कुछ देर रेस्ट करने के बाद हम लोग गंगा घाट की तरफ घूमने निकले। गंगा घाट मेरे लिये नये नहीं थे पर फिर भी करीब 12 साल बाद इसे देखना एक अलग अहसास दे रहा था। बहुत कुछ बदल गया था। हमें होटल मैनेजर ने बता दिया था कि आरती के समय बहुत भीड़ रहती है इसलिये दूसरी तरफ जा के यदि आप देखोगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा। उसका कहना मानते हुए हमने दूसरी ओर जा कर अपने लिये एक जगह ढूंढी और वहां खड़े हो गये। हर एक मिनट के बाद कोई न कोई कुछ न कुछ लिये सामने पर खड़ा हो जाता। कभी चंदे के लिये, कभी फूलों के लिये, कभी प्यास्टिक चादरों के लिये तो कभी किसी दूसरी चीज के लिये। ये सब देख के थोड़ा चिढ़ भी हो रही थी पर साथ ही यह एहसास भी हो रहा था कि गंगा मां कितनों को पालती है। उसकी इसी महानता के कारण उसके सामने सर श्रद्धा से झुक जाता है। कुछ ही देर बाद आरती शुरू हो गयी। जैसे ही आरती शुरू हुई सब लोग खड़े हो गये और हम कुछ नहीं देख पाये बस सुन रहे थे गंगा मां की आरती।
आरती खत्म होने के बाद कुछ देर चहल कदमी करके हम गंगा के पानी में पैर डाल के बैठ गये और गंगा में बहने वाले दीपों को देखने लगे। यूंही पैर डाले करीब 1 घंटा हम सब लोग सुकून से बैठे रहे और बातें करने लगे। घाट में काफी हलचल थी सब अपने-अपने काम में मशगूल थे। कुछ समय बाद हम वहां से उठे और घाट के किनारे वाले बाजार में चले गये। वहीं एक होटल ढूंढ के खाना खाया और वापस होटल आ गये। आज थोड़ा थकावट भी थी इसलिये सभी लोग आराम से सो गये।
दूसरे दिन सुबह हम पूजा के लिये कुश घाट की ओर निकल गये। मैं जिन पंडित जी को जानती थी उनका तो देहांत हो चुका था इसलिये हमने सोचा की कुश घाट में ही किसी पंडित को ढूंढ लेंगे। हालांकि ये बहुत कठिन काम है पर फिर भी हमारी किस्मत अच्छी रही कि हमें एक 24-25 साल का युवा पंडित मिल गया। उससे हमने अपनी सारी बातें बतायी। उन्होंने हमें सामान कि लिस्ट बतायी और बोला की वो हमारी पूजा अच्छे तरीके से सम्पन्न करवा देगा। और हुआ भी यही उस पंडित ने हमारे सारे काम बहुत अच्छे तरीके से करवा दिये। पर पूजा करते-करते करीब दोपहर के 2 बज चुके थे। गर्मी अपने पूरे शबाब पे थी और अच्छी खासी लू चल रही थी। इसलिये हमने खाना खा कर होटल वापस चले जाना ही बेहतर समझा।
शाम के समय हम फिर बाजार की ओर निकल गये। बाजार देश-विदेशी सभी तरह के यात्रियों से खचाखच भरी हुई थी। आने वाले साल में कुम्भ मेला होने के कारण काफी काम भी चल रहा था इसलिये थोड़ा परेशानी और हो रही थी। सड़कों मे आदमियों की भीड़ इतनी ज्यादा थी कि वाहनों को अपने लिये जगह बना के चलना पड़ रहा था जिसे देख के हमें बहुत अच्छा लगा क्योंकि अकसर तो पैदल चलने वालों को ही वाहनों से बचना पड़ता है। ख्ौर आज हम फिर गंगा घाट की तरफ निकल गये। पूजा कार्य सम्पन्न हो चुकने के कारण हमने सोच रखा था कि आज शाम को हर की पैड़ी में जायेंगे और वहीं से दीप दान करेंगे।
हर की पैड़ी की तरफ जैसे ही जाने को हुए कि कई सारे पंडितों ने हमें घेरना शुरू कर दिया। किसी ने बोला पहले यहां आना पड़ता है नहीं तो काम सफल नहीं होते। किसी ने कहा पहले दीये की पूजा करानी होती है। कोई कुछ तो कोई कुछ ये सब देख के फिर अफसोस हुआ। धर्म के नाम पर भी ठगी। ख्ौर उन सबसे निपटते हुए हम घाट के किनारे चले गये। उसी समय पीछे से एक पंडित ने कहा - माचिस ले लो। मैंने हंसते हुए उससे कहा कि - मैं माचिस नैनीताल से साथ लेकर आयी हूं और दीया जलाने लगी। इतनी देर हुई थी कि फिर एक पंडित ने पीछे से कहा - दीये का मुंह तो उल्टा हो गया। ऐसा नहीं करते। सो हमें जवाब देना ही पड़ा - मन चंगा तो कठौती में गंगा। अंत में जाना तो सब गंगा में ही है। वैसे भी भगवान श्रद्धा देखते हैं न कि दीये का मुंह। और हमने अपने दीये गंगा मां को समर्पित कर दिये। जो कि काफी दूर तक बहते रहे थे। वहां से जब हम पलट रहे थे तो उसी पंडित ने बड़े ही अफसोस के साथ कहा कि - यदि सब आपके जैसा ही सोचने और करने लगे तो हमारा धंधा ही चौपट हो जायेगा। हम क्या करेंगे ? उसकी ये साफगोई हमें अच्छी लगी और उसे दक्षिणा देते हुए हम मंदिरों की तरफ बढ़ गये। फटाफट दर्शन करके घाट के दूसरी ओर आ गये। शाम के समय घाट में काफी हलचल होने लगती है।
आज भी जैसे ही आरती शुरू हुई सामने के लोग उठ गये पर आज मैंन अपने लिये उंचाई वाली एक जगह ढूंढ ली थी जहां से मैं आरती आराम से देख सकती थी। अचानक ही मेरी नजर एक विदेशी जोड़े पर पड़ी जो काफी कोशिश कर रहे थे आरती देखने की पर नहीं देख पाये। मुझे लगा कि ये पता नहीं कहां से आये हैं और इतनी कोशिश कर रहे हैं आरती देखने की। मैं तो फिर भी इसी देश की हूं अत: अतिथि देवो भव की परंपरा को निभाते हुए मैंने अपनी जगह उन्हें दे दी। आरती खत्म होने के बाद आज हम लोग काफी देर तक घाट में घूमने का मजा लेते रहे। एक चीज ने इस बार भी हमें बेहद आहत किया वो थी घाट के किनारे फैली गंदगी। गंगा मां हमारे लिये इतना सब करती है और बदले में हम लोग ही उसे गंदा करते हैं इस बात से बेहद शर्मिंदगी महसूस हुई।
कुछ देर बाद हम लोग बाजार की तरफ निकले। हरिद्वार के बाजार काफी रंग-बिरंगे सामानों से सजे हुए और विविधता भरे दिखायी दिये। कुछ देर बाजार में टहलने के बाद एक रेस्टोरेंट में खाना खाया। होटल वापस आये और सो गये। आज का दिन तो पूरा ऐसे ही निकल गया.....
जारी.....
25 comments:
haridwar ki yaatra karna ,sach me saubhaagya ki baat hai .. aur wahan par ganga maiyaa ki aarti dekhna apne aap me ek manoram drishya hota hai ..
aapko is yaatra aur is post ke liye badhai ..
meri nayi kavita padhiyenga , aapke comments se mujhe khushi hongi ..
www.poemsofvijay.blogspot.com
बहुत सुंदर जानकारी दी आपने हरिद्वार यात्रा की. बिल्कुल जीवंत चित्र और धाराप्रवाह लेखन.
बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत सुंदर जानकारी दी मे भी हरिद्वार घूमने जाने वाला हू काम आयेगी
u can be a commentator any day! nice depiction . ur new watch is not only accurate but lovely as well!
nice page scheme ! where did u get this road side board from? i think i have seen this board some where!
Munish ji apne ye road side board jarur kahi dekha hoga kuki ye mujhe mere ek friend ne mail kiya tha...
mujhe achha laga isliye blog mai laga diya...
Haridwar vrittant, Pandit ji se sanvad aur videshi jode ki madad.. accha laga padhkar. Template mein nayapan badhiya laga.
Nice Change in layout & thx for sharing pics
Blog ka naya look achha hai. apki yatra aur pics to har baar achhe lagte hai
हमें तो अपनी हरिद्वार यात्रा की यादें आ गई हरी भरी होकर.
सुन्दर चित्र और रोचक वृतांत..जारी रहो, इन्तजार लगा है.
vineeta ji ,aapka vivran padkar dil khush ho gaya. apne uttakhand ko dev bhumi ki sangya se nwaja gaya hai. haridwar jaise sthan to iski sundarta me char chand laga dete hai... isse judi jaankari bahut achchi lagi....aapko bhee manna padega... yatra vivran ki pal pal ki jaankari blog me de rahi hai.. isko padkar aisa lag raha hai maano hum bhee haridwar ghoom rahe hai.. aapne is post ke madhyam se meri bahut purani haridwar ki yaado ko taaja kar diya hai.. lagta hai abki july me yaha aana hi padega....
नया टेम्पलेट बढ़िया है विनीता ! ब्लॉग तो खैर बढ़िया है ही !
Blog ka naya look achha hai. watch aur road side board bhi achhe hai. yatra vritant to apke humesha hi achhe hote hai.
हरिद्वार जाने का मौका अभी तक़ नही मिला है,आपकी पोस्ट पढ कर बहुत कुछ देख लिया लग रहा है।
NAMASKAR
Bahut aacha laga apki Haridwar ki yatra ka vivaran. aur apka blog bhi
mera blog hai :
www.taarkeshwargiri.blogspot.com
www.pollutioncontrolsociety.blogspot.com
Just 15 comments on such a lively post! See what i have got on my video footage of Vasudhaara!
jab aap photo lagaa deti hain to main to spot par hi pahunch jaataa hun na.....
"वहीं एक होटल ढूंढ के खाना खाया और वापस होटल आ गये। "
अजी, जिस बाजार में आप घूम रही थी, वहां होटल ढूँढने की जरुरत ही नहीं है. सभी दुकानें होटल ही तो हैं. सबसे प्रसिद्द है "चोटीवाला".
बस, और क्या लिखूं? अच्छा लगा.
Musafir ji hotel to bahut mil jate hai...per sab jagah choice ka khana to nahi milta...isliye dhundh khoj to karni hi parti hai...
kya kare hum to aise hi hai...
बहुत सुंदर जानकारी पर क्या पहले जैसी रौनक अभी वहाँ है .
Dr. Manoj Ji abhi bhi haridwar mai raunak to pahle jaise hi hai...
देहरादून जाते हुए हरिद्वार से होकर गुजरा हूं। आपकी पोस्ट पढ कर महसूस हो रहा है कि हरिद्वार न घूम कर मैंने कितनी बडी गल्ती की है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत अच्छा दर्शाया,आपने,
पूरा हरिद्वार दिखाया,आपने,
धन्यवाद,पढ़ कर झूमने लगे
ऐसा लगा हम हरिद्वार घूमने लगे ,
उस विदेशी जोड़े को आरती देखने का मौका देकर आप्न्बे बहुत ही अच्छा काम किया. सुन्दर वर्णन. पंडितों द्वारा लूट खसोट, गन्दगी आदि तो आजकल सभी धार्मिक स्थलों की विशेषता बन गयी है.
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