीक से देखने का अवसर इसी तरह के फिल्म समारोह उपलब्ध कराते हैं। आपने समारोह को बहुत अच्छे तरीके से प्रविष्ठिबद्ध किया..
हैपी ब्लॉगिंग
सार्थक सिनेमा को लेकर हुये इस पहले फ़िल्म उत्सव के बारे में आपने बहुत सुंदर तरीके से और विस्तारित रुप से बताया.
अवस्थी मास्साब की चित्र प्रदर्षिनी भी बहुत सुंदर लगी. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
yah to ek achhi pahal hai. asha hai ki aise ayojen aage bhi hote rahnege.
बढ़िया पोस्ट, सुन्दर चित्र!
सुन्दर पोस्ट.
Great show , good going ! keep it up Nainital ! Next time i would love to attend this fest . pls .inform in advance !
film samaroh ki safalta par meri bhi badhaai sweekaar karein.....ab kam se kam Gorakhpur ki tarz par har saal is samaroh Nainital mein bhi ho iske liye hamari shubhkamnaein..
is ayojan ko safal banane ki liye meri bhi bahut bahut badhai
Munish Next time jub bhi yaha ayojan hoga apko advance mai bata denge...
Vimal ji is ayojan ko Gorkhpur ki tarj par hi kiya gaya tha aur waha ki team ka bahut bara sahyog raha is ayojan ko safal banane mai...
Vineeta ji apke blog ke sahare is ayojan men bhagidari ho gayee hai. kabaadkhaana par bhi is bare men post hai.
ये रिपोर्ट् किसी और ब्लाग पर पढी तो ही मन मे आया कि विनिता कहाँ गयी? आज ढूँढा तो मिली । बस अपनी बेटी से मिलने ही आयी थी कैसी हो? तस्वीरें बहुत सुन्दर हैं। लिखती तो सुन्दर हो ही इस मे कोई शक नहीं बहुत बहुत आशीर्वाद्
बेहतरीन रचना
maine apney blog pr ek lekh likha hai- gharelu hinsa-samay mile to padhein aur comment bhi dein-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
मेरी कविताओं पर भी आपकी राय अपेक्षित है। यदि संभव हो तो पढ़ें-
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